भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ज्येष्ठा गौरी पूजन व्रत मनाया जाता है। मान्यतानुसार अपने सुहाग की रक्षा के लिए जब असुरों से पीड़ित सर्व स्त्रियां श्री महालक्ष्मी माता गौरी की शरण में गईं तब उन्होंने इसी दिन असुरों का संहार करके उनके शरण में आई सभी स्त्रियों के पतियों की रक्षा करके सभी प्राणियों को सुखी किया था।
हिंदू धर्म में इस व्रत की महिमा अपरंपार है। अखंड सुहाग की प्राप्ति की कामना से इस दिन महिलाएं ज्येष्ठा गौरी का व्रत करती हैं। अष्टमी के दिन मां गौरी विसर्जन किया जाता है। यह पर्व महाराष्ट्र और कर्नाटक में विशेष महत्व का माना गया है।
सरल पूजन विधि-
ज्येष्ठा गौरी पूजन व्रत 3 दिनों का होता है।
इस व्रत के लिए धातु या मिट्टी की प्रतिमा बनाकर अथवा कागज पर श्री लक्ष्मी का चित्र बनाकर उस चित्र का, तथा कई स्थानों पर नदी के तट से पांच कंकड़ लाकर उनका गौरी के रूप में पूजन किया जाता है।
महाराष्ट्र में अधिकतर स्थानों पर पांच छोटे मिट्टी के घडे एक के ऊपर एक रखकर उस पर मिट्टी से बना गौरी का मुखौटा रखते हैं। कुछ स्थानों पर सुगंधित फूल देने वाली वनस्पतियों के पौधे अथवा गुलमेहंदी के पौधे एकत्र कर बांधकर उनकी प्रतिमा बनाते हैं और उस पर मिट्टी से बना मुखौटा चढ़ाते हैं।
उस मूर्ति को साड़ी पहना कर गहणों से सजाकर उसका पूजन करते हैं।
गौरी की स्थापना के दूसरे दिन उनका पूजन कर नैवेद्य निवेदित किया जाता है।
और तीसरे दिन गौरी का नदी में विसर्जन किया जाता हैं। मान्यतानुसर इस दिन घर लौटते समय उस नदी की रेत अथवा मिट्टी घर लाकर पूरे घर में छिड़कते हैं।
ज्येष्ठ गौरी पूजन का यह पर्व 12 सितंबर, रविवार को अनुराधा नक्षत्र में प्रारंभ हुआ था, जो कि 14 सितंबर, मंगलवार को ज्येष्ठ गौरी का विसर्जन होगा। 14 सितंबर को अष्टमी के तिथि के दिन सुबह 07:05 मिनट से शाम 06:42 मिनट तक गौरी विसर्जन का मुहूर्त है। इसकी कुल अवधि- 11 घंटे, 37 मिनट तक रहेगी। मूल नक्षत्र में सुबह 07:05 बजे से प्रारंभ होकर 15 सितंबर, 2021 को प्रात: 05:55 मूल नक्षत्र समाप्त होगा।