सत्यनारायण की कथा की 10 बातें जानना जरूरी है...

अनिरुद्ध जोशी
हर घर में सत्यनारायण की कथा का आयोजन होता है। आखिर यह सत्यनारायण की कथा क्या है और क्या है इसका रहस्य आओ जानते हैं इस संबंध में 10 खास बातें।
 
1. भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की कथा ही सत्यनारायण व्रत कथा है।
 
2. सत्यनारायण व्रत कथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है।
 
3. सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं- व्रत-पूजा तथा कथा का श्रवण या पाठ। 
 
4. इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- संकल्प को भूलना और प्रसाद का अपमान करना।
 
5. यह कथा अक्सर पूर्णिमा के दिन, बृहस्पतिवार या किसी पर्व विशेष के दिन परिवार में आयोजित की जाती है।
 
 
6. सत्य को नारायण के रूप में पूजना और नारायण को ही सत्य मानना यही सत्यनारायण है। सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है बाकी सब माया है।
 
7. सत्यनारायण कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है और किस प्रकार प्रभु नाराज होकर दंड देते हैं या प्रसन्न होकर पुरस्कार देते हैं यह इस कथा का केंद्र बिंदू है।
 
 
8. सत्यनारायण भगवान की पूजा में खासकर केले के पत्ते, नारियल, पंचफल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, तुलसी की आवश्यकता होती। इन्हें प्रसाद के रूप में फल, मिष्ठान और पंजरी अर्पित की जाती है।
 
9. विधिवत रूप से व्रत रखने और कथा सुनने से व्यक्ति के जीवन के सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं।
 
10. इस कथा का तिरस्कार करने या मजाक उड़ाने से व्यक्ति के जीवन में संकटों की शुरुआत हो जाती है।
 
 
सत्यनारायण कथा का परिचय : मूल पाठ में पाठान्तर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। कथा के अनुसार नैमिषारण्य तीर्थ में 88 हजार ऋषि सूतजी महाराज से प्रश्न करते हैं कि कलियुग में जिन लोगों को मंत्र, पूजा-पाठ कर्म इत्यादि का ज्ञान नहीं होगा, वे कौनसा व्रत या पूजन करेंगे, जिनसे उनके सभी कष्ट दूर हों। तब सूतजी नारदजी के व्याख्यान से इस कथा का वर्णन करते हैं। वे सत्यनारायण व्रत कथा, पूजा और कथा श्रवण का महत्व बताते हैं।

इसके बाद सूतजी बताते हैं कि वर्णों के अनुसार किस-किस ने इस व्रत को किया और उन्हें किन फलों की प्राप्ति हुई। अलग-अलग अध्यायों में व्रत रखने वाले व्यक्ति के जीवन से जुड़ी कथा सुनाते हैं। इन कथाओं में दो तरह के व्रती को बताया गया है, पहला जो निष्ठावान है और दूसरे जो स्वार्थी है।

उनके साथ क्या हुआ, इसका सुनना वर्णन है। शतानन्द ब्राह्मण, लकड़हारा, उल्खामुख नाम के राजा, साधु नामक वैश्य और उसकी पुत्री कलावती, गौ चराने वाले गोप, तुंगध्वज राजा आदि के द्वारा सत्यनारायण का व्रत करना, फल मिलना और व्रत का विरोध या तिरस्कार करने पर दुख और दरिद्रता भोगना इस सत्यनारायण की कथा में वर्णन की गई है। कई लोग कहते हैं कि यह मूल कथा से भिन्न है। इस कथा में बहुत सी बातें काल और व्यवस्थानुसार बदलती गईं।

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