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Ahoi ashtami Katha: अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा

WD Feature Desk
शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 (15:07 IST)
Ahoi Ashtami Katha in Hindi: अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए मां पार्वती के प्रति अटूट विश्वास और संकल्प को दर्शाती है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।ALSO READ: Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी पूजा कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि और कथा

यहां वेबदुनिया के प्रिय पाठकों के लिए प्रस्तुत है अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा... 
 
कथा:  

प्राचीन समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। साहूकार के सात बेटे थे और उनकी एक बहू थी। साहूकार का परिवार बहुत सुखी था, लेकिन उसकी बहू को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया था, जिसका दुख उसे हमेशा रहता था।
 
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के कुछ दिन पहले, दिवाली से ठीक पहले, साहूकार की बहू जंगल में मिट्टी लेने के लिए गई। उसे अपने घर के लीपने और सजाने के लिए मिट्टी की जरूरत थी। जब वह जंगल में मिट्टी खोद रही थी, तो अनजाने में उसकी कुदाल एक साही (Sahi) के बच्चे को लग गई। साही का बच्चा उसी कुदाल के वार से मर गया।
 
इस घटना से साहूकार की बहू को बहुत पश्चाताप हुआ। वह बहुत दुखी हुई और साही के बच्चे की मृत्यु के कारण वह बहुत भयभीत हो गई। जल्द ही, उसे एक और बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़ा। साही के बच्चे की मृत्यु के दोष के कारण, एक-एक करके उसके सातों बेटों की भी मृत्यु हो गई।ALSO READ: Rama Ekadashi Katha 2025: राजा मुचुकुंद का धर्मपरायण शासन और एकादशी व्रत कथा
 
बेटों की मृत्यु से साहूकार और उसकी बहू गहरे शोक में डूब गए। बहू को समझ आ गया था कि यह सब साही के बच्चे को मारने के पाप का फल है। जब साहूकार की बहू ने अपनी यह दुखभरी कहानी अपनी पड़ोस की स्त्रियों को बताई, तो उन्होंने उसे यह सलाह दी: 'हे बहू, तुम बहुत दुखी हो। यदि तुम अपने इस पाप से मुक्ति पाना चाहती हो और अपनी संतानों का सुख वापस पाना चाहती हो, तो तुम्हें अहोई माता का व्रत करना चाहिए। अहोई अष्टमी के दिन तुम साही और साही के सात बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और सच्चे मन से अपनी भूल के लिए उनसे क्षमा मांगो। अहोई माता, जो कि मां पार्वती का ही रूप हैं, तुम्हें अवश्य क्षमा करेंगी और तुम्हारी संतान को लंबी आयु का आशीर्वाद देंगी।'
 
साहूकार की बहू ने श्रद्धापूर्वक उनकी बात मानी। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर, उसने पूरे विधि-विधान से अहोई माता का व्रत किया। उसने दीवार पर साही और उसके बच्चों का चित्र बनाया, कलश स्थापित किया और रात को तारों को अर्घ्य देकर माता की पूजा की।
 
उसने अपने मृत बेटों के लिए पश्चाताप किया और सच्चे मन से अहोई माता से अपने पापों की क्षमा मांगी। साहूकार की बहू की सच्ची श्रद्धा और पश्चाताप से अहोई माता (मां पार्वती) बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने बहू को दर्शन दिए और उसे क्षमा करते हुए वरदान दिया कि उसके सभी पुत्रों को लंबी आयु प्राप्त होगी।
 
अहोई माता के आशीर्वाद से, साहूकार की बहू को वापस से संतान सुख मिला और उसके पुत्र दीर्घायु हुए। तभी से यह परंपरा बन गई कि संतान की लंबी उम्र, सुख और कल्याण के लिए माताएँ अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं।
 
व्रत का सार: यह कथा बताती है कि अज्ञानतावश या जानबूझकर किए गए पापों के लिए सच्चा पश्चाताप और क्षमा याचना ही मुक्ति का मार्ग है, और मां पार्वती सभी माताओं की संतानों की रक्षक हैं।
 
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