प्रकृति से छिपा लूं बसंत बहार

रेखा भाटिया
यह कैसी बसंत ऋतु दिल पर छाई,
जब कोमल विचारों की बयार बहती आई।
 
सपनों की पंखुड़ियों पर दस्तक दी निंदिया ने,
नीले आकाश तले आरजुएं तितलियों-सी मंडराईं।
 
कोमल-कोमल नभ छूते रहे तमन्नाओं को,
दिल में खुशियां बिछीं वहां हरित कालीन बन।
 
जिन पर हौले-हौले उमंगें पग बढ़ाती आईं,
गुदगुदाती यादें ओंस बनकर सिमट आईं।
 
प्रभात की चमक में वो दमकने लगी दर्पण बन,
जिसमें उभरे अक्स से छेड़छाड़ को उकसाता मन।
 
रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों-सा अरमानों का कारवां,
गुनगुनाती धूप सेंकता गुजरता हर पल।
 
पक्षियों की चहचहाहट में हजारों गीतों की धुन,
दूर धुंध में उभरता अनुरागी चेहरा।
 
निंदिया पर जब छाई सुहानी बसंत बहार,
दिनभर की थकी प्रतीक्षा के बाद।
 
वक्त को थाम लूं, ठहरा लूं,
फिर कभी अंखियां न खोलना चाहूं।
 
प्रकृति से कहीं छिपा लूं छाई यह बसंत बहार!

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

होली 2025: भांग और ठंडाई में क्या है अंतर? दोनों को पीने से शरीर पर क्या असर होता है?

होली सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है... होली 2025 पर 10 लाइन निबंध हिंदी में

महिलाओं के लिए टॉनिक से कम नहीं है हनुमान फल, जानिए इसके सेवन के लाभ

चुकंदर वाली छाछ पीने से सेहत को मिलते हैं ये अद्भुत फायदे, जानिए कैसे बनती है ये स्वादिष्ट छाछ

मुलेठी चबाने से शरीर को मिलते हैं ये 3 गजब के फायदे, जानकर रह जाएंगे दंग

सभी देखें

नवीनतम

संभल में होली और जुम्मा विवाद यूं ही नहीं

मन को शांत और फोकस करने का अनोखा तरीका है कलर वॉक, जानिए कमाल के फायदे

क्या है वजन घटाने नया फ़ॉर्मूला 5:2 डाइट? जानिए इसके फायदे

होली का रंग नहीं पड़ेगा स्किन पर भारी, यह घरेलू नुस्खा है सबसे असरदार

नारी पर कविता : मेरी भूमिका

अगला लेख