प्रवासी कविता : मेरी भारत माता

पुष्पा परजिया
याद तो बहुत आती है 
आंखें भी भर जाती हैं 
 
दूर हूं तुझसे इतनी कि तेरी
सीमा भी नजर न आती है
 
तू तो रही है सदा से आरजू मेरी 
मेरी भारत माता 
तू तो बसी है मेरे मन में पर 
क्या करूं यहां से तुझे न देखा जाता
 
वो मेरा प्यारा सा गगनचुंबी हिमालय 
वो बहती गंगा की धारा
वो विशाल पूरब के मंदिर 
वो पश्चिम का द्वारा
 
वो दक्षिण में रामेश्वरम् और 
वो उत्तर का प्यारा सा नजारा 
जिसे देख खिल जाती मन की बगिया 
ऐसा है तिरंगा प्यारा हमारा
 
तुझे सताने को दुश्मन रहते सदा तैनात 
करते वार पहला वो हरदम 
पर खाते हैं हरदम जोरों की मात 
क्योंकि हम सब एक हैं तू है हमारा हिन्दुस्तान
 
तू है हम सबकी जान और शान 
कभी आए गोरे, कभी आए आतंकवादी
कभी सताया मंदिरों में जाकर तो कभी की गेटवे ऑफ इंडिया में बर्बादी
फिर भी न पा सके वो हमको क्योंकि हम सब एक हैं भारतवासी।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या अपने पालतू जानवर के साथ एक बेड पर सोना है सही? जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

बदलते भारत में सेक्स बदलने की होड़, हॉर्मोन की गड़बड़ी या कोई मनोविकृति?

10 दिनों तक खाली पेट पिएं दालचीनी का पानी, फायदे जानकर रह जाएंगे दंग

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मददगार हैं आसानी से मिलने वाले ये 9 आयुर्वेदिक हर्ब्स

ये है मोबाइल के युग में किताबों का गांव, पढ़िए महाराष्ट्र के भिलार गांव की अनोखी कहानी

सभी देखें

नवीनतम

पुण्यतिथि विशेष: मोटीवेशनल स्वामी विवेकानंद कोट्स

बिना धूप में निकले कैसे पाएं ‘सनशाइन विटामिन’? जानिए किन्हें होती है विटामिन डी की कमी?

बारिश है पसंद तो बेटी को दीजिए बरखा से प्रभावित ये नाम, अर्थ भी हैं सुन्दर

'मां' और ‘ममता’ की धरती पर क्यों खतरे में है स्त्री की अस्मिता!

यंगस्टर्स में बढ़ती जा रही हार्ट अटैक की समस्या, क्यों है खतरे की घंटी?

अगला लेख