कार्तिक मास की पौराणिक कथा क्या है?

Webdunia
kaartik maas story 
 
सोमवार, 10 अक्टूबर 2022 से कार्तिक का महीना (Kartik month 2022) प्रारंभ हो गया है। इस माह में ही भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जाग जाते हैं और तब सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कार्तिक मास में दीपावली का महापर्व आता है। पुराणों में इस माह को बहुत ही पवित्र माना गया है, इसमें कार्तिक मास की महीमा का वर्णन मिलता है। 
 
इस माह में दीपदान, स्नान, विष्णु पूजा और तुलसी पूजा के साथ ही पौराणिक कथा सुनने का बहुत ही खास बहुत होता है। आओ जानते हैं कार्तिक मास की पौराणिक कथा- 
 
कार्तिक मास की पौराणिक कथा (kartik maas ki katha) के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन 7 कोस दूर गंगा और यमुना नदी में स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा कि हमारा एक पुत्र होता तो कितना अच्छा रहता। पुत्र के बहू आती तो हमें घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती। 
 
अपनी पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि तूने बात तो सही कही है, चल मैं तेरे लिए बहू ला ही देता हूं। ब्राह्मण ने कहा कि एक पोटली में आटा डाल कर कुछ मोहरे रख दे। ब्राह्मण के कहे अनुसार उसने पोटली बांधकर दे दी पोटली लेकर ब्राह्मण चला गया।
 
ब्राह्मण सफर के दौरान यमुना के किनारे बहुत ही सुंदर लड़कियां दिखाई दी। वे रेत में घर बनाकर खेल रही थी। उनमें से एक लड़की ने कहा कि मैं अपना घर नहीं बिगाडूंगी मुझे तो रहने के लिए ये घर चाहिए। लड़की की बात सुनकर ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा की बहू बनाने के लिए यही लड़की उचित है। 
 
जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे-पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने उस लड़की से कहा- बेटी, कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूं। तुम अपनी माता से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छानकर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खा लूंगा।
 
लड़की ने जाकर अपनी मां को ये सारी बात बताई। मां ने कहा– उचित है। जाकर ब्राह्मणदेव से कह दो कि वह अपना आटा दे दें, मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिसके आटे में इतनी मोहरे हैं। उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने उस ब्राह्मण से पूछा- क्या आपका कोई लड़का है और क्या आप उस लड़के की सगाई करने जा रहे हो? 
 
यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि मेरा लड़का तो काशी में पढ़ने गया हुआ है लेकिन यदि तुम कहो तो खांड कटोरे से विवाह करके तेरी बेटी को अपने साथ ले जाऊं। लड़की की मां ने कहा- ठीक है ब्राह्मणदेव। इस पर लड़की की मां ने लड़की की खांड-कटोरे से शादी करके ब्राह्मण के साथ भेज दिया। ब्राह्मण ने घर आकर कहा- रामू की मां दरवाजा खोलकर देख मैं तेरे लिए बहू लेकर आया हूं।
 
ब्राह्मण की पत्नी भीतर से ही बोली- हमारे तो कोई बेटा-बेटी नहीं है, तो बहू कहां से आए। दुनिया ताने मारती थी, अब आप भी मारने लगे। ब्राह्मण ने कहा- तू दरवाजा खोलकर तो देख। जब ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला तो सामने बहू को खड़ी देखा। उसने बहू का स्वागत किया और आदर सत्कार से अंदर ले गई। 
 
अब जब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ नदी स्नान करने जाता तो पीछे से बहू घर का सारा काम करके और खाना बना कर रखती थी। वह उनके कपड़े धोती और रात को हाथ-पैर भी दबाती थी। इस तरह बहुत दिन बीत गए। ब्राह्मणी ने अपनी बहू से कहा कि, बहू कभी भी चूल्हे की आग मत बुझने देना और मटके का पानी खत्म मत होने देना, परंतु एक दिन चूल्हे की आग बुझ गई।
 
यह देखकर बहू घबरा गई और भागी-भागी अपनी पड़ोसन के पास गई और कहा कि मेरे चूल्हे की आग बुझ गई है मुझे थोड़ी आग चाहिए। मेरे सास-ससुर सुबह पांच बजे से गए हुए हैं। वह थके हुए घर आएंगे इसलिए मुझे उनके लिए खाना बनाना है। यह सुनकर पड़ोसन ने कहा कि तू तो बावली है, तुझे यह दोनों मिलकर पागल बना रहे हैं। इनके कोई पुत्र नहीं है। ये नि:संतान है। बहू ने कहा- नहीं, ऐसा मत बोलो, इनका बेटा तो बनारस काशी में पढ़ने गया हुआ है। 
 
इस पर पड़ोसन ने कहा कि यह तुझे झूठ बोल कर लाए हैं। मेरी बात सच मान, इनके कोई बेटा नहीं है। अब बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और कहने लगी कि अब आप ही बताओ मैं क्या करूं। पड़ोसन ने कहा कि करना क्या है, जब तुम्हारे सास-ससुर आए तो जली हुई रोटियां बनाकर देना और बिना नमक की दाल बना कर देना। खीर की कड़छी दाल में और दाल की कड़छी खीर में डाल देना।
 
