तेजादशमी विशेष : क्यों और कब मनाया जाता है यह पर्व, पढ़ें कैसे हुई इसकी शुरुआत

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भारत के अनेक प्रांतों में तेजादशमी का पर्व श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजदशमी पर्व मनाया जाता है। नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को जिन-जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, मेला लगता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने एवं बाबा की प्रसादी ग्रहण करने तेजाजी मंदिर में जाते हैं। 
 
इन मंदिरों में वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती (धागा) छोड़ा जाता है। माना जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति, पशु यह धागा सांप के काटने पर बाबा के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं। इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है। 
 
तेजादशमी के पर्व की शुरुआत कैसे हुई : - लोकदेवता वीर तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गांव के मुखिया थे। वे बचपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। बड़े होने पर राजकुमार तेजा की शादी सुंदर गौरी से हुई।

 
एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जाते हैं। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग (सर्प) घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डसना चाहता है।
 
वीर तेजा उसे रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, परंतु भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता। तब तेजा उसे वचन देते हैं- 'हे भाषक नाग, मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गायें छुड़ा लाने के बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डस लेना, यह तेजा का वचन है।' तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग रास्ता छोड़ देता है।

 
जंगल में डाकू मेणा एवं उसके साथियों के साथ वीर तेजा भयंकर युद्ध कर उन सभी को मार देते हैं। उनका पूरा शरीर घायल हो जाता है। ऐसी अवस्था में अपने साथी के हाथ गायें बहन पेमल के घर भेजकर वचन में बंधे तेजा भाषक नाग की बांबी की ओर जाते हैं।

 
घोड़े पर सवार पूरा शरीर घायल अवस्था में होने पर भी तेजा को आया देखकर भाषक नाग आश्चर्यचकित रह जाता है। वह तेजा से कहता है- 'तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारूं?' तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ बताकर कहते हैं- 'हे भाषक नाग, मेरी जीभ सुरक्षित है, उस पर डस लो।'
 
वीर तेजा की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है- 'आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।' उसके बाद भाषक नाग घोड़े के पैरों पर से ऊपर चढ़कर तेजा की जीभ पर दंश मारता है। उस दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है। 
 
मत-मतांतर से यह पर्व मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ के तलून, साततलाई, सुंद्रेल, जेतपुरा, कोठड़ा, टलवाई खुर्द आदि गांवों में नवमी एवं दशमी को तेजाजी की थानक पर मेला लगता है। बाबा की सवारी (वारा) जिसे आती है, उसके द्वारा रोगी, दुःखी, पीड़ितों का धागा खोला जाता है एवं महिलाओं की गोद भरी जाती है। सायंकाल बाबा की प्रसादी (चूरमा) एवं विशाल भंडारा आयोजित किया जाता है।
 
ऐसे सत्यवादी और शूरवीर तेजाजी महाराज के पर्व पर उनके स्थानों पर लोग मन्नत पूरी होने पर पवित्र निशान चढ़ाते हैं तथा पूजन-अर्चन के साथ कई स्थानों पर मेले के आयोजन भी होते है। लोकदेवता तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान शोभायात्रा के रूप में तेजाजी की सवारी निकलेगी और भंडारे के आयोजन भी होंगे। 

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