श्रीराम के वनवास में छिपे हैं लॉकडाउन में संयम और सहजता से जीने के गुण

अनिरुद्ध जोशी
शनिवार, 18 अप्रैल 2020 (15:26 IST)
'राम' यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। राम कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है। वर्तमान दौर में सादा जीवन और उच्च विचार रखना बहुत जरूरी है। पुराणों में लिखा है कि कलिकाल में राम का नाम ही तारने वाला होगा।
 
 
प्रभु श्रीराम का जीवन हमें बहुत कुछ सिखाता है। लॉकडाउन के दौर में जहां लोग राशन, किराना, फल और सब्जी के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों के घरों में अन्न के भंडार भरे हैं। ऐसे लोग घर में रहकर भोग-विलास और आनंद में डूब गए हैं। सचमुच ये लॉकडाउन कुछ लोगों के लिए आनंद लेकर आया है तो कुछ लोगों के लिए पीड़ादायी सिद्ध हो रहा है। ऐसे में दोनों ही तरह के लोगों को प्रभु श्रीराम के जीवन से सीख लेना चाहिए। यह कठिन समय संयम, संकल्प, धैर्य, साहस और कम साधनों में जीने का है। जैसा कि प्रभु श्रीराम ने जिया।
 
 
प्रभु श्रीराम ने जब वनवास धारण किया तब उन्होंने अपने सभी राजसी वस्त्र त्याग दिए और तपस्वियों के वस्त्र धारण करके नग्न पैर ही वे वन को निकल गए। रास्ते में उन्हें जब जो मिला वह खा लिया और सो गए। ऐसे कई अवसर आए जबकि वे राजाओं का भोजन कर सकते थे क्योंकि वे जहां से भी गुजरे वहां के राजा ने उन्हें निमंत्रण दिया और उनके लिए सभी तरह के बंदोबस्त करने का निवेदन भी किया, लेकिन प्रभु श्रीराम ऋषि और मुनियों के आश्रम में ही तब तक रहे जब तक की उन्होंने अपनी खुद की कोई पर्ण कुटिया अपने हाथों से न बना ली हो।
 
 
श्री राम कंद-मूल के लिए जंगलों में जाते थे तो कई ऐसे भी मौके आते थे जबकि वह नहीं मिलते थे। ऐसे में उन्हें जो बचा है उसी में गुजारा करना होता था। कहते हैं कि जंगल में रहकर लक्ष्मण तो अधिकतर दिन उपवास में ही रहते थे। जंगल में रहकर प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने कभी भी तामसिक या राजसीक भोजन को ग्रहण नहीं किया। वे बस कंदमूल खाकर ही अपना जीवन गुजारा करते थे। सभी जानते हैं कि एक दिन और रात उन्होंने शबरी के बैर खाकर ही गुजारी थी। ऐसा कठिन जीवन तो लॉकडाउन में रहने वालों को नहीं देखना पड़ रहा है?
 
 
प्रभु श्रीराम महल में रहे थे लेकिन वन में उन्होंने साधुओं की तरह तप और ध्यान किया था। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अपने 14 वर्ष के वनवान में पूरी तरह से सेहतमंद बने रहे थे। वन में वे खुद के वैद्य खुद ही थे।
 
 
राम ने अपने पिता को वचन दिया था- 
चतुर्दश हि वर्षाणि वत्स्यामि विजने वने।
मधु मूल फलैः जीवन् हित्वा मुनिवद् आमिषम् ||2.20.28।। वाल्मीकि रामायण
अर्थात मैं सौम्य वनों में एक ऋषि की भांती मांस का त्याग कर चौदह वर्ष कंदमूल, फल और शहद पर जीवन व्यतीत करूंगा।
 
 
उपरोक्त श्लोक से यह ज्ञात होता है कि प्रभु श्रीराम मांस सेवन करते थे लेकिन वन जाने से पूर्व उन्होंने प्रतिज्ञा ली की मैं मांस का सेवन नहीं करूंगा। लेकिन हम यहां स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसा उन्होंने क्यों कहा। वे मांस का सेवन नहीं करते थे लेकिन ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि क्योंकि उस काल में युद्ध के लिए जाने पर परदेश में, जंगल में, मरुस्थल या कठिन प्रदेशों में जाने पर अक्सर लोगों को उनके मन का भोजन नहीं मिलता है, लेकिन मांस सभी जगह उपलब्ध हो जाता है। दूसरा शत्रु से संधि करने पर, विपत्ति पड़ने पर या विपत्ति‍ काल में मांसाहार करना पड़ता है। ऐसे में सैनिकों और सन्यासियों को यह सीख कर रखना पड़ता है कि विपत्ति काल में मांस का सेवन किया जा सकता है। लेकिन प्रभु श्रीराम ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि चूंकि में जंगल में जा रहा हूं तथापि मैं किसी भी स्थिति में मांस का सेवन नहीं करूंगा। दरअसल, आपत्कालीन स्थिति में व्यक्ति का धर्म बदल जाता है। इसीलिए यह प्रतिज्ञा ली गई थी। प्रभु ने संयम का परिचय दिया।
 
 
सुंदर कांड के अनुसार, जब हनुमान अशोक वाटिका में देवी सीता को मिलते हैं तब राम की खुशहाली बताते हैं। वे कैसे हैं, किस तरह जीवन जी रहे हैं, उनका दिनक्रम क्या है सबका वर्णन करते हैं।

 
न मांसं राघवो भुङ्क्ते न चापि मधुसेवते।
वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम् ||
अर्थात राम ने कभी मांस सेवन नहीं किया न ही उन्होंने मदिरा का पान किया है। हे देवी, वे हर दिन केवल संध्यासमय में उनके लिए एकत्रित किए गए कंद ग्रहण करते हैं।
 
इसके अलावा अयोध्याकांड में निम्मिलिखित श्लोक निहित है जिसका कथन भोजन का प्रबंध करने के पश्चात लक्ष्मण ने किया था।
 
अयम् कृष्णः समाप्अन्गः शृतः कृष्ण मृगो यथा।
देवता देव सम्काश यजस्व कुशलो हि असि||
 
अर्थात देवोपम तेजस्वी रघुनाथजी, यह काले छिलकेवाला गजकन्द जो बिगडे हुए सभी अंगों को ठीक करने वाला है उसे पका दिया गया है। आप पहले प्रवीणता से देवताओं का यजन कीजिए क्योंकि उसमें आप अत्यंत कुशल है।

 
संपूर्ण देश में 23 मार्च से लॉकडान है जो अब 3 मई तक चलेगा। मतलब 41 दिन का रहेगा यह लॉकडाउन। 41 को पलट दें तो 14 होता है। प्रभु श्रीराम ने तो 14 वर्ष तक जीवन के संयम और सीमित साधनों के अनुसार जिया तो क्या आप मात्र 41 दिन नहीं जी सकते? अधिकतर घरों में कम से कम एक माह का राशन पानी रहता ही है। जहां तक सवाल सब्जी और दूध का है तो इसके बगैर भी व्यक्ति जिंदा रह सकता है। रह गए वे लोग जो रोज कमाते और रोज लाकर खाते थे उनके लिए सरकार ने घर पहुंच सेवा के इंतजाम पहले ही कर दिए थे। इसलिए घर में रहिए और जो है उसी से गुजारा करें।

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