क्‍यों केंद्र सरकार Marital Rape को नहीं रखना चाहती क्राइम के दायरे में, क्‍या है याचिकाकर्ताओं के तर्क?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024 (19:14 IST)
इन दिनों मैरिटल रेप (Marital Rape) की काफी चर्चा है। यह समाज में बहस का एक विषय बना हुआ है। पहले समझते है कि ये मैरिटल रेप क्‍या है। दरअसल, शादी के बाद अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के खिलाफ उसके साथ जबरदस्‍ती फिजिकल रिलेशन बनाता है, तो उसे मैरिटल रेप कहते हैं। हालांकि आपको बता दें कि भारत में अब तक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है। न ही इसे लेकर कोई कानून है। कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं।

बता दें कि इसी बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एफिडेविड दायर कर मैरिटल रेप को क्राइम के दायरे में लाने वाली याचिकाओं का विरोध किया है। यानी केंद्र सरकार चाहती है कि मैरिटल को अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाए। केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता मैरिटल रेप को लेकर आमने सामने हैं। सवाल यह है कि आखिर क्‍यों सरकार मैरिटल रेप को अपराध के दायरे से बाहर रखना चाहती है?

Marital Rape: कानूनी नहीं, सामाजिक मुद्दा: केंद्र ने कहा कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई अन्य सजाएं भारतीय कानून में मौजूद हैं। सरकार ने तर्क दिया कि मैरिटल रेप का मुद्दा कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक है। फिर भी अगर इसे अपराध घोषित करना ही है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

केंद्र ने कहा कि संसद ने पहले ही विवाह के अंदर शादीशुदा महिला की सहमति की सुरक्षा करने के कई उपाय किए हैं। इसमें IPC के सेक्शन 498A के तहत शादीशुदा महिला से क्रूरता, महिला की अस्मिता का उल्लंघन करने के खिलाफ कानून और घरेलू हिंसा से बचाव, 2005 का कानून शामिल है।

यौन संबंध दोनों की जिंदगी का हिस्सा: केंद्र ने कहा कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध केवल उनके संबंधों का एक हिस्सा है, और चूंकि भारत के सामाजिक और कानूनी संदर्भ में विवाह की संस्था की सुरक्षा आवश्यक मानी जाती है। इसलिए विधायिका अगर विवाह की संस्था की रक्षा को अहम मानती है, तो अदालत द्वारा इस अपवाद को समाप्त करना उचित नहीं होगा।

केंद्र ने यह स्वीकार किया कि शादी के बाद भी हालांकि महिला की सहमति का महत्व खत्म नहीं हो जाता है। महिला की गरिमा के किसी भी तरह के उल्लंघन पर आरोपी को सजा दी जानी चाहिए। अगर शादी के रिश्ते के बाहर इस तरह की घटना होती है, तो उसका नतीजा शादी के रिश्ते में होने वाले उल्लंघन से अलग होता है।

पत्‍नी के साथ जबरदस्‍ती न करे : पति को एंटी-रेप कानून के तहत सजा देना गैरजरूरी कार्रवाई केंद्र ने कहा कि विवाह में पति-पत्नी को एक-दूसरे से सेक्शुअल रिलेशन बनाने की उम्मीद रहती है। हालांकि, ऐसी उम्मीदों के चलते पति को यह अधिकार नहीं मिलता कि वह पत्नी के साथ जबरदस्ती करे। किसी पति को एंटी-रेप कानून के तहत सजा देना गैरजरूरी कार्रवाई हो सकती है।

कैसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मैरिटल रेप मामला?
बता दें कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए पहली याचिका 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई थी। लेकिन मोदी सरकार ने 2016 में मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि भारत में शादी को जिस संस्कार के रूप में मानने की मानसिकता रही है, उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।

सरकार ने एफिडेविट दायर किया : इसके बाद 2017 में केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया। पिछले दो साल में 2 हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग फिर से तेज हो गई।

भारत को जरूरत नहीं : केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है। सिर्फ इसी तर्क के आधार पर भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

क्‍या है याचिकाकर्ताओं के तर्क?
याचिकाकर्ताओं की दलील ये भी है कि रेप की परिभाषा में अविवाहित महिलाओं के मुकाबले शादीशुदा औरतों के साथ भेदभाव दिखता है। इस तरह विवाहित महिला से यौन गतिविधि के लिए सहमति देने का अधिकार छीन जाता है। उनका कहना है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना एक संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए जाने वाले समानता और यौन-निसेक्शुअल-पर्सनल जीवन में के अधिकारों के खिलाफ है।

क्‍या है निर्भया केस कनेक्‍शन : याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि 2012 में निर्भया केस के बाद आपराधिक कानून सुधार के लिए जे एस वर्मा कमेटी बनाई गई थी। 2013 में इस कमेटी ने मैरिटल रेप को IPC की धारा 375 के अपवाद से हटाने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने तब इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया था। लिहाजा अब इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिए।

कुल मिलाकर अब केंद्र सरकार और इसके लिए याचिका दायर करने वाले विशेषज्ञ आमने सामने आ गए हैं। सरकार के अपने तर्क हैं और याचिकाकर्ताओं के अपने। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्‍या फैसला करता है।
Edited by Navin Rangiyal

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