Dharma Sangrah

कही-अनकही 13 : नौकरी छोड़ दो तुम...

अनन्या मिश्रा
'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
दृश्य 1:
‘एना, आज से गांठ बांध लो, न यहां की कोई बात मायके में करनी है, न मायके की बात यहां। अब तुम यहीं की हो, यहीं के हिसाब से रहो और नौकरी छोड़ दो तुम। क्या करोगी 10 घंटे की नौकरी कर के? पति का ख्याल कैसे रखोगी?’
 
‘दादीजी, घर हम दोनों मिल कर घर संभाल लेंगे। आपको कभी कोई शिकायत सुनने में नहीं आएगी।’
‘शिकायत तो अभी से है कि नौकरी कर रही हो इतने घंटे की। कितना कमा लेती हो?’
‘दादीजी, अभी तो 30-32 हज़ार रूपए हैं। हो सकता है आने वाले समय में बढ़ जाए।’
‘अरे, क्या बढ़ेगी और क्या प्रमोशन होगा। पैसे कमाना तो घर के मर्दों का काम होता है। आदि अच्छे से अपना करियर बनाए, उसकी मदद करो। और रही बात पैसे की, तो हम हर महीने तुम्हारे बैंक अकाउंट में थोड़े पैसे डाल देंगे। आदि का ख्याल रखने और घर संभालने की ‘तनख्वाह’ समझ लेना उसे.... 
 
‘और करियर का क्या दादीजी? अपनी दीदी भी तो बाहर नौकरी कर रही हैं। शादी के बाद आप चाहेंगी की वो नौकरी छोड़ दें? नहीं, ना? तभी तो हम उसी शहर में लड़के देख रहे हैं जहां दीदी जॉब कर रही हैं।’
 
‘बहस न करो तुम। बेटियां तो पराया-धन होती हैं वैसे भी। हमारा काम था पढ़ाना-लिखाना, नौकरी भी करने दी हमने। अब शादी के बाद वो जाने और उनके ससुराल वाले जाने। उसमें न वो कुछ कर सकती हैं न हम... तुम तो अपने ‘ऑफर’ की बात करो।’
 
दृश्य 2 
वीकेंड पर आदि सुबह बाहर नाश्ता लेने गया। आजकल बात-बात पर पैसे गिना देता था। एना इस बात पर चिढने लगी थी, बस बोल कुछ नहीं पा रही थी, क्योंकि आदि तो हर बात को ‘मजाक कर रहा था’ कह कर टाल देता। 
 
‘क्या हुआ एना तुमको आज तो 10 रुपए की आलू की कचोरी खिलाई तो भी तुमने मुंह फुला रखा है?’
 
‘आदि, बात-बात पर पैसे क्यों गिनाते हो? कामवाली, खानेवाली, टीवी केबल, बिजली, किराना और मेरा खुद का खर्च भी मैं अपने पैसों से ही करती हूं। 
 
तुमसे कब मांगे पैसे मैंने?’
 
‘तो मांगो न। मैंने कब मना किया? मांगोगी तो दूंगा। नहीं मांगोगी तो क्यों दूंगा? मांगना पड़ेगा तुमको दो-चार बार जैसे बीवी मांगती है। फिर दूंगा ।’
 
‘अच्छा? बीवी जैसे? पता है तुमको, मेरी एक फ्रेंड है, उसके हसबैंड उसके अकाउंट में हर महीने 30 हज़ार डालते हैं घर खर्च और उसके खुद के खर्च के लिए।’
 
‘वो पक्का जॉब नहीं करती होगी। तुम भी नौकरी छोड़ दो, मैं तुम्हारे अकाउंट में हर महीने 10 हज़ार डाल दूंगा।’
 
‘मेरा जॉब बहुत मायने रखता है मेरे लिए। लेकिन पता नहीं क्यों तुम और तुम्हारे घरवाले पूरी कोशिश करते हो कि मैं जॉब छोड़ दूं। और सैलरी तो मेरी 30 हज़ार है। दस क्यों दोगे फिर? और तुम कभी छोड़ोगे क्या नौकरी घर संभालने?’
 
‘हाहाहा! हां, मुझे तो एजुकेशन लोन जमा करना है इसलिए नौकरी कर भी रहा हूं। उसके बाद तो मैं घर पर ही रहूंगा। तुमको शौक है नौकरी का, तुम करना। मैं घर पर आराम करूंगा । लेकिन फिलहाल, 30 हज़ार के लायक तो बनो तुम। उतना घर का काम सीखो, तरह-तरह के पकवान बनाना सीखो, साफ़-सफाई के लिए कामवाली न रखते हुए खुद करो, घरवालों को संभालो... तब तो 30 हज़ार दूंगा। फिलहाल तो 10 भी ज्यादा ही हैं।’
 
खैर, एना ने पलटकर आदि को जवाब नहीं दिया क्योंकि भैंस के आगे क्या बीन बजाना और कुत्ते की दुम सीधी करने में क्या समय गंवाना? ये तो सब ‘कही-अनकही’ बातें हैं... लेकिन वह सोचती रही, कि क्या महिलाओं के घर संभालने की भी कोई कीमत या तनख्वाह हो सकती है?

क्या घर संभालना ‘जेंडर न्यूट्रल’ नहीं है? क्या घर के काम आपके स्त्री या पुरुष होने पर निर्भर करते हैं? आज भी महिलाओं को नौकरी छोड़ घर संभालने की क्यों सलाह दी जाती है? खैर, एना ने फिर कभी भी नौकरी न छोड़ने का निर्णय लिया, आखिर 10 रुपए की आलू की कचोरी उसे सारी ज़िन्दगी खुद के पैसे से, स्वाभिमान से जो खानी थी।

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