Amla Navami 2020: 23 नवंबर को आंवला नवमी, जानिए पौराणिक रहस्य

Webdunia
वर्ष 2020 में आंवला नवमी 23 नवंबर को मनाई जा रही है। कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी, आंवला नवमी या युगतिथि कहते हैं। यह तिथि युगों-युगों से अक्षय फलदायक मानी गई है। इसी दिन आंवले के वृक्ष की पूजा कर इसी वृक्ष की छाया में भोजन करने का विधान है। 
 
सारा संसार जब जलमग्न था एवं ब्रह्म देव कमल पुष्प में बैठ कर निराकार परब्रह्मा की तपस्या कर रहे थे. 'टप, टप, टप, टप' सारे ब्रम्हांड में ब्रम्हा जी के नेत्रों से, ईश-प्रेम के अनुराग के टपकते अश्रुओं की ध्वनि गूंज उठी तथा इन्हीं प्रेम अश्रुओं से जन्म हुआ आंवले के वृक्ष का। 
 
कार्तिक महात्म्य में आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने को 'अन्न-दोष-मुक्ति' कहा है। श्री हरि को आंवला सर्वाधिक प्रिय है, इसीलिए कार्तिक में रोज एक आंवला फल खाने की आज्ञा धर्मशास्त्र देते हैं। 
 
अब जरा आंवले का सौ प्रतिशत आर्यसत्य भी जान लें- 'वय:स्थापन' यह आचार्य चरक कहते हैं. अर्थात सुंदरता को स्तंभित (रोक कर) करने के लिए आंवला अमृत है। बूढ़े को जवान बनाने की क्षमता केवल आंवले में है। आखिर इसमें सत्यता कितनी है? इसे विज्ञान की दृष्टि से देखते हैं- शरीर के अंगों में नए कोषाणुओं का निर्माण रुक जाने, कम हो जाने से कार्बोनेट अधिक हो जाता है, जो घबराहट पैदा करता है। आंवला पुराने कोषाणुओं को भारी शक्ति प्रदान करता है, ऑक्सिजन देता है। 
 
संक्षिप्त में आंवला चिर यौवन प्रदाता, ईश्वर का दिया सुंदर प्रसाद है। आंवला एकमात्र वह फल है, जिसे उबालने पर भी विटामिन 'सी' जस-का-तस रहता है। च्यवनप्राश में सर्वाधिक आंवले का प्रयोग होता है। आंवले को कम-ज्यादा प्रमाण में खाने से कोई नुकसान नहीं है, फिर थोड़ा-सा शहद डाल कर खाने से अति उत्तम स्वास्थ्य-लाभ होता है। 
 
आयुर्वेद में आंवले को त्रिदोषहर कहा गया है। यानी वात, पित्त, कफ इन तीनों को नियंत्रित रखता है आंवला. सिरदर्द, रक्तपित्त, पेचिश, मुखशोथ, श्वेद प्रदर, अपचन जनित ज्वर, वमन, प्रमेह, कामला, पांडु, दृष्टिदोष एवं शीतला जैसे हजारों रोगों में आंवले का उपयोग होता है। आंवला केवल फल नहीं, हजारों वर्ष की आयुर्वेदाचार्यों की मेहनत का अक्षयपुण्य फल है। आंवला धर्म का रूप धारण कर हमारे उत्तम स्वास्थ्य को बनाए रखता है। 
 
आंवला नवमी से तुलसी विवाह आरंभ हो कर पूर्णिमा तक शुभ फलदायी रहता है।
 
यह है आंवला नवमी की कथा संक्षेप में- किशोरी नामक कन्या की जन्मकुंडली में वैधव्य योग रहता है। अक्षय नवमी को वह किशोरी तुलसी का व्रत करती है। पीपल, तुलसी का पूजन करती है। विलेपी नामक युवक किशारी से प्रेम करता है एवं किशोरी का स्पर्श होते ही वह मृत्यु को प्राप्त करता है। इधर राजकुमार मुकुंद किशोरी को प्राप्त करने का वरदान सूर्य से प्राप्त करता है। ईश्वर का लिखा (भाग्य) भी पूरा हो जाता है। वैधव्य योग भी पूर्ण होता है तथा मुकुंद को पत्नी रूप में किशोरी भी प्राप्त हो जाती है। 
ALSO READ: क्यों और कैसे मनाते हैं आंवला नवमी का त्योहार और क्या हैं इसके फायदे
सेहत के लिए बहुत लाभकारी है आंवला, जानिए गजब के फायदे

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

Kartik Purnima 2024: कार्तिक मास पूर्णिमा का पुराणों में क्या है महत्व, स्नान से मिलते हैं 5 फायदे

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

सभी देखें

धर्म संसार

December Month Festival Calendar : दिसंबर पर्व एवं त्योहार 2024

Dev Diwali 2024: प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त और मणिकर्णिका घाट पर स्नान का समय एवं शिव पूजा विधि

Mokshada ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी कब है, क्या है श्रीकृष्‍ण पूजा का शुभ मुहूर्त?

Dev Diwali 2024: वाराणसी में कब मनाई जाएगी देव दिवाली?

Pradosh Vrat 2024: बुध प्रदोष व्रत आज, जानें महत्व और पूजा विधि और उपाय

अगला लेख