व्लादिमीर लेनिन के बारे में वे बातें जो आप जानना चाहते हैं

Webdunia
बुधवार, 7 मार्च 2018 (12:46 IST)
त्रिपुरा में भाजपा की जीत के बाद व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को बुलडोजर से ढहा दिया गया। इसके बाद से राजनीतिक पार्टियों में घमासान मचा हुआ है। व्लादिमीर इलीइच लेनिन को रूसी क्रांति और साम्यवाद का जनक माना जाता है। वामपंथी दल लेनिन को अपना आदर्श पुरुष मानते हैं। 22 अप्रैल 1870 में वोल्गा नदी के किनारे बसे सिम्ब्रिस्क शहर में जन्मे व्लादिमीर इलीइच लेनिन को मार्क्सवादी विचारधारा को राजनीतिक ढांचा देने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि लेनिन को काफी विवादित और भेदभाव फैलाने वाला नेता भी माना जाता है। लेनिन स्कूल में पढ़ाई में अच्छे थे और आगे जाकर उन्होंने कानून की पढ़ाई का फैसला किया। यूनिवर्सिटी में वे 'क्रांतिकारी' विचारधारा से प्रभावित हुए।


बताया जाता है कि उच्च योग्यता के साथ स्नातक बनने पर लेनिन ने 1887 में कजान विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रवेश लिया था लेकिन शीघ्र ही विद्यार्थियों के क्रांतिकारी प्रदर्शन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। साल 1889 में उन्होंने स्थानीय मार्क्सवादियों का संगठन बनाया था और उसके बाद लेनिन मार्क्सवादियों के एक बड़े नेता के रूप में उभरे।

इसी के चलते उन्हें रूसी क्रांति के दौरान जेल भी जाना पड़ा था। उन्होंने रूसी क्रांति पर 30 से ज्यादा किताबें भी लिखी हैं। मार्क्सवादी विचारक लेनिन के नेतृत्व में 1917 में रूस की क्रांति हुई था। व्लादिमीर लेनिन 1917 से 1924 तक सोवियत रूस की सरकार के प्रमुख थे।

उनके प्रशासन के अंतर्गत रूस और उसके बाद व्यापक सोवियत संघ रूसी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियंत्रित एक-पक्ष कम्युनिस्ट राज्य बन गया। लेनिन की सरकार ने जमीन ली और उसे किसानों, सरकारी बैंकों और बड़े उद्योगों के बीच बांटा। सेंट्रल पॉवर के साथ संधि पर हस्ताक्षर कर उसके पहले विश्वयुद्ध से हाथ खींचा। 1924 में लेनिन की मृत्यु हुई थी, लेकिन लेनिन के शव का आज तक अंतिम संस्कार नहीं किया गया।

लेनिन के शव को रूस में सुरक्षित रखा गया है। कई देशों पर लेनिन के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा और इन देशों में साम्यवाद का उदय हुआ। लेनिन के आलोचक उन्हें ऐसी तानाशाही सत्ता के अगुवा के रूप में याद करते हैं, जो राजनीतिक अत्याचार और बड़े पैमाने पर हत्याओं के लिए जिम्मेदार रहे हैं। लेनिन के राज्य में विरोधियों को लाल आतंक का सामना करना पड़ा। ये वह हिंसक अभियान था, जो सरकारी सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से चलाया गया। भारत में पंडित नेहरू से लेकर भगतसिंह पर लेनिन के विचारों का असर रहा। 90 के दशक में लेनिन कम्युनिस्ट देशों के प्रतीक बन गए। कहा जाता है कि अंतिम दिनों में लेनिन को पार्टी और उसके विचारों को लेकर शंका भी थी। 

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