श्री राधा जी के जन्म से लेकर हर चमत्कार की 11 शुभ घटनाएं

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 15 मार्च 2024 (18:09 IST)
Story of Radha: द्वारिका, जगन्नाथ सहित सारे धाम भले ही श्रीकृष्ण के हों लेकिन ब्रजधाम तो श्री राधारानी का ही धाम है, उसमें भी वृंदावन में तो राधाजी साक्षात विराजमान हैं। श्रीराधा जी का जिक्र विष्णु, पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। इसके इतर भी मान्यता और किवदंतियों प्रचलित हैं। आओ जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी 11 शुभ घटनाएं।
 
1. जन्म स्थान : राधाजी का जन्म बरसाने में हुआ था। यह भी कहते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए।
 
2. जन्म तिथि : पुराणों के अनुसार भाद्रपद की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और इसी माह की के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी राधा का जन्म भी हुआ था। 
 
3. जन्म नाम : पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक वैष्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। उनका नाम वृषभानु कुमारी पड़ा।
 
4. प्रथम मिलन : दक्षिण में प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्‍ण को तब देखा था ज‍बकि माता यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। श्रीकृष्ण को देखकर श्रीराधा बेसुध सी हो गई थी। उत्तर भारतीय मान्यता अनुसार कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी।
 
5. मुरली की धुन सुन बेसुध हो जाती थीं राधाजी : कहते हैं कि श्रीराधा के परिवार को जब पता चला कि यह श्रीकृष्‍ण की मुरली सुनकर उनके प्रेम में नाचती हुई उनके पास पहुंच जाती है और फिर सभी गोपियों के साथ नृत्य किया जाता था। कभी मधुबन में तो कभी निधिवन में। यह देखकर उनके माता पिता ने श्रीराधा को घर में ही कैद कर दिया था। 
6. महारास : श्रीकृष्ण ने अपने साथियों सहित एक दिन उन्हें रात में कैद से मुक्त कराकर उद्धव और बलराम सहित अन्य सखियों के साथ रातभर नृत्य किया था। यह रात पूर्णिमा की रात थी जब महारास हुआ था। बाद में श्रीराधा की मां राधा के कक्ष में गई तो राधा उन्हें वहां सोते हुए मिली। भगवान श्रीकृष्‍ण से श्रीराधा लगभग 5 वर्ष बड़ी थी। श्रीराधा एक सिद्ध और संबुद्ध महिला थीं।
 
7. प्रेम की निशानी : भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थी। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
 
8. अष्ट सखियां : श्रीराधा राधी की अष्ट सखियां थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। सभी सखियां श्रीकृष्ण और श्रीराधा की सेवा में लगी रहती थीं। सभी के कार्य अलग अलग नियुक्त थे। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है।
 
9. राधा का विवाह : ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड 2 के अध्याय 49 के श्लोक 39 और 40 के अनुसार राधा जब बड़ी हुई तो उनके माता पिता ने रायाण नामक एक वैश्य के साथ उसका संबंध निश्चित कर दिया। रायाण माता यशोदा का सगा भाई था।

10. उद्धव भी हुआ राधामय : मथुरा जाने के बाद राधा और कृष्ण का कभी मिलन नहीं हुआ। हां, उधव जरूर सखा, श्रीराधा और गोप गोपियों को ज्ञान की शिक्षा देने गए थे ताकि वे श्रीकृष्ण की भक्ति को छोड़कर निराकार प्रभु के सत्य का जानें, लेकिन राधा को स्वयं लक्ष्मी थीं और सिद्ध थीं। उनके प्रभाव के चलते ज्ञान ध्यान को छो़कर उद्धव ही भक्ति में पागल हो चले थे।
 
11. श्रीराधा का देहांत : कहते हैं कि इसके बाद श्रीराधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब श्री राधा से‍ विनय करके कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया। फिर राधा महल से दूर एक जंगल के गांव में रहने लगीं और जब अंत समय आया तो श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

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