बीमारियों से बचाव के लिए चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन करें मां नर्मदाजी की दिव्य स्तुति

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पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस-19 से लड़ रहा है। इतने भयानक समय में भी हम अपने-अपने ईष्ट का स्मरण कर रहे हैं।इसकठिन समय में मां नर्मदा की प्रार्थना करें,वे हम पर कृपा करें, इस बीमारी से छुटकारा दिलाने वाली जगदम्बा जीवनदायिनी मां नर्मदा सबका उद्धार करे।
 
यह मां नर्मदा की स्तुति दुर्गा अष्टमी-नवमी के दिन करें। सबका उद्धार करने वालीं मां बीमारी से मुक्ति दिलाएंगी।
 
श्लोक : रेवे कृपा किन्न विधीयते त्वया दीनो भवनेष जन: प्रतीक्षते। दृष्टवा रुदन्तं शिशुमात्मजं न किं कारुण्यपूर्णा जननी त्वरायते।।
 
अर्थात हे मातु नर्मदे, तुम कृपा क्यों नहीं करतीं? दीन हुआ यह प्राणी सदैव प्रतीक्षा कर रहा है। बिलखते हुए अपने निराधार शिशु को देखकर भी करुणामय मां क्या आतुर हुई नहीं जातीं?
 
श्लोक : आकृष्यते देवि दयाद्र्बभावया जनस्त्वया दूरतरं गतोप्यहो। त्वदडकशय्याशरणाश्रित: शिशु: क्षुतृड्यूत: सन पयसा न तृप्यते।।
 
अर्थात हे देवी, दया से द्रवीभूत हुई तुम दूर गए जन को को भी अपनी और आकृष्ट कर लेती हों किंतु आश्चर्य कि भूखा-प्यासा तुम्हारी गोद में पड़ा हुआ शिशु तुम्हारे अमृतमय पय से तृप्त नहीं हो पाता।।
 
श्लोक : मनोगतो नैव समर्चना विधिनुर्ति न वाचापि च साधितुं क्षम:। यथा भवत्यो हध्दयं द्रविभवत कृपां विद्यते रहितस्तयाप्यहम।।
 
अर्थात हे नर्मदे, तुम्हारी अर्चना विधि भी भली-भांति मेरे हृदयगत नहीं हो सकी और न स्तुति करने में वाणी ही समर्थ हुई। जिस भांति तुम द्रवीभूत होकर जन पर कृपा करती हो, उससे भी मैं सर्वथा हीन हूं।।
 
श्लोक : परानुकंपा तव नानभुयते, यतो हि लोका विषयेषु सस्पृहा:। असीममाधुर्यसुधां पिबन बुध: को नाम हालाहलमतुमीहते।
 
अर्थात तुम्हारा परमोत्तम प्रसाद न प्राप्त कर पाने से ही प्राणी विषयों की आकांक्षा करते हैं। अपार माधुरी सुधा का पान करता हुआ कौन बुद्धिमान हलाहल विषपान खाने की चेष्टा करेगा?
 
श्लोक : भोगेषु मुढ: क्षणभड गुरेष्वहो, प्रीति विद्यते न तू पारमेश्वरीम। यस्या: फलं जन्ममृतिमुहुमुहुस्तां दु:ख मूलां जहि देवि नर्मदे।।
 
अर्थात आश्चर्य है! मूढ़ मनुज, क्षणभंगुर विषयों में प्रीति करते हैं, परमेश्वर में नहीं। हे देवि नर्मदे! जिसका फल बारंबार जन्मना- मरना ही है। ऐसे दुःख की जड़रूप का समाधान शीघ्र करें।
 
श्लोक : पुण्यातिरम्या त्रिदशै: सुपूजिता: धन्या निखिलैमंहषिभि:। भूतेशकन्या जयतादनारतं, नान्या वरेण्या मम देवि नर्मदे।।
 
अर्थात समस्त मुनि व ऋषियों की माता, देवताओं से सुपूजित, पुण्यशीला अत्यंत रमणीय, महेश्वर की कन्या नर्मदा धन्य है। सदा ही तुम्हारी जय हो। हे देवि नर्मदे! मुझे तो तुम्हीं एक पूजनीय प्रतीत होती हों।
 
श्लोक : नमो नर्मदायै निजानन्ददायै, नम: शर्मदायै शमाधर्पिकायै। नमो वर्मदायै वराभीतिरायै, नमो हर्म्यदायै हरं दर्शिकायै।।
 
अर्थात निजानंद प्रदान करने वाली नर्मदा को नमस्कार है। अभय वरदान देने वाली नर्मदा को नमस्कार है एवं सभी ओर हर का दर्शन कराने वाली हर्म्यदानाम नर्मदा को सदैव नमस्कार है।
 
श्लोक : त्वदीयं जलं येन पीतं च गीतं प्रभुतं पूतं श्रुतं वा। यमस्यापि लोकादभीतेन तेन, श्रितं धाम शैवं नवं वैभवं धा।।
 
अर्थात जिसने हे देवि नर्मदे, तुम्हारा जल पिया एवं प्रचुर-पवित्र यश कानों से श्रवण किया, वह यमलोक से भी निडर हूआ है और वह शिवधाम का आश्रय लेता है, साथ ही यश-वैभव प्राप्त को करता है।

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