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अयोध्या में श्रीराम राज्य महोत्सव क्यों मनाया जाता है?

WD Feature Desk
शनिवार, 5 अप्रैल 2025 (08:21 IST)
Ram Rajya Festival 2025: चैत्र शुक्ल पंचमी को राम राज्य महोत्सव मनाए जाने की परंपरा है। चैत्र शुक्ल नवमी को राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है जिसे रामनवमी कहते हैं। देशभर में विभिन्न स्थानों 02 अप्रैल से 6 अप्रैल तक राम राज्य महोत्सव मनाया जा रहा है। अयोध्या में इस बार राम राज्य महोत्सव और रामनवमी की तैयारी हो गई है।ALSO READ: 13 वर्षों बाद बनेगा रामनवमी पर दुर्लभ 'रविपुष्य योग'
 
क्यों मनाते हैं राम राज्य महोत्सव?
प्रभु श्रीराम के राज्य की शासन व्यवस्था को एक आदर्श व्यवस्था माना गया है। रामराज्य, जो शांति और समृद्धि का प्रतीक है, भगवान राम के आदर्शों से प्रेरित है। किसी भी राजा का शासन श्रीराम के शासन की तरह होना चाहिए। इसी की याद में रामराज्य महोत्वस मनाया जाता है। राम के राज्य में सभी जनता सुख, शांति और समृद्धि के साथ रह रही थी और सभी शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ थे। 
 
गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है-
 
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥ 
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥
 
भावार्थ:- 'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं।
 
राम राज्य में रहने वाला हर नागरिक उत्तम चरित्र का था। सभी नागरिक आत्म अनुशासित, शास्त्र ज्ञाता, शिक्षित, कार्य कुशल, गुणी, निरोग, बुद्धिमान, भय, शोक और रोग से मुक्त, काम, क्रोध, मद, ईर्षा से दूर और परोपकारी था।
 
रामराज्य में कोई भी गरीब नहीं था। रामराज्य में कोई मुद्रा भी नहीं थी। माना जाता है कि सभी जरूरत की चीजों का बिना कीमत के लेन-देन होता था। अपनी जरूरत के मुताबिक कोई भी वस्तु ले सकता था। यही कारण था कि लोग अन्न और अन्य वस्तुओं का संग्रहण नहीं बल्कि उत्पादन करके जरूरतों तक स्वत: ही पहुंचा देते थे या जरूरत मंद खुद आकर ले जाता था। प्रत्येक व्यक्ति श्रम को महत्व देता था।
 
धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत्‌ में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं। छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।
 
सभी दम्भरहित हैं, धर्मपरायण हैं और पुण्यात्मा हैं। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान्‌ हैं। सभी गुणों का आदर करने वाले और पण्डित हैं तथा सभी ज्ञानी हैं। सभी कृतज्ञ (दूसरे के किए हुए उपकार को मानने वाले) हैं, कपट-चतुराई (धूर्तता) किसी में नहीं है। सभी नर-नारी उदार हैं, सभी परोपकारी हैं और ब्राह्मणों के चरणों के सेवक हैं। सभी पुरुष मात्र एक पत्नीव्रती हैं। इसी प्रकार स्त्रियां भी मन, वचन और कर्म से पति का हित करने वाली हैं।
 
श्री रामचंद्रजी के राज्य में दण्ड केवल संन्यासियों के हाथों में है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है और 'जीतो' शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है (अर्थात्‌ राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर-डाकुओं आदि को दमन करने के लिए साम, दान, दण्ड और भेद- ये चार उपाय किए जाते हैं। रामराज्य में कोई शत्रु है ही नहीं, इसलिए 'जीतो' शब्द केवल मन के जीतने के लिए कहा जाता है। कोई अपराध करता ही नहीं, इसलिए दण्ड किसी को नहीं होता, दण्ड शब्द केवल संन्यासियों के हाथ में रहने वाले दण्ड के लिए ही रह गया है तथा सभी अनुकूल होने के कारण भेदनीति की आवश्यकता ही नहीं रह गई। भेद, शब्द केवल सुर-ताल के भेद के लिए ही कामों में आता है।
 
वनों में वृक्ष सदा फूलते और फलते हैं। हाथी और सिंह (वैर भूलकर) एक साथ रहते हैं। पक्षी और पशु सभी ने स्वाभाविक वैर भुलाकर आपस में प्रेम बढ़ा लिया है। पक्षी कूजते (मीठी बोली बोलते) हैं, भाँति-भाँति के पशुओं के समूह वन में निर्भय विचरते और आनंद करते हैं। शीतल, मन्द, सुगंधित पवन चलता रहता है। भौंरे पुष्पों का रस लेकर चलते हुए गुंजार करते जाते हैं।

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