रमजान माह : आ गया इबादत का महीना...

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* माहे-रमजान देता है आत्मा को पाकीजगी का मौका
 
 
पाक महीने रमजान की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं। बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाला रमजान का पवित्र महीना रविवार से शुरू हो गया है। 
 
दौड़-भाग और खुदगर्जीभरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।
 
इस माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है, बदले में अल्लाह अपने उस इबादतगुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है। इस बार पवित्र माह रमजान की शुरुआत नौतपा में होने से रोजेदारों की श्रद्धा की कड़ी परीक्षा भी होगी। रोजे के दौरान खाने-पीने से लेकर पानी तक का परहेज रखा जाता है, यहां तक कि थूक भी नहीं गटक सकते। इस्लामी कैलेंडर का नवां माह रमजान होता है, जिसे अरबी भाषा में रमादान भी कहते हैं। 
 
इस्लाम की 5 बुनियादों में रोजा शामिल है और इस पर अमल के लिए ही अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है। खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है। इंसान के अंदर जिस्म और रूह हैं। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबीयत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है और यही रमजान माह की विशेषता भी है। 
 
रमजान माह के दौरान हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था। 
 
अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को 3 अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है।

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आज का इंसान बेहद खुदगर्ज हो चुका है लेकिन रोजों में वह ताकत है, जो व्यक्ति को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराती है। रमजान माह रोजे बंदे को आत्मावलोकन का मौका देते हैं। अगर इंसान सिर्फ अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करे तो दुनिया से बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी। रमजान का छुपा संदेश भी यही है। 

 
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