vishwakarma puja Arti : श्री विश्वकर्मा जी की 4 आरती एक साथ यहां मिलेगी

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1. पंचमुखी विश्वकर्मा की आरती : जय पंचानन देवा, प्रभु जय पंचानन देवा
 
     ॐ जय पंचानन देवा, प्रभु जय पंचानन देवा। ब्रह्मा विष्णु शंकर आदि करते नित्य सेवा। 1।
     भव मय त्राता जगत विधाता, मुक्ति फल दाता। स्वर्ण सिंहासन मुकुट शीश चहूं, सबके मन भाता। 2।
     प्रभात पिता भवना (माता) विश्वकर्मा स्वामी। विज्ञान शिल्प पति जग मांहि, आयो अन्तर्यामी। 3।
     त्रिशुल धनु शंकर को दीन्हा, विश्वकर्मा भवकर्ता। विष्णु महल रचायो तुमने, कृपा करो भर्ता। 4।
     भान शशि नक्षत्र सारे, तुम से ज्योति पावें। दुर्गा इंद्र देव मुनि जन, मन देखत हर्षावें। 5।
     श्रेष्ठ कमण्डल कर चक्रपाणी तुम से त्रिशुल धारी। नाम तुम्हारा सियाराम और भजते कुंज बिहारी। 6।
     नारद आदि शेष शारदा, नुत्य गावत गुण तेरे। अमृत घट की रक्षा कीन्ही, जब देवों ने टेरे। 7।
     सिन्धु सेत बनाय राम की पल में करी सहाई। सप्त ऋषि दुख मोचन कीन्हीं, तब शांति पाई। 8। 
     सुर नर किन्नर देव मुनि, गाथा नित्य गाते। परम पवित्र नाम सुमर नर, सुख सम्पति पाते। 9।
     पीत वसन हंस वाहन स्वामी, सबके मन भावे। सो प्राणी धन भाग पिता, चरण शरण जो आवे। 10।
     पंचानन विश्वकर्मा की जो कोई आरती गावे। निश्वप्रताप, दुख छीजें सारा सुख सम्पत आवे। 11।
  
 
2. आरती विश्वकर्मा अवतार की : ॐ जय पंचानन स्वामी प्रभु पंचानन स्वामी
 
   ॐ जय पंचानन स्वामी प्रभु पंचानन स्वामी। अजर अमर अविनाशी, नमो अन्तर्यामी।
     चतुरानन संग सात ऋषि, शरण आपकी आये। अभय दान दे ऋषियन को, सार कष्ट मिटाए। 1।
     निगम गम पथ दाता हमें शरण पड़े तेरी। विषय विकार मिटाओ सारे, मत लाओ देरी। 2।
     कुण्डल कर्ण गले में माला इस वाहन सोहे। जति सति संन्यासी जग के, देख ही मोहे। 3।
     श्रेष्ठ कमण्डल मुकट शीश पर तुम त्रिशूल धारी। भाल विशाल सुलोचन देखत सुख पाएं नरनारी। 4।
     देख देख कर रूप मुनिजन, मन ही मन रीझै। अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, आनन्द रस पीजै। 5।
     ऋषि अंगिरा कियो धारे तपस्या, शान्ति नहीं पाई। चरण कमल का दियो आसय, तब सब बन आई। 6।
     भक्त की जय कार तुम्हारी विज्ञान शिल्प दाता। जिस पर हो तेरी दया दृष्टि भव सागर तर जाता। 7।
     ऋषि सिर्फ ज्ञान विधायक जो शरण तुम्हारी आवे। विश्वप्रताप दुख रोग मिटे, सुख सम्पत पावे। 8।
  
 
3. आरती विश्वकर्मा हरि की : ॐ जय विश्वकर्मा हरे जय विश्वकर्मा हरे
 
  ॐ जय विश्वकर्मा हरे जय विश्वकर्मा हरे। दीना नाथ शरण गत वत्सलभव उध्दार करे। 1।
     भक्त जनों के समय समय पर दुख संकट हर्ता। विश्वरुप जगत के स्वामी तुम आदि कर्ता। 2।
     ब्रह्म वशं मे अवतार धरो, निज इच्छा कर स्वामी। प्रभात पिता महतारी भूवना योग सुता नामी। 3।
     शिवो मनुमय त्वष्टा शिल्पी दैवज सुख दाता। शिल्प कला मे पांच तनय, भये ब्रह्म ज्ञाता। 4।
     नारद इन्द्रशेष शारदा तव चरणन के तेरे। अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, गावें गुण तेरे। 5।
     देव मुनि जन ऋषि महात्मा चरण शरण आये। राम सीया और उमा भवानी कर दर्शन हर्षाये। 6।
     ब्रह्मा विष्णु शंकर स्वमी, करते नित्य सेवा। जगत प्राणी दर्श करन हित, आस करें देवा। 7।
     हेली नाम विप्र ने मन से तुम्हारा गुण गाया। मिला षिल्प वरदान विप्र को, भक्ति फल पाया। 8।
     अमृत घट की रक्षा कीन्ही, सुर भय हीन भये। महा यज्ञ हेतु इन्द्र के घर, बन के गुरु गये। 9।
     पीत वसन कर चक्र सोहे. महा वज्र धारी। वेद ज्ञान की बहे सरिता, सब विध सुखकारी। 10।
     हम अज्ञान भक्त तेरे तुम सच्चे हितकारी। करो कामना सब की पूर्ण, दर पर खडे भिकारी। 11।
     विश्वकर्मा सत्गुरु हमारे, कष्ट हरो तन का। विश्वप्रताप शरण सुख राशि दुख विनेश मन का। 12।
  
 
4.आरती विराट विश्वकर्मा भगवान की : ॐ जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा
 
   ॐ जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा। शरण तुम्हारी आए हैं, रक्षक श्रुति धर्मा।
     उमा भवानी शंकर भोले, शरण तुम्हारी आए। कुंज बिहारी कृष्ण योगी, दर्शन करने धाए। 1।
     सृष्टि धर्ता पालन कर्ता, ज्ञान विकास किया। धनुष बना छिन माहिं तुमने, शिवाजी हाथ दिया। 2।
     आठ द्वीप नौ खण्ड स्वामी, चौदह भुवन बनाए। पंचानन करतार जगत के, देख सन्त हर्षाए। 3।
     शेष शारदा नारद आदि देवन की करी सहाई। दुर्गा इन्द्र सिया राम ने निज मुख गाथा गाई। 4।
     ब्रह्म विष्णु विश्वकर्मा तुम शक्ति रुपा। जगहितकारी सकंट हारी, तुम जग के भूपा। 5।
     ज्ञान विज्ञान निधि दाता त्वष्टा भुवन पति। अवतार धार के स्वामी तुमने जग में कियो गति। 6।
     मनु मय त्वष्टा पांच तनय, ज्ञान शिल्प दाता। शिल्प विधा का आदि युग में, तुम सम को ज्ञाता। 7।
     मन भावन पावन रूप स्वामी ऋषियों ने जाना। पीत वसन तन सोहे स्वामी, मुक्ति पद बाना। 8।
     विश्वकर्मा परम गुरु की जो कोई आरती गावै। विश्वप्रताप सन्ताप मिटै, घर सम्पत आवै। 9।

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