महाराष्‍ट्र के राजनीतिक सिक्‍के के दो पहलू : उद्धव का ‘पतन’ और फडणवीस के ‘चाणक्‍य’ बनने की कहानी

उद्धव ठाकरे के पतन के 5 कारण, फडणवीस महाराष्‍ट्र के नए चाणक्‍य

नवीन रांगियाल
राजनीति में 'पतन' और 'उत्थान' एक ही सिक्‍के के दो पहलू हैं। महाराष्‍ट्र में हाल ही में हुआ ‘तख्‍ता पलट’ भी इसी सिक्‍के का हिस्‍सा है, जिसमें एक तरफ उद्धव ठाकरे का राजनीतिक पतन है तो दूसरी तरफ देवेंद्र फडणवीस का तीसरी बार सत्‍ता पर काबिज होना है। अगर यूं कहें कि महाराष्‍ट्र की राजनीति में पिछले ढाई साल में उद्धव ठाकरे का 'पतन' होता गया तो वहीं दूसरी तरफ देवेंद्र फडणवीस राजनीति के 'चाणक्‍य' बनते गए तो संभवत: गलत नहीं होगा। लेकिन यह बात ‘जस्‍टिफाई’ करने से पहले बहुत महीन तरीके से उन वजहों को खोजना होगा, जिसके कारण उद्धव ठाकरे अस्‍त होते गए और फडणवीस ‘चाणक्‍य’ के तौर पर उभरते गए।

‘जनादेश का अपमान’
उद्धव ठाकरे के किले का इस तरह ध्‍वस्‍त हो जाने का पहला कारण तो जनादेश का अपमान माना जा रहा है। शिवसेना हमेशा से हिन्दुत्व की पैरोकार और भाजपा की राजनीतिक साथी रही है। साल 2019 में जब भाजपा और सेना ने मिलकर चुनाव लड़ा तो महाराष्‍ट्र की जनता ने इसी ‘भगवा पार्टनरशिप’ को वोट देकर जिताया था। लेकिन उद्धव ने जनादेश का अपमान करते हुए भाजपा का हाथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बना ली।

किंग मेकर नहीं, रिमोट कंट्रोल बने
दूसरा कारण उद्धव की राजनीतिक अतिमहत्‍वकांक्षा रही। शिवसेना के इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि बाल ठाकरे सत्‍ता में आए बगैर सत्‍ता चलाते थे और 'सरकार' कहलाए जाते थे। शिवसेना सरकार का मुख्‍यमंत्री कोई भी रहा हो, लेकिन रिमोट कंट्रोल तो बाला साहेब ठाकरे के हाथ में ही होता था। वो एक तरह से किंग मेकर की भूमिका में रहते थे। लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के साथ आकर उद्धव खुद उनका राजनीतिक रिमोट कंट्रोल बन गए। एकनाथ शिंदे के साथ आए बागी गुट ने भी यही आरोप लगाया है।

अपनों की अनदेखी : असल शिवसेना को भूले
उद्धव ठाकरे ने सत्‍ता में आने के बाद अपनों की अनदेखी की। वे अपनी पार्टी के लोगों से मिलते नहीं थे। कहा जा रहा है कि कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं और विधायकों का उनसे मिलना आसान था, लेकिन खुद शिवसेना के नेताओं से वे कई-कई महीनों से नहीं मिल रहे थे। जबकि बागी गुट के लोग बहुत नीचे से मेहनत करते हुए शिवसेना के पदों पर आए थे। इनमें से कई मंत्रियों का कहना है कि वे सिर्फ फाइलों पर हस्‍ताक्षर करने वाले बनकर ही रह गए। दूसरी तरफ शरद पवार, कांग्रेस के नाना पटोले और उनके लोगों को तरजीह दी गई। यह सारे आरोप भी बागी विधायकों ने उद्धव पर लगाए हैं। सोनिया गांधी के प्रति भी उनकी कृतज्ञता जग जाहिर है। ऐसे में हिन्दू मानसिकता के लोग धीरे-धीरे उनसे दूर होते गए।

राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ‘राजनीतिक विवशता’
कश्‍मीर में जब मोदी सरकार ने धारा 370 हटाई तो कांग्रेस ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी। लेकिन कांग्रेस नाराज न हो जाए इसलिए उद्धव ठाकरे ने भी इस पर चुप्‍पी साधे रखी। वहीं जब महाराष्‍ट्र के पालघर में साधुओं की निर्मम हत्‍या कर दी गई तो देशभर में इसे लेकर रोष व्‍यक्‍त किया गया, आम हिंदू भी इस घटना से बुरी तरह से नाराज था, लेकिन ठाकरे सरकार ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कंगना रनौत, अरनब गोस्‍वामी के मामलों में भी सरकार उलझती नजर आई।
ठीक इसी तरह फिल्‍म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्‍ध मौत के बाद भी सरकार पर कई आरोप लगे। हाल ही में नवनीत राणा के साथ हनुमान चालीसा विवाद में भी सरकार उलझ गई, जबकि उद्धव के सिपहसालार संजय राउत ने अपने बयानों से इन मुद्दों को और ज्‍यादा हवा दी। सरकार का एक ऐरोगेंट चेहरा उजागर हुआ। इन सब के साथ ही शिवसेना के नेताओं पर लगातार भ्रष्‍टाचार के आरोप लगते रहे, जिसमें ईडी ने इन सभी पर शिकंजा कसा। इन्‍हीं आरोपों के चलते सरकार में गृहमंत्री रहे और एनसीपी के नेता अनिल देशमुख की कुर्सी गई और वे जेल में हैं। वही नवाब मलिक भी ऐसे ही मामले में जेल में हैं।

चाणक्‍य के रूप में फडणवीस का ‘उदय’
महाराष्‍ट्र की राजनीति के इस पूरे परिदृष्‍य में देवेंद्र फडणवीस एक ऐसा नाम थे, जो शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के इन सारे मुद्दों को समय समय पर भुना रहे थे। उन्‍होंने शिवसेना की हर गलती को अवसर मानकर भुनाया, उसे मीडिया में उठाया। यह तो उनका वो चेहरा था जो परदे के सामने नजर आ रहा था, लेकिन वे परदे के पीछे भी शिवसेना सरकार की जमीन खिसकाकर अपनी जमीन बनाने में जुटे हुए थे। उन्‍होंने ढाई सालों में शिवसेना के खिलाफ अपनी मजबूत पकड़ बना ली और जैसे ही उन्‍हें शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे के रूप में सत्‍ता हथियाने का एक बड़ा मौका मिला उन्‍होंने कोई गलती नहीं की और महाराष्‍ट्र की राजनीति के ‘चाणक्‍य’ बन गए।

ऐसा लगता है कि देवेंद्र फडणवीस ने अपनी वापसी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। शायद यही वजह थी कि सत्ता छोड़ने से पहले उन्‍होंने विधानसभा में कहा था...
‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा’
शिवसेना को तभी समझ जाना चाहिए था, जब देवेंद्र फडणवीस यह शेर पढ़ रहे थे, कि वे शिवसेना को घायल करने वाले हैं।

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