आत्मसमर्पण का आकर्षण समाप्त हुआ कश्मीर में, बेअसर साबित हो रहीं सरकार की नीतियां

सुरेश एस डुग्गर
सोमवार, 7 फ़रवरी 2022 (15:02 IST)
जम्मू। कश्मीर में सक्रिय आतंकियों द्वारा अब हथियार डालने की गति बहुत ही धीमी पड़ चुकी है। इसे अब आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया जा रहा है कि पिछले कई वर्षों के मुकाबले में पिछले तथा इस वर्ष के दौरान आत्मसमर्पण करने वालों की तादाद बहुत ही कम रही है।

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इसके कारण स्पष्ट करते हुए सेनाधिकारी कहते हैं कि पहला कारण अब आतंकवाद में 90 प्रतिशत से अधिक विदेशी आतंकवादी शामिल हैं जिन्हें हथियार डालने के लिए राजी करना कठिन होता है तो दूसरा हथियार डालने वालों के पुनर्वास के लिए प्रदेश व केंद्र सरकारों द्वारा बनाई गई नीतियां कभी कारगर साबित ही नहीं हो पाईं। नतीजतन इसी कारण हथियार डालने वाले भी कथित तौर पर पुनः आतंकी बनते जा रहे हैं।
 
वैसे भी सुरक्षाबल विदेशी आतंकियों को हथियार डालने का मौका नहीं देते हैं। यह बात अलग है कि हथियार डालने वाले आतंकियों में विदेशी आतंकियों की संख्या नगण्य ही है लेकिन अब कश्मीरी आतंकी भी हथियार नहीं डाल रहे हैं। यह आधिकारिक आंकड़ों से अवश्य स्पष्ट होता है जिसके अनुसार वर्ष 1996 में जहां सबसे अधिक 655 आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया था, यह संख्या पिछले साल यह मात्र 2 रह गई।
 
आतंकियों द्वारा हथियार नहीं डालने के कई कारणों में सबसे बड़ा कारण प्रदेश सरकार द्वारा उन वादों को पूरा नहीं करना है, जो हथियार डालने से पूर्व आतंकियों को सब्जबाग के रूप में दिखलाए जाते रहे हैं। इतना ही नहीं, अब पाक समर्थक आतंकियों द्वारा हथियार डालने वाले आतंकियों को मौत के घाट उतारने का सिलसिला आरंभ किए जाने के उपरांत आत्मसमर्पण करने वालों का आकर्षण इस ओर कम हुआ है।
 
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1996 के बाद से आत्मसमर्पण करने वालों की संख्या लगातर कम ही होती गई। जहां वर्ष 1996 में 655 आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया वहीं 1997 में 270, 1998 में 187 तथा वर्ष 1999 में 109, 2000 में 104, 2001 में 83 आतंकवादियों ने हथियार डाले।
 
दरअसल, हथियार डालने के मामलों में 2008 के बाद से ही लगातार कमी आती रही है, जो अब 2 या 4 की संख्या तक सिमटकर रह गई है। आत्मसमर्पण की ओर आतंकियों के कम हुए आकर्षण से अधिकारी चिंतित अवश्य हुए हैं। वे इसे मानते हैं कि प्रदेश सरकार द्वारा वे वादे पूरे नहीं किए जाने के कारण, जिसके प्रति उन्हें हथियार डालने से पहले बताया जाता रहा है, आतंकी अब जान का जोखिम उठाने को भी तैयार नहीं हैं।
 
आत्मसमर्पण जान का जोखिम उनके लिए इसलिए बन गया है, क्योंकि अन्य आतंकी भी उन्हें मौत के घाट उतारने की मुहिम छेड़े हुए हैं। उनके द्वारा ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि आत्मसमर्पण करने वाले उनके साथी उनके प्रति महत्वपूर्ण सूचनाएं सुरक्षाबलों को उपलब्ध करवा सकते हैं।

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