वसुंधरा की खैर नहीं, मोदी से बैर नहीं...

वृजेन्द्रसिंह झाला
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ ही राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो चुकी है। राजस्थान का मतदाता इस बार फिर इतिहास को 'दोहराने' के मूड में दिख रहा है। क्योंकि पिछले सालों के इतिहास पर नजर डालें तो मरुधरा का मतदाता किसी भी दल को लगातार दूसरा मौका नहीं देता। हालांकि मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे की पूरी कोशिश सत्ता में लौटने की है, लेकिन उनकी राह मुश्किल ही दिखाई पड़ती है। 
 
गौरतलब है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा ने बड़ी ही चतुराई से राज्य की तीन प्रमुख जातियों को साध लिया था। उस समय उन्होंने राजपूतों से कहा था कि बेटी की लाज रखो, जाटों से कहा था कि बहू को ताज दो तो गुर्जरों से समधन की चुनरी की मान रखने की अपील की थी। उनकी यह रणनीति उस समय कारगर भी हुई थी और भाजपा को 200 में से 160 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी। 
 
इस बार जातिगत गणित वसुंधरा के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहा है। आनंदपाल सिंह एनकाउंटर के बाद वसुंधरा के प्रति राजपूतों में नाराजगी साफ दिखाई दे रही है। दूसरी ओर केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत के राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष नहीं बन पाने से यह नाराजगी और बढ़ी ही है। भाजपा हाईकमान ने भी शेखावत को अध्यक्ष बनाने का मन बनाया था, लेकिन ऐन मौके पर माली समाज से ताल्लुक रखने वाले मदनलाल सैनी को प्रदेश की कमान मिल गई। 
 
गुर्जर समाज भी आरक्षण से जुड़ी अपनी मांगें पूरी नहीं होने के कारण वर्तमान सरकार से नाराज है। साथ ही कांग्रेस हाईकमान ने गुर्जर समाज के युवा नेता सचिन पायलट को प्रदेश की जिम्मेदारी देकर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि पायलट राज्य के अगले मुख्‍यमंत्री हो सकते हैं।
 
दूसरी ओर अशोक गेहलोत को भी दिल्ली में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल गई है, अत: अब उनकी राज्य में वापसी की उम्मीद कम ही है। ऐसे में गुर्जर समुदाय सचिन को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा मतदान कर सकता है। हालांकि वसुंधरा के 'सैनी दांव' को माली समुदाय में सेंध लगाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जो अशोक गेहलोत से जुड़ा हुआ है। 
 
हाल ही में भाजपा छोड़कर नया दल बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी भी भगवा पार्टी का खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। एक तो चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अलग पार्टी बना ली है, दूसरे वे ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। ब्राह्मण वोटरों पर उनकी अच्छी पकड़ भी है। वे चुनाव भले ही चुनाव में खास प्रदर्शन नहीं कर पाएं लेकिन 'खेल बिगाड़ने' वाली स्थिति में तो रहेंगे ही। यदि भाजपा ब्राह्मण समुदाय को साधने में सफल नहीं हुई तो चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। 
 
वसुंधरा को लेकर लोगों का यह भी मानना है कि उनमें आज भी 'महारानी' वाली ठसक है। साथ ही उनके इस  कार्यकाल में जनता के हित में कोई खास काम नहीं हुए हैं। लोग तो यह भी मानते हैं जब अशोक गेहलोत  काफी काम करवाने के बावजूद चुनाव हार गए थे, तो फिर इनके लिए तो जीत दूर की कौड़ी हो सकती है। 
 
भाजपा को उपचुनाव में राजस्थान की जनता ट्रेलर तो दिखा ही चुकी है। अलवर और अजमेर की लोकसभा सीटें कांग्रेस ने भाजपा से छीन लीं। वहीं मांडल उपचुनाव में भी भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। यह हार इसलिए भी भाजपा  के लिए चिंता की बात है क्योंकि चुनाव के समय राज्य और केन्द्र दोनों ही जगह भाजपा की सरकार थी। 
 
हालांकि 2019 में एक बार फिर केन्द्र में वापसी का ख्वाब बुन रही भाजपा के लिए इस बात की राहत हो सकती है कि राजस्थान के लोगों में वसुंधरा को लेकर तो गुस्सा है, लेकिन मोदी को लेकर उनके मन में अभी भी एक नर्म कोना है। पिछले दिनों जयपुर के अमरूदों के बाग में हुई नरेन्द्र मोदी की सभा में यह देखने को भी मिला था। उस समय कई लोगों की जुबान पर यह नारा था- वसुंधरा की खैर नहीं, मोदी से बैर नहीं। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख