Coronavirus महामारी के दौर के 10 सबक, आपने नहीं सीखे क्या?

अनिरुद्ध जोशी
कोविड 19 कोरोना वायरस के संकट का दौर भारत में मार्च 2020 से ही जारी है। सालभर पूरा होने आया है और अभी तक लोग खुले में श्वास लेने से डर रहे हैं। महामारी के इस दौर ने कई लोगों को बहुत कुछ सिखाया है और कई लोग अभी भी इससे सीखने के लिए तैयार नहीं है। आओ जानते हैं कि हमने इस वायरस से क्या सीखा। 
 
 
1. सेहत के प्रति बढ़ी जागरूकता : इस वायरस ने हमें यह सिखाया कि शरीर को तंदुरुस्त या फिट रखना कितना जरूरी है। इम्युनिटी पावर को बढ़ाकर रखना भी कितना जरूरी है। इसीलिए अब लोगों में अपनी सेहत को लेकर जागरूकता बढ़ी है। इसके लिए योग, प्राणायाम, आयुर्वेद, ध्यान और पौष्टिक भोजन को लोगों ने बहुत अपनाया है।
 
 
2. क्वारंटाइन का महत्व समझा : अब लोग यह अच्छे से समझ गए है कि बीमारी से बचने का तरीका है मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग रखना और यदि हमें लक्षण नजर आए तो क्वारंटाइन हो जाना या होम आइसोलेट हो जाना। अब लोग होम आइसोलेशन में रहना भी सीख गए हैं। अब लोग पहले की अपेक्षा अधिक हाइजेनिक होने लगे हैं। जो नहीं होंगे उनसे लोग दूरी बनाकर रखेंगे। जो इस आदत को अपनाए रखेगा वह खुद को और अपने परिवार सहित समाज को भी बचा कर रखेगा। जब लोगों को यह पता चल गया है कि यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को फैलता है तो सोशल डिस्टेंस रखना रखा बहुत ही जरूरी होगा। इसके लिए बस, ट्रेन, ऑफिस, स्कूल, ऑडिटोरियम, सिनेमाहाल, छोटे-बड़े सभी शॉपिंग मॉल और दुकानों आदि सभी सार्वजनिक जगहों पर जो लोग दूरी बनाकर रखेंगे वही खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रख पाएंगे।
 
 
3. वायरस की मौत सबसे बदतर : इस वर्ष लोगों ने सबसे बड़ा सबक यह लिया कि वायरस से मरना कितना खतरनाक होता है। शमशान या कब्रिस्तान में अपनों का साथ नहीं मिलता। चार लोग कंधा देने वाले नहीं मिलते हैं। आखिरी वक्त में अपनों का साथ नहीं। उन लोगों के लिए सबसे बड़ा सबक है जिन्होंने इस वायरस की भयावहता को गंभीरता से लिया है और इसके परिणाम को समझा है। जिन्होंने इस वायरस को हल्ले में लिया वे या तो इस दुनिया में नहीं हैं या इस वायरस के कारण वे अभी तक जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं।
 
 
4. बचत : बहुत से लोगों के पास तो कोई सेविंग नहीं थी। उन्होंने कभी सोच नहीं कि लॉकडाउन लग जाएगा और नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा। हालांकि ऐसे भी कई लोग थे जिनके पास नगद पैसा या रुपया बिल्कुल ही नहीं था। कई लोगों के पास नगदी के साथ ही भविष्य के लिए बचाकर रखी जाने वाली सेविंग भी नहीं थी। ऐसे में यह सबसे बड़ा सबक रहा कि संकट काल में हमारे पास बैंक, वॉयलेट के अलावा जेब में भी रुपया होना चाहिए और यह तभी संभव होगा जबकि हम बचत करेंगे। अब लोग फालतू खर्च नहीं करेंगे। अब लोग फालतू ही घूमने-फिरने और रेस्टोरेंट में खाने से कतराएंगे। मंगनी, शादी आदि मांगलिक कार्य और अन्य प्रोग्राम भी कम खर्चिले हो सकते हैं। अधिकतर लोग अब अपनी बचत पर ध्यान देंगे। बचत बढ़ने का अर्थ यह है कि लोग कम खर्च करेंगे। बहुत जरूरी आवश्यकताओं की वस्तुओं का संग्रह करेंगे।
5. लोगों को मिला डॉक्टरी ज्ञान : वायरस से ऐसे लोगों को भी डॉक्टरी ज्ञान दे दिया है तो गांव में रहते हैं या जिन्होंने कभी ऑक्सोमीटर के बारे में सुना भी नहीं था। लोगों ने सोशल मीडिया, टीवी चैनल और अखबारों से इस वायरस के डर से जो जानकारी हासिल करना प्रारंभ की थी उस जानकारी के सर्च के चलते अब अनपढ़ लोग भी जानने लगे हैं कि पल्स कितनी होनी चाहिए, बीपी सामान्य कितना होता है, ऑक्सीजन लेवल कितना होना चाहिए। कौनी रोग में कौनीसी टैबलेट लेना चाहिए। बीपी, डायबिटीज को कैसे कंट्रोल किया जाता है, प्रोनिंग पोजिशन क्या होती है और नेबुलाइजेशन या स्टीम वेपोराइज़र क्या होता है। अब लोग समझने लगे हैं कि सही और गलत क्या है। खासकर लोग यह भी समझ गए हैं कि बैक्टीरिया और वायरस में फर्क होता है। यह दोनों कहां कहां पनपते हैं। लोग अब यह भी समझ गए हैं कि घर में डॉक्टरी जरूरत की सभी दवाईयां और उपकरण होना चाहिए।
 