पड़ोसन ने उसे अच्छे से सिखा पढ़ा दिया। फिर जब उसके सास-ससुर घर आए तो उसने न तो उनका आदर-सत्कार किया ना ही उनके कपड़े धोए। जब उसने सास-ससुर को खाना दिया तो सास बोली, बहू आज यह रोटियां जली हुई क्यों है और दाल भी अलुनी है। तब बहू ने पलटकर कहा कि एक दिन ऐसा खाना खा लोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा तुम्हारा। 
 
सास-ससुर को खरी-खोटी सुनाकर वह फिर से पड़ोसन के पास गई और बोला कि अब आगे क्या करना है। पड़ोसन ने कहा कि अब तुम सातों कोठों की चाबी मांग लेना। अगले दिन जब भी स्नान करने के लिए जाने लगे तो बहू अड़ गई कि मुझे तो सातों कोठों की चाबी चाहिए। तब ससुर ने कहा कि इसे चाबी दे दो। तब सास ने बहू को चाबी दे दी।
 
सास-ससुर के जाने के बाद जब बहू ने दरवाजे खोले तो देखा कि किसी में अन्न भरा है किसी में धन भरा है और किसी कोठे में बर्तन पड़े हैं। जब उसने सबसे ऊपर का सातवां कोठा खोला तो देखा कि शिव जी, पार्वती माता, गणेश जी, लक्ष्मी माता जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसी जी का बिड़वा, गंगा-यमुना और 33 कोटी देवी-देवता विराजमान है। वहीं पर एक लड़का चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है। 
 
यह सब देखकर उसने लड़के से पूछा कि तुम कौन हो? तब लड़का बोला कि मैं तेरा पति हूं, अभी दरवाजा बंद कर दे। जब मेरे माता-पिता आएंगे तब दरवाजा खोलना। यह सब देखकर बहू बहुत खुश हुई और सोलह श्रृंगार करके सुंदर वस्त्र पहन कर अपने सास-ससुर का इंतजार करने लगी। उसने अपने सास-ससुर के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाए।
 
जब उसके सास-ससुर घर पर आए तो उसने उनका आदर सत्कार किया और प्रेमपूर्वक खाना खिलाया और हाथ-पैर दबाने लगी। पैर दबाते-दबाते बहू ने कहा कि मां आप इतनी दूर गंगा-यमुना स्नान करने के लिए जाती हो तो आप थक जाती हो, इसलिए आप घर पर ही स्नान क्यों नहीं करती हो। यह सुनकर सास कहने लगी कि बेटी गंगा-यमुना घर पर तो नहीं बहती है। तब उसने कहा, हां मां जी बहती है चलो मैं आपको दिखाती हूं। 
 
जब बहू ने सातवां कोठा खोलकर दिखाया तो उसमें शिव जी, पार्वती जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसी जी का बिड़वा, गंगा यमुना बह रही है और 33 कोटी देवी-देवता विराजमान है। वही चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है। मां ने उसे देखकर कहा कि बेटा तू कौन है? लड़का बोला- मां मैं तेरा बेटा हूं। तब ब्राह्मणी ने पूछा कि तू कहां से आया है?
 
लड़के ने जवाब दिया कि मुझे कार्तिकदेव ने भेजा है। मां ने कहा- बेटा यह संसार कैसे मानेगा कि तू मेरा बेटा है। मां ने कुछ विद्वान पंडितों से मदद मांगी। पंडितों ने कहा- इस पार बहू-बेटा खड़े हो जाएं और उस पार मां खड़ी हो जाए। मां ने चमड़े की अंगिया पहनी हो और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी-मूछ भीगे और पवन पानी से गठजोड़ा बंधे तब मानेंगे कि यह इस मां का ही बेटा है। 
 
उसने ऐसा ही किया चमड़े की अंगिया फट गई और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी-मूछ भीग गई, पवन पानी से बहू बेटे का गठजोड़ बंध गया। यह सब देखकर ब्राह्मण और उसकी पत्नी की खुशी का ठिकाना ना रहा। तो यह थी कार्तिक मास की कथा। 
 
हे कार्तिक के ठाकुर, जैसे ब्राह्मण और ब्राह्मणी को बहू-बेटा दिया वैसे सबको देना। कार्तिक मास की कथा कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना।


Vishnu jee Worship
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Weekly Horoscope: 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा सप्ताह, पढ़ें साप्ताहिक राशिफल (18 से 24 नवंबर)

Mokshada ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी कब है, क्या है श्रीकृष्‍ण पूजा का शुभ मुहूर्त?

Shani Margi: शनि का कुंभ राशि में मार्गी भ्रमण, 3 राशियां हो जाएं सतर्क

विवाह पंचमी कब है? क्या है इस दिन का महत्व और कथा

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा?

सभी देखें

धर्म संसार

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

Indian Calendar 2025 : जानें 2025 का वार्षिक कैलेंडर

Vivah muhurat 2025: साल 2025 में कब हो सकती है शादियां? जानिए विवाह के शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में गृह प्रवेश के शुभ मुहूर्त कौन कौनसे हैं?