गणगौर : भोलेशंकर और मां पार्वती के पूजन का पर्व

Webdunia
शंकर-पार्वती के पूजन का पर्व गणगौर होली के दूसरे दिन से ही इस त्योहार आरंभ हो जाता है। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है।
 
इस दिन बड़े सवेरे ही होली की राख को गाती-बजाती महिलाएं अपने घर लाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाती हैं, शंकर और पार्वती बनाकर सोलह दिन बराबर उनकी पूजा करती हैं। दीवार पर सोलह बिंदिया कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की प्रतिदिन लगाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं हैं। सुहाग की प्रतीक हैं। 
 
शंकर को पूजती हुई कुंआरी कन्याएं प्रार्थना करती हैं कि उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो। शंकर और पार्वती को आदर्श दंपत्ति माना गया है। दोनों के बीच अटूट प्रेम है। शंकरजी के जीवन और मन में कभी दूसरी स्त्री का ध्यान नहीं आया। सभी विवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में पति का अखंड प्रेम चाहती हैं। किसी और की साझेदारी की वे कल्पना तक करना पसंद नहीं करतीं।
 
कन्याएं भी एक समूह में सजधज कर दूब और फूल लेकर गीत गाती हुई बाग-बगीचे में जाती हैं। घर-मोहल्लों से गीतों की आवाज से सारा वातावरण गूंज उठता है। कन्याएं कलश को सिर पर रखकर घर से निकलती हैं तथा किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं।

मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोलह कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं। एक बुजुर्ग औरत फिर पांच कहानी सुनाती है। यह होती हैं शंकर-पार्वती के प्रेम की, दाम्पत्य जीवन की मधुर झलकियों की। उनके आपस की चुहलबाजी की सरस, सुंदर साथ ही शिक्षाप्रद छोटी-छोटी कहानियां और चुटकुले। गणगौर के त्योहार को उमंग, उत्साह और जोश से मनाया जाता है। महिलाएं गहनों-कपड़ों से सजी-धजी रहती हैं।
 
नाचना और गाना तो इस त्योहार का मुख्य अंग है ही। घरों के आंगन में, सालेड़ा आदि नाच की धूम मची रहती है। परदेश गए हुए इस त्योहार पर घर लौट आते हैं। जो नहीं आते हैं उनकी बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा की जाती है। आशा रहती है कि गणगौर की रात को जरूर आएंगे। 
 
झुंझलाहट, आह्लाद और आशा भरी प्रतीक्षा की मीठी पीड़ा को व्यक्त करने का साधन नारी के पास केवल उनके गीत हैं। यह गीत उनकी मानसिक दशा के बोलते चित्र हैं। चैत्र शुक्ल तीज को गणगौर की प्रतिमा एक चौकी पर रख दी जाती है। यह प्रतिमा लकड़ी की बनी होती है। उसे जेवर और वस्त्र पहनाए जाते हैं। फिर उस प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है। इस तरह सभी महिलाओं का मनभावन यह पर्व वे बड़े ही उत्साह और आनंदपूर्वक मनाती है।

ALSO READ: कैसे मांगें गणगौर पर्व पर मां पार्वती से आशीष, जानिए खास बातें...

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

sawan somwar 2025: सावन का पहला सोमवार कब है? इस दिन क्या करें, पूजा का शुभ मुहूर्त

पंढरपुर यात्रा कब और क्यों निकाली जाती हैं, जानें इतिहास

मोहर्रम मास 2025: जानें मुहर्रम का इतिहास, धार्मिक महत्व और ताजिये का संबंध

श्रावण के साथ ही शुरू होगी कावड़ यात्रा, जानें क्या करें और क्या न करें

वर्ष 2025 में कब से प्रारंभ हो रहे हैं चातुर्मास, कब तक रहेंगे?

सभी देखें

धर्म संसार

29 जून 2025 : आपका जन्मदिन

29 जून 2025, रविवार के शुभ मुहूर्त

सावन मास के व्रत और त्योहारों की लिस्ट

Puri Rath Yatra: भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचे

sawan somwar 2025: सावन सोमवार के व्रत के दौरान 18 चीजें खा सकते हैं?

अगला लेख