सिंधारा दूज 2022 : सिंधारा दूज क्यों मनाते हैं, कैसे होती है इसकी पूजा, जानिए

Webdunia
शनिवार, 2 अप्रैल 2022 (16:45 IST)
Sindhara dooj 2022 : चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा के दूसरे दिन द्वितीया पर सिंधारा दौज या सिंधारा दूज का पर्व मनाया जाता है। सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सिंधारा दूज पर्व 3 अप्रैल 2022 दिन रविवार को मनाया जाएगा।
 
 
सिंधारा दूज क्यों मनाते हैं : मान्यता के अनुसार यह त्योहार सभी बहुओं को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर अपने परिवार और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। अपने जीवन में वैवाहिक सुख एवं मांगल्य की कामना करती हैं। कुछ महिलाएं इस दिन उपवास करती है तो कुछ पूजा नियमों का पालन करती हैं। 
 
किसकी होती है पूजा : इस दिन माता के रूप ब्रह्मचारिणी और गौरी रूप की पूजा की जाती है। 
 
कहां मनाते हैं यह पर्व : यह पर्व खासकर उत्तर भारतीय महिलाओं में प्रचलित है परंतु तमिलनाडु और केरल में, महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है।
 
कैसे मनाते हैं यह पर्व : सिंधारा दूज को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर माता गौरी और ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करती हैं। महिलाएं एक-दूसरे के साथ उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। इस दिन महिलाएं अपने पारंपरिक कपड़े और आभूषण पहनती हैं। वे इस दिन नई चूड़ियां खरीदती हैं। इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों हाथों और पैरों में मेहंदी लगाती हैं। सिंधारा दूज पर बहुओं को उनकी सास द्वारा उपहार देने की परंपरा भी है। 
 
सिंधारा दूज की पूजन विधि : 
1. इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को मिठाई और फूल अर्पण कर पूजा की जाती है।
2. शाम को, गौर माता की पूजा पूरी भक्ति के साथ की जाती है। 
3. महिलाएं देवी की मूर्ति की पूजा करती हैं और धूप, दीपक, चावल, फूल और मिठाई के रूप में कई प्रसाद चढ़ाती हैं।
4. पूजा के बाद, बहुओं को अपनी सास को ‘बया’ भेंट करती हैं।
 
सिंधारा दूज का महत्त्व : इस दिन चंचुला देवी ने मां पार्वती को सुन्दर वस्त्र आभूषण चुनरी चढ़ाई थी जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। इसी कारण इस सास अपनी बहुओं को उपहार भेंट करती हैं और बहुएं इन उपहारों के साथ अपने मायके जाती है। सिंधारा दूज के दिन, बहुएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए ‘बाया’ लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। ‘बाया’ में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है। संध्याकाल में गौर माता या माता पार्वती की पूजा करने के बाद, अपने मायके से मिला ‘बाया’ अपनी सास को यह भेंट करती हैं।  
  

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Weekly Horoscope: 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा सप्ताह, पढ़ें साप्ताहिक राशिफल (18 से 24 नवंबर)

Mokshada ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी कब है, क्या है श्रीकृष्‍ण पूजा का शुभ मुहूर्त?

Shani Margi: शनि का कुंभ राशि में मार्गी भ्रमण, 3 राशियां हो जाएं सतर्क

विवाह पंचमी कब है? क्या है इस दिन का महत्व और कथा

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा?

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: आज क्‍या कहते हैं आपके तारे? जानें 22 नवंबर का दैनिक राशिफल

22 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

22 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Prayagraj Mahakumbh : 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइटों से संवारा जा रहा महाकुंभ क्षेत्र

Kanya Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: कन्या राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

अगला लेख