क्या किसी भी धर्म की कोई भाषा भी होती है?

अनिरुद्ध जोशी
समाज में यह मान्यता प्रचलित है कि हिन्दुओं कि हिन्दी या संस्कृत, ईसाइयों की अंग्रेजी या ग्रीक, मुस्लिमों की अरबी, फारसी या ऊर्दू, सिक्खों की पंजाबी, बौद्धों की संस्कृत या पाली और जैनियों की संस्कृत या प्राकृत भाषा है। परंतु क्या यह मान्यता या धारणा सही है? आओ जानते हैं इस संबंध में विचार मंथन।
 
 
हिन्दू : यह माना जाता है कि हिन्दू धर्म की भाषा संस्कृत है, क्योंकि वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, माहाभारत सभी ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए थे। संस्कृत को देवभाषा भी कहते हैं अत: हिन्दुओं की भाषा संस्कृत है, परंतु ऋग्वेद काल में जब संस्कृत प्रचलित थी तब और भी कई भाषाएं प्रचलित थी जिसे आम लोग बोलते थे। भारत में आर्यों के बहुत बाद में ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम 'अष्टाध्यायी' है।  भारत में आज जितनी भी भाषाएं बोली जाती है वे सभी संस्कृत से जन्मी हैं जिनका इतिहास मात्र 1500 से 2000 वर्ष पुराना है। उन सभी से पहले संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था। संस्कृत को देवनागरी लिपि में लिखने का प्रचलन भी प्राचीन काल में प्रारंभ हुआ था। ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। पश्‍चिम व उत्तर भारत में उस काल में ब्राह्मी लिपि ज्यादा प्रचलित थी। ऐसा कहा जाता है कि ब्राह्मी लिपि कम से कम 10,000 साल पुरानी है। महान सम्राट अशोक ने ब्राह्मी लिपि को धम्मलिपि नाम दिया था। ब्राह्मी लिपि को देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है। कहा जाता है कि यह प्राचीन सिन्धु-सरस्वती लिपि से निकली लिपि है। हड़प्पा संस्कृति के लोग सिंधु लिपि के अलाव इस लिपि का भी इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था। शोधकर्ताओं के अनुसार देवनागरी, बांग्ला लिपि, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि आदि सभी लिपियों की जननी है ब्राह्मी लिपि। कहते हैं कि चीनी लिपि 5,000 वर्षों से ज्यादा प्राचीन है। मेसोपोटामिया में 4,000 वर्ष पूर्व क्यूनीफॉर्म लिपि प्रचलित थी। इसी तरह भारतीय लिपि ब्राह्मी के बारे में भी कहा जाता है।
 
 
केरल के एर्नाकुलम जिले में कलादी के समीप कोट्टानम थोडू के आसपास के इलाकों से मिली कुछ कलात्मक वस्तुओं पर ब्राह्मी लिपि खुदी हुई पाई गई है, जो नवपाषाणकालीन है। यह खोज इलाके में महापाषाण और नवपाषाण संस्कृति के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। पत्थर से बनी इन वस्तुओं का अध्ययन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वैज्ञानिक और केरल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पुरातत्वविद डॉ. पी. राजेन्द्रन द्वारा किया गया। ये वस्तुएं एर्नाकुलम जिले में मेक्कालादी के अंदेथ अली के संग्रह का हिस्सा हैं। राजेन्द्रन ने बताया कि मैंने कलादी में कोट्टायन के आसपास से अली द्वारा संग्रहीत कलात्मक वस्तुओं के विशाल भंडार का अध्ययन किया। इन वस्तुओं में नवपाषणकालीन और महापाषाणकालीन से संबंधित वस्तुएं भी हैं। उन्होंने बताया कि नवपाषाणकलीन कुल्हाड़ियों का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि ऐसी 18 कुल्हाड़ियों में से 3 पर गुदी हुई लिपि ब्राह्मी लिपि है। 
 
जैन : जैन धर्म के ग्रंथ संस्कृत और प्राकृत में है। खासकर प्राकृत भाषा में ग्रंथ हैं क्योंकि महावीर स्वामी के काल में यह भाषा ज्यादा प्रचलित थी इसीलिए उन्होंने इसी भाषा में प्रवचन दिए तो यह भाषा जैन धर्मग्रंथों की भाषा भी बनी। महावीर स्वामी के पूर्व के तीर्थंकर पाली या प्राकृत भाषा का उपयोग नहीं करते थे। हर काल की अपनी अलग भाषा रही है। पाली या प्राकृत संस्कृत से निकली भाषा परिवार से हैं। जैन साहित्य बहुत विशाल है। अधिकांश में वह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। भगवान महावीरस्वामी की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है।
 
