मौनी अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान सोमवार को, प्रयागराज में आस्था का रेला

Webdunia
रविवार, 3 फ़रवरी 2019 (12:42 IST)
कुंभ नगर। आस्था, विश्वास और संस्कृतियों के संगम में तीर्थराज प्रयाग के कुंभ में दूसरे शाही स्नान के मौनी अमावस्या पर्व पर आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं से संगम क्षेत्र ठसाठस भर गया है। न कोई आमंत्रण और न ही किसी तरह का निमंत्रण श्रद्धा से भरपूर श्रद्धालुओं की भीड़ सिर पर गठरी और कंधे पर कमरी रखे प्रयागराज की सड़कों, रेलवे स्‍टेशनों, बस अड्डों से भीड़ कुंभ मेला क्षेत्र की ओर खरामा-खरामा बढ़ने लगी है।
 
आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं में केवल भारतीय ही नहीं बड़ी संख्या में विदेशियों का समूह भी संगम तीरे आध्यात्म का आनंद ले रहा है। कुछ विदेशी त्रिवेणी मार्ग पर पहुंचकर सुरक्षा में लगे पुलिस और अन्य एजेंसियों के जवानों से संगम जाने के लिए 'लेट मी नो द वे ऑफ संगम', पूछते नजर आ रहे हैं।
 
सिर पर गठरी का बोझ रखे श्रद्धालु अपनों का हाथ पकड़े खरामा-खरामा संगम की तरफ कदम बढ़ाते जा रहे हैं। उनको किसी दीन-दुनिया से लेना देना नहीं बल्कि वह संगम तीरे पहुंचने का रास्ता पूछते आगे बढते जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में पुलिया, पेड़ और खुले अम्बर के नीचे आसियाना बनाये हुए हैं। उनका लक्ष्य पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करना है।
 
इलाहाबाद जंक्शन स्टेशन, सिटी स्टेशन, प्रयाग और प्रयाग घाट स्टेशनों से निकल रही भीड़ का रुख संगम ही है। नैनी और छिवकी एवं झूंसी स्टेशन हो या सिविल लाइंस बस अड्डा हो अथवा नैनी और झूंसी में बनाए गए अस्थायी बस अड्डों पर भी यही दृश्य बने हैं। शहर से लेकर कुंभ मेला के प्रवेश मार्गों तक और फिर मेला क्षेत्र के अंदर तक सिर पर गठरी ही गठरी ही दिखाई दे रही है।
 
कुंभ में आस्था और अध्यात्म के साथ आधुनिकता का भी संगम हो रहा है। भव्य और दिव्य कुंभ में काफी कुछ बदला है। नहीं बदली तो वह गठरी, जो मेले की रौनक है। श्रद्धालुओं का रेला त्रिवेणी में गोता लगाने के लिए पांच से सात किलोमीटर की दूरी पैदल कर संगम पहुंच रहा है। चारों ओर आस्था का रेला नजर आ रहा है। परेड में काली सड़क हो या फिर लाल सड़क। शहर की सड़कों से लेकर मेला तक में मौनी अमावस्या पर आस्था का ऐसा जमघट लगने लगा है कि कुंभ की और दिव्यता चारों ओर निखरने लगी। गठरी लिए इन श्रद्धालुओं को न तो किसी व्यवस्था से मतलब होता है और न ही रोशनी से। अगाध आस्था में डूबे गठरी वाले श्रद्धालु पावन संगम पहुंच रहे हैं।
 
फाफामऊ से अरैल के बीच 3200 हैक्टेअर में बसे मेले में आवागमन के लिए बनाए गए सभी 22 पांटून पुलों पर लंबी कतारें सुबह से ही देखने को मिल रही है। शिविरों से लेकर संगम की रेती तक हरतरफ श्रद्धालुओं का तांता नजर आने लगा है। सोमवार की भोर से मौनी अमावस्या पर देश-दुनिया के श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाएंगे।
 
माघ महीने में अनेक तीर्थों का समागम होता है, वहीं पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में सनान करने से होते हैं। यही कारण है कि प्राचीन ग्रंथो में नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है, विशेषकर मौनी अमावस्थ्य को किया गया गंगा में स्नान खास महत्व का माना गया है।
 
न शिविरों में जगह बची है, न मठों और धर्मशालाओं में। स्नान के लिए बनाए गये 41 घाटों पर सुगम स्नान के प्रबंध किए गए हैं। जाल के साथ बैरीकेडिंग कर दी गई है। साथ ही सभी घाटों पर जल पुलिस के जवानों के साथ राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (एनडीआरएफ) और गोताखोर की रेस्क्यू टीम तैनात कर दी गई है, ताकि किसी भी तरह की स्थिति से समय रहते निबटा जा सके। (भाषा) 
 

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