प्रवासी कविता : कितनी तन्हा हूं मैं...

रेखा भाटिया
क्या कभी मैंने तुमसे कहा
कितनी तन्हा हूं मैं
माला जपी राम मिला
फिर भी तन्हा हूं मैं।
 
कर्तव्य को धर्म मान
वन गई हरण हुई
एकांत बैठी मुक्ति की बाट जोहि
चरित्र रक्षा की लड़ाई थी मेरी।
 
मेरी दृढ़ता मेरी रक्षक
अच्छाई-बुराई की जंग छिड़ी
हिंसा-बलप्रयोग योग बने
अच्छाई जीत मेरी मुक्ति बनी।
 
बुराई मरी, फिर भी मैं छोड़ी गई
वाहवाही राम लूटी
फिर वन भटक-भटक सदियां
सवाल पूछूं किससे मैं तन्हा।
 
दरबार सजे बोली को मेरी हर ओर
लज्जा लूटी या बचाई
पांचाली भी पुकारा
मेरी मर्जी कब कहां जन जानी।
 
पांच पांडव सौ कौरव पर भारी
तब संभव जब कृष्ण भीतर जगाई
पुरुष मन को पुरुषार्थ समझाई
वाहवाही अर्जुन कृष्ण संग लूटी।
 
मैं तन्हा अब भी हूं
एक राम था, एक रावण
अनेक रावण, कितने हैं राम
पाशविक आचरण ओढ़े कई वन में।
 
वाहवाही राम ही लूटो
संग रहो वन में अकेला ना छोड़ो
अन्यथा ज्ञान भी बंटेंगे सदियों 
युद्ध भी छिड़ेंगे सदियों।
 
आबरू पर सवाल खत्म न होंगे
मैं तन्हा आज भी।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पापा सिर्फ शब्द नहीं, पूरी जिंदगी का सहारा हैं...फादर्स डे पर इमोशनल स्पीच

वॉकिंग या जॉगिंग करते समय ना करें ये 8 गलतियां, बन सकती हैं आपकी हेल्थ की सबसे बड़ी दुश्मन

मानसून में हार्ट पेशेंट्स की हेल्थ के लिए ये फूड्स हैं बेहद फायदेमंद, डाइट में तुरंत करें शामिल

फादर्स डे पर पापा को स्पेशल फील कराएं इन खूबसूरत विशेज, कोट्स और व्हाट्सएप मैसेज के साथ

क्या आपको भी ट्रैवल के दौरान होती है एंग्जायटी? अपनाएं ये टॉप टिप्स और दूर करें अपना हॉलिडे स्ट्रेस

सभी देखें

नवीनतम

सावधान! रोज की ये 5 आदतें डैमेज करती हैं आपका दिमाग

ऑफिस में थकान दूर करने वाले 8 हेल्दी स्नैक्स

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के 10 प्रेरणादायक विचार, जो जीवन को नई दिशा देते हैं

संबंधों का क्षरण: एक सामाजिक विमर्श

Heart touching पापा पर कविता हिंदी में

अगला लेख