श्रावण मास के पहले है शिव प्रदोष, तांडव नृत्य की यह अद्भुत कथा आपने नहीं पढ़ी होगी...

Webdunia
शिव प्रदोष नृत्य की अद्भुत कथा के अनुसार एक बार 'नटराज' भगवान्‌ शिव के तांडव-नृत्य में सम्मिलित होने के लिए समस्त देवगण कैलाश पर्वत पर उपस्थित हुए। जगज्जननी माता गौरी वहां दिव्य रत्नसिंहासन पर आसीन होकर अपनी अध्यक्षता में तांडव का आयोजन कराने के लिए उपस्थित थीं। 
 
देवर्षि नारद भी उस नृत्य कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए लोकों का परिभ्रमण करते हुए वहां आ पहुंचे थे। थोड़ी देर में भगवान्‌ शिव ने भाव-विभोर होकर तांडव-नृत्य प्रारंभ कर दिया। 
 
समस्त देवगण और देवियां भी उस नृत्य में सहयोगी बनकर विभिन्न प्रकार के वाद्य बजाने लगे। वीणावादिनी मां सरस्वती वीणा-वादन करने लगीं, विष्णु भगवान्‌ मृदंग बजाने लगे, देवराज इंद्र बंशी बजाने लगे, ब्रह्माजी हाथ से ताल देने लगे और लक्ष्मीजी गायन करने लगीं। अन्य देवगण, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, उरग, पन्नग, सिद्ध, अप्सराएं, विद्याधर आदि भाव-विह्वल होकर भगवान्‌ शिव के चतुर्दिक्‌ खड़े होकर उनकी स्तुति में तल्लीन हो गए।
 
भगवान्‌ शिव ने उस प्रदोष काल में उन समस्त दिव्य विभूतियों के समक्ष अत्यंत अद्भुत, लोक-विस्मयकारी तांडव-नृत्य का प्रदर्शन किया। उनके अंग-संचालन-कौशल, मुद्रा-लाघव, चरण, कटि, भुजा, ग्रीवा के उन्मत्त किंतु सुनिश्चित विलोल-हिल्लोल के प्रभाव से सभी के मन और नेत्र दोनों एकदम अचंचल हो उठे। 
 
सभी ने नटराज भगवान्‌ शंकरजी के उस नृत्य की सराहना की। भगवती महाकाली तो उन पर अत्यंत ही प्रसन्न हो उठीं। उन्होंने शिवजी से कहा- 'भगवन्‌! आज आपके इस नृत्य से मुझे बड़ा आनंद हुआ है, मैं चाहती हूं कि आप आज मुझसे कोई वर प्राप्त करें।'
 
उनकी बातें सुनकर लोकहितकारी आशुतोष भगवान्‌ शिव ने नारदजी की प्रेरणा से कहा- 'हे देवी ! इस तांडव-नृत्य के जिस आनंद से आप, देवगण तथा अन्य दिव्य योनियों के प्राणी विह्वल हो रहे हैं, उस आनंद से पृथ्वी के सारे प्राणी वंचित रह जाते हैं। हमारे भक्तों को भी यह सुख प्राप्त नहीं हो पाता। अतः आप ऐसा करिए कि पृथ्वी के प्राणियों को भी इसका दर्शन प्राप्त हो सके। किंतु मैं अब तांडव से विरत होकर केवल 'रास' करना चाहता हूं।'
 
भगवान्‌ शिव की बात सुनकर तत्क्षण भगवती महाकाली ने समस्त देवताओं को विभिन्न रूपों में पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया। स्वयं वह भगवान्‌ श्यामसुंदर श्रीकृष्ण का अवतार लेकर वृंदावन धाम में पधारीं। भगवान्‌ श्री शिवजी ने ब्रज में श्रीराधा के रूप में अवतार ग्रहण किया। यहां इन दोनों ने मिलकर देवदुर्लभ, अलौकिक रास-नृत्य का आयोजन किया। 
 
भगवान्‌ शिव की 'नटराज' उपाधि यहां भगवान्‌ श्रीकृष्ण को प्राप्त हुई। पृथ्वी के चराचर प्राणी इस रास के अवलोकन से आनंद-विभोर हो उठे और भगवान्‌ शिव की इच्छा पूरी हुई।

 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

परीक्षा में सफलता के लिए स्टडी का चयन करते समय इन टिप्स का रखें ध्यान

Shani Gochar 2025: शनि ग्रह मीन राशि में जाकर करेंगे चांदी का पाया धारण, ये 3 राशियां होंगी मालामाल

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

सभी देखें

धर्म संसार

Guru Pradosh Vrat 2024: गुरु प्रदोष व्रत आज, जानें कथा, महत्व, पूजा विधि और समय

Aaj Ka Rashifal: आज किन राशियों को मिलेगी हर क्षेत्र में सफलता, पढ़ें 28 नवंबर का राशिफल

प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर, इन देशों में भी होंगे विशेष कार्यक्रम

प्रयागराज में डिजिटल होगा महाकुंभ मेला, Google ने MOU पर किए हस्‍ताक्षर

Yearly rashifal Upay 2025: वर्ष 2025 में सभी 12 राशि वाले करें ये खास उपाय, पूरा वर्ष रहेगा शुभ

अगला लेख