 
जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था और कहा जाता है कि उसी ने लेखन की खोज की। यही कारण है कि उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते हैं। हिन्दू धर्म में सरस्वती को शारदा भी कहा जाता है, जो ब्राह्मी से उद्भूत उस लिपि से संबंधित है। किसी धर्म का ग्रंथ किसी भाषा में लिखे होने से यह सिद्ध नहीं होता है कि यह भाषा उसी धर्म की हो गई है। तीर्थंकर ऋषभदेव की ब्राह्मी और सुन्दरी दो पुत्रियां थीं। बाल्यावस्था में वे ऋषभदेव की गोद में जाकर बैठ गई। ऋषभदेव ने उनके विद्याग्रहण का काल जानकर लिपि और अंकों का ज्ञान कराया। ब्राह्मी दायीं ओर और सुन्दरी बायीं ओर बैठी थी, ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराने के कारण लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। सुन्दरी को अंक का बोध कराने के कारण अंक बायीं से दायीं ओर ओर इकाई, दहाई...के रूप में लिखे जाते हैं। इस लिपि का अभ्यास करने से भारत की अधिकांश लिपियों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वर्ण ध्वन्यात्मक है। इसको लिखने और बोलने में एक रूपता है। वर्तमान में अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं की लिपियों को छोड़कर समस्त लिपियां ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं।
 
 
बौद्ध : पाली और प्राकृत भाषा तो बौद्ध धर्म के पूर्व ही प्राचीनकालीन उत्तर भारत में बोली जाती थी। यह भाषा खासकर पूर्व में बिहार से पश्चिम में हरियाणा-राजस्थान तक और उत्तर में नेपाल-उत्तरप्रदेश से दक्षिण में मध्यप्रदेश तक बोली जाती थी। चूंकि उस काल में इस क्षेत्र में यह भाषा ज्यादा प्रचलित और लोकप्रिय थी इसीलिए भगवान बुद्ध ने इसी भाषा में प्रवचन दिए। हिन्दी भाषा का प्राचीन स्वरूप पाली और प्राकृत ही है। पाली भाषा को पाटलीपुत्र की प्राचीन भाषा माना जाता है। हालांकि विद्वानों ने उस दौर की संभी भाषाओं का नाम प्राकृत दिया। उस दौर में संस्कृत के साथ ही पाली, प्राकृत या मागधी भाषा प्रचलित थी। आम लोग संस्कृत नहीं बोलते थे जैसे की वर्तमान में आम लोग अंग्रेजी नहीं हिन्दी, गुजराती या मराठी बोलते हैं। महात्मा बुद्ध द्वारा पाली में उपदेश देने से यह भाषा बौद्ध भाषा नहीं हो जाती क्योंकि यह भाषा तो बताए गए उक्त क्षेत्र में पहले से ही बोली जाती रही है। कहते हैं कि पाली भाषा का उद्भव गौतम बुद्ध के 300 वर्ष पूर्व ही हो चुका था। 
 
ईसाई : ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह है। बाइबल सबसे पहले ग्रीक भाषा में लिखी गई थी, लेकिन उसके पहले प्रेरितों के सुसमाचारों की किताबें हिब्रू में थी और कुछ अन्य भाषाओं में। हालांकि इस पर भी विद्वानों में मतभेद हैं। हिब्रू और ग्रीक भाषा तो ईसा मसीह से पहले से ही प्रचलित थी। यह बात 2014 की है। टॉम डी कास्टेला कहते हैं कि ईसा मसीह जिन स्थानों पर रहे, वहां कई भाषाएं बोली जाती हैं इसलिए यह सवाल मौजूं है कि वे कौन सी भाषा जानते थे? इसराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहु और पोप फ्रांसिस के बीच इस मसले पर एक बार तकरार भी हो चुकी है। नेतन्याहु ने येरुशलम में एक सार्वजनिक बैठक में पोप से कहा था, "ईसा मसीह यहां रहते थे और वे हिब्रू बोलते थे। पोप ने उन्हें टोकते हुए कहा, 'अरामीक'। नेतन्याहु ने इस पर जवाब देते हुए कहा, "वे अरामीक बोलते थे, लेकिन हिब्रू जानते थे।" हिब्रू विद्वानों और धर्मग्रंथों की भाषा थी, लेकिन ईसा मसीह की रोजमर्रा की भाषा अरामीक रही होगी। अधिकतर बाइबिल के विद्वानों का कहना है कि बाइबिल में ईसा मसीह ने अरामीक भाषा में बोला है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में क्लासिक्स के व्याख्याता जोनाथन काट्ज के अनुसार इसकी कम संभावना है कि वे लैटिन जानते थे लेकिन हो सकता है कि वे थोड़ी बहुत ग्रीक जानते हो। अब आप सोचिये अंग्रेजी कैसे ईसाईयों की भाषा हो सकती है?
 