6. राशन का स्टाक जरूरी : शाहीनबाग आंदोलन के दौरान ही कोरोना वायरस के कारण 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद 23 मार्च को लॉकडाउन लगा दिया। अचानक से लगे लॉकडाउन ने लोगों को संभलने का मौका ही नहीं दिया। घर में ना किराना था ना सब्जी का स्टाक। ऐसे में यह सबक मिला की घर में कम से कम इतना राशन पानी तो होना ही चाहिए कि 3 माह आराम से निकाले जा सके।
 
 
7. घर है तो संसार है : लॉकडान के दौरान वे लोग ज्यादा परेशान हुए जिनके किराए के घर थे और इसी दौरान उनकी नौकरी भी छूट गई थी। ऐसे में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। यदि खुद का घर होता तो कम से कम मकान मालिक के तगादे से बच जाते और यदि घर लोग पर किस्तों में भी होता तो बैंक तीन माह का मोनोटोरियम प्लान भी तो दे रही थी। अब आने वाले समय में जो लोग यह मानते थे कि खुद का घर लेने की क्या जरूरत है किराए के घर में रहकर ही जिंदगी गुजारी जा सकती है। ऐसे लोगों की अब सोच बदलेगी। लोग अब अपनी प्राथमिकताओं में घर को सबसे ऊपर रखेंगे। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने घर के बजाय दुकान खरीदने को ज्यादा महत्व दिया है अब वे भी घर खरीदने पर विचार करेंगे। घर है तो संसार है। खास बात यह कि लोग यह भी समझ गए हैं कि घर में इतने रूम होना चाहिए कि घर के सभी सदस्य आइसोलेट हो सके और किसी को कोई दिक्कत ना हो।
 
 
8. पारिवारिक सोच और सेवा : अब लोग पहले की अपेक्षा अपनों को और रिश्तों को ज्यादा महत्व देने लगे हैं। एक दौर ऐसा था ज‍बकि लॉकडाउन की वजन से तलाक के मामले बढ़ गए थे परंतु अब लोग एक दूसरे का साथ देने लगे हैं और परिवार के महत्व को समझने लगे हैं। वायरस ने कई लोगों के रिश्तों को फिर से जोड़ दिया है और लोगों को रिश्तों का महत्व भी बता दिया है। अब लोग समझने लगे हैं कि पैसा, रुतबा या प्रसिद्ध किसी काम की नहीं होती है। काम तो अपने ही आते हैं। लोग यह भी समझने लगे हैं कि लोगों की सेवा करोगे तो लोग भी आपके संकटकाल में आपके साथ खड़े रहेंगे।
 
 
9. चिंता, भय और अशांति से दूरी : किसी भी प्रकार की चिंता करना, मन को अशांत रखना और व्यर्थ के भय को पालते रहने से मृत्यु आसपास ही मंडराने लगती है। लोग अब समझने लगे हैं कि अनावश्यक चिंता करने से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का पतन होता है। मौत तो सभी को आनी है फिर चिंता किस बात की। कोई पहले मरेगा और कोई बाद में। चिंत्तामुक्त जीवन सबसे बड़ी दौलत है। भय से हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर होता है।

 
10. मास्टर प्लान : जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेहतर रणनीति आपके जीवन को सफल बना सकती है और यदि कोई योजना या रणनीति नहीं है तो समझो जीवन एक अराजक भविष्य में चला जाएगा जिसके सफल होने की कोई गारंटी नहीं। अत: अब लोग अपने जीवन की प्लानिंग करने लगे हैं और साथ ही संकट से बचने या बचे रहने की योजना भी बना रहे हैं। इस दौरान लोगों ने धैर्य और संयम का महत्व भी समझा है।

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