तोता बने शुकदेव ने जब सुन ली अमर कथा तो शिवजी उसे मारने को दौड़े और फिर हुआ गजब

अनिरुद्ध जोशी
पुराणों की कथाओं में शुकदेवजी का ही नाम ज्यादातर उल्लेखित होता है। शुकदेवजी कौन थे और क्या है उनकी कहानी आओ जानते हैं संक्षिप्त में।
 
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1. शुकदेवजी महाभारत के रचयिता वेदव्यासजी के पुत्र थे। उनकी माता का नाम वटिका था।
 
2. कहते हैं कि भगवान शिव पार्वती को जब अमरकथा सुना रहे थे तो पार्वती जी सुनते सुनते निद्रा में चली गई और उनकी जगह शुक (तोते) ने हुंकारी भरना शुरु कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तो वह शुक को मारने के लिए उसकी पीछे दौड़े तो शुक भागकर व्यासजी के आश्रम में जा पहुंचा और फिर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। शिवजी पुन: लौट गए। यही शुक बात में व्यासजी का अयोनिज पुत्र बना।
 
3. कहा जाता है कि शुकदेव बारह वर्ष तक माता के गर्भ से बाहर ही नहीं निकले। भगवान श्रीकृष्ण के कहने से ये गर्भ से बाहर आए।
 
4. जन्म लेते ही शुकदेवजी अपने माता पिता और श्रीकृष्ण को प्राणाम करके वन में तपस्या के लिए चले गए।
 
5. शुकदेवजी का स्‍वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया वहिंषद जी की पुत्री पीवरी से हुआ था। विवाह के समय शुकदेव जी 25 वर्ष के थे।
 
6. शुकदेवजी ने ही अपने पिता व्यासजी के श्रीमद्भागवत पुराण को पढ़कर उसे राजा परीक्षित को सुनाया था। जिसके श्रवण फल से सर्पदंश-मृत्‍युपरांत भी परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई। शुकदेव जी ने व्यास से 'महाभारत' भी पढ़ा था और उसे देवताओं को सुनाया था। 
 
7. श्री व्यास के आदेश पर शुकदेवजी माता सीता के पिता जनक के पास गए और उनकी कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उनसे ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया। 
 
8. कहते हैं कि शुकदेवजी अजर अमर हैं और वे समय-समय पर श्रेष्ठ पुरुषों को दर्शन देकर उन्हें अपने दिव्य उपदेशों के द्वारा कृतार्थ करते हैं।
 
9. कूर्म पुराण के अनुसार शुकदेव जी के पांच पुत्र और एक पुत्री थी। परंतु पीवरी से शुकदेव जी के 12 महान तपस्‍वी पुत्र हुए जिनके नाम भूरिश्रवा, प्रभु, शम्‍भु, कृष्‍ण और गौर, श्‍वेत कृष्‍ण, अरुण और श्‍याम, नील, धूम वादरि एवं उपमन्‍यु थे। कीर्ति नाम की एक कन्‍या हुई। परम तेजस्‍वी शुकदेव जी ने विभ्राज कुमार महामना अणुह के साथ इस कन्‍या का विवाह कर दिया। अणुह के पुत्र ही ब्रह्मदत्त हुए।
 

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