 
मुस्लिम : अरब में इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई इसीलिए कुरआन को अरबी में लिखा गया। परंतु अरबी तो इस्लाम से सैंकड़ों वर्ष पहले से प्रचलन में थी। अरबी भाषा सामी भाषा परिवार की एक भाषा है जो हिब्रू के समकक्ष है। प्राचीन अरब में सिर्फ अरबी ही प्रचलन में नहीं थी। वहां पर इब्रानी, अरामी, सबाई, आशूरी, फिनीकी आदि कई भाषाएं प्रचलन में थी। अरब के प्राचीन धर्म यहूदियों की भाषा मूलत: हिब्रू और अरामी थी। दूसरी फारसी भाषा तो प्राचीन ईरान की भाषा है। मूलत: इसे पहले पारसी धर्म के लोग बोलते थे। यह प्राचीन पारसी धर्म की भाषा मानी जाती है। इसके बाद आता है ऊर्दू का नंबर। कहते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले तक तो उर्दू को कोई भाषा का दर्जा नहीं मिला था। गालिब और तारिक मीर जिन्हें उर्दू के शायर माना जाता है उन्होंने तो खुद कभी कहा ही नहीं कि वो उर्दू में लिख रहे हैं। उन्होंने अपनी शायरी, खतों को हिंद्वी भाषा का नाम दिया था। दरअसल, मुगल जब भारत आए तो वो अपनी भाषा लेकर आए। हजारों सैनिकों के साथ, लेकिन यहां आते-आते उनकी फौज कम हो गई और उन्हें हिंदू सैनिकों की भर्ति करनी पड़ी। इसके बाद शुरू हुआ भाषा का मेल-मिलाप और यही बनी भाषा हिंदवी जहां हिंदी के भी शब्द थे और उसमें उज्बेकिस्तान, तजीकिस्तान की भाषा और फारसी के भी शब्द थे जहां से मुगल आए थे। हालांकि अब वर्तमान में इसमें अरबी के शब्दों को धीरे धीरे शामिल करके इसे अरबी ही बना दिया जा रहा है।
 
 
सिक्ख : 15वीं शताब्‍दी में सिख धर्म के संस्‍थापक गुरुनानक ने ठेठ पंजाबी भाषा में उपदेश दिया था। पंजाबी भाषा आर्य भाषा के समूह की भाषा है जिसे शौरसेनी अपभ्रंश के साथ उत्पन्न हुआ माना जाता है। इसमें पाली और प्राकृत भाषा का भी प्रभाव देखने को मिलता है। पंजाबी में सबसे प्राचीन रचनाएं नाथयोगी काल की मिलती हैं जो नौवीं से चौदहवीं शताब्दी की मानी जाती है। इसके बाद गुरु नानक देवजी (1469-1539) ने पंजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास में बहुत ही ज्यादा योगदान दिया। नानकदेवजी से पूर्व भी पंजाबी पंजाबियों की नहीं बल्कि पंजाब के आसपास के क्षेत्र के लोगों की भी भाषा रही है। प्राचीन काल में यह भारत के पंजाब और पाकिस्तान के पंजाब सहित सिंध के कुछ क्षेत्र और पख्‍तून तक यह भाषा बोली जाती थी। हालांकि वर्तमान में इस भाषा पर ऊर्दू लाद दिए जाने के कारण इसमें अरबी और फारसी के शब्द ज्यादा प्रचलित हो चले हैं। सप्तसिंधु के इलाके में ही पंजाबी का जन्म हुआ था। प्राचीनकाल में यहां बोली जाने वाली भाषा को सप्तसिंध भाषा ही कहा जाता था। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में ब्राह्मी लिपि ही प्रचलित थी बाद में कई लिपियां प्रचलित हुई। वैसे पंजाबी को शाहमुखी और गुरमुखी लिपि में लिखा जाता है। वर्तमान में गुरमुखी ज्यादा प्रचलित है।
 
 
इसी तरह हम देखते हैं कि कोई भी भाषा किसी धर्म की भाषा नहीं हो सकती क्योंकि यह उक्त धर्म के प्रचलन से पूर्व से ही प्रचलित रही है साथ ही यह भी कि किसी धर्म ग्रंथ को किसी भाषा में लिखने से वह भाषा उस धर्म की नहीं हो जाती है। हमें भाषाओं के जन्म और विकास के इतिहास को पढ़ना चाहिए।

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