देहरादून। उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने मंत्रिमंडल विस्तार की है। बुधवार शाम रावत ने राजभवन में अकेले ही शपथ ली। हालांकि रावत ने अभी तक अपने मंत्रिमंडल विस्तार पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन पिछले दिनों राज्य में चले राजनीतिक घटनाक्रम में बतौर केंद्रीय पर्यवेक्षक शामिल रहे भाजपा उपाध्यक्ष और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि अगले एक-दो दिनों में रावत मंत्रिमंडल का विस्तार होगा।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि रावत के सामने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहली चुनौती कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए उन विधायकों को लेकर है जो त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाल रहे थे। इनमें सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य शामिल थे।
मुख्यमंत्री के सामने दूसरी बड़ी चुनौती कुमाऊं और गढ़वाल के बीच सामंजस्य और क्षेत्रीय संतुलन बनाने की है।
पूर्ववर्ती मंत्रिमंडल में त्रिवेंद्र सिंह रावत के अलावा भाजपा के केवल तीन विधायकों को ही जगह मिल पाई थी, जिनमें मदन कौशिक, अरविंद पांडे तथा धनसिंह रावत शामिल थे। कौशिक और पांडे जहां कैबिनेट मंत्री थे, वहीं धनसिंह को राज्यमंत्री के रूप में जगह दी गई थी।
विधानसभा चुनाव, 2017 में प्रदेश की 70 में से 57 सीटों पर जीत हासिल करके जबरदस्त बहुमत से सत्ता में आई भाजपा सरकार की कमान संभालते समय त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मंत्रिमंडल में अपने अलावा केवल नौ मंत्रियों को ही शामिल किया था।
प्रदेश मंत्रिमंडल में अधिकतम 12 सदस्य हो सकते हैं, लेकिन त्रिवेंद्र सिंह मंत्रिमंडल में दो पद खाली छोड़े गए थे।जून 2019 में प्रदेश के वित्त और आबकारी मंत्री प्रकाश पंत का निधन हो गया, जिसके बाद रिक्त मंत्री पदों की संख्या तीन हो गई।
बार-बार चर्चाओ के बावजूद ये पद कभी नहीं भरे गए। जानकारों का कहना है कि इसे लेकर विधायकों की नाराजगी भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के सत्ता से बाहर होने का एक प्रमुख कारण रही। 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ हुई बगावत के बाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले 10 विधायकों में से नौ को पार्टी का टिकट मिला जिनमें से दो को छोड़कर सभी चुनाव जीते। एक अन्य विधायक अमृता रावत की जगह उनके पति सतपाल महाराज को वर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर चौबटटाखाल से चुनावी समर में उतारा गया जहां से वह जीत भी गए।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार, अब यह देखना होगा कि मुख्यमंत्री रावत अपने मंत्रिमंडल में कांग्रेस से आए विधायकों कितना महत्व देते हैं। वह पुरानी स्थिति को यथावत रखेंगे या इसमें कोई फेरबदल कर पार्टी के पुराने नेताओं पर ज्यादा भरोसा करेंगे।
तीरथ सिंह रावत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती गढवाल और कुमांउ के बीच क्षेत्रीय संतुलन बनाने की होगी। कुमाऊं से बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के भाजपा विधायक पिछले मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज थे और अब इनकी नाराजगी दूर करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
इसके अलावा, देहरादून कैंट से लगातार आठ बार विधायक चुने गए वरिष्ठ भाजपा विधायक हरबंस कपूर तथा काशीपुर के चार बार के विधायक हरभजन सिंह चीमा भी वरिष्ठता को सम्मान न मिलने से आहत थे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि कई भाजपा विधायकों ने तो मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए लॉबिंग भी शुरू कर दी है और दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं।(भाषा)