राहुकाल, 30 मुहूर्त से लेकर कल्पादि तक के नाम, जानिए

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
राहुकाल : राहुकाल स्थान और तिथि के अनुसार अलग-अलग होता है अर्थात प्रत्येक वार को अलग समय में शुरू होता है। यह काल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार इस समय अवधि में शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए।

कब होता है राहुकाल- रविवार : शाम 04:30 से 06 बजे तक, सोमवार : 07:30 से 09 बजे तक, मंगलवार : 03:00 से 04:30 बजे तक, बुधवार : 12:00 से 01:30 बजे तक, गुरुवार : 01:30 से 03:00 बजे तक, शुक्रवार : 10:30 बजे से 12 बजे तक और शनिवार : सुबह 09 बजे से 10:30 बजे तक।

7 चौघड़िया : रात और दिन में 7 प्रकार के चौघड़िया होते हैं। प्रत्येक वार अनुसार चौघड़िए की शुरुआत अलग-अलग होती है। उद्वेग, अमृत, रोग, लाभ, शुभ, चर और काल। इनमें से अमृत, शुभ और लाभ को उत्तम, चर को मध्यम और उद्वेग, रोग और काल को खराब माना गया है।

30 मुहूर्तों के नाम : एक मुहूर्त 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट के बराबर होता है। 24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं:- मुहूर्त सुबह 6 बजे से शुरू होता है:- रुद्र, आहि, मित्र, पितॄ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ, क्ण्ड, अदिति जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।

8 प्रहर : दिन-रात मिलाकर 24 घंटे में हिन्दू धर्म के अनुसार 8 प्रहर होते हैं। दिन के 4 और रात के 4 मिलाकर कुल 8 प्रहर। औसतन एक प्रहर 3 घंटे का होता है जिसमें दो मुहूर्त होते हैं। 8 प्रहरों के नाम:- दिन के 4 प्रहर- पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल। रात के 4 प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।

7 सप्ताह : एक सप्ताह में 7 दिन होते हैं:- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार।

11 करण : एक तिथि में 2 करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किंस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किंस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

30 तिथियों के नाम : एक दिन को तिथि कहा गया है, जो पंचांग के आधार पर 19 घंटे से लेकर 24 घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियां होती हैं।

*कृष्ण पक्ष : एकम, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, छठ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, ग्यारस, बारस, तेरस, चौदस और अमावस्या।

*शुक्ल पक्ष : प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और पूर्णिमा (पूरनमासी)

12 माह के नाम जानिए :
*सौर मास के नाम : सौर मास 365 दिन का होता है। सौर मास के नाम- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
*चंद्र मास के नाम : चंद्र मास 355 दिन का होता है। चंद्रमास के नाम- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन।
*नक्षत्र मास : चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
नक्षत्र मास के नाम:- कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी और 28वां अभिजीत नक्षत्र।

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2 अयन : 12 माह अर्थात एक वर्ष में दो अयन होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सूर्य जब उत्तर की दिशा से निकलने लगता है तब उत्तरायण और जब दक्षिण में तो दक्षिणायन। उत्तरायण में देवता जाग्रत रहते हैं और दक्षिणायन में पितृ।

60 संवत्सर : संवत्सर को वर्ष कहते हैं: प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं, तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं:-

प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रुधिरोद्रारी, रक्ताक्षी‍, क्रोधन और अक्षय।

14 मन्वंतर : स्वायम्भुव, स्वारो‍‍चिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि तथा इन्द्रसावर्णि।

30 कल्प : श्‍वेत, नीललोहित, वामदेव, रथनतारा, रौरव, देवा, वृत, कंद्रप, साध्य, ईशान, तमाह, सारस्वत, उडान, गरूढ़, कुर्म, नरसिंह, समान, आग्नेय, सोम, मानव, तत्पुमन, वैकुंठ, लक्ष्मी, अघोर, वराह, वैराज, गौरी, महेश्वर, पितृ।

नोट : एक कल्प = ब्रह्मा का एक दिन। (ब्रह्मा का एक दिन बीतने के बाद महाप्रलय होती है और फिर इतनी ही लंबी रात्रि होती है)। इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु 100 वर्ष होती है। उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।

ब्रह्मा का वर्ष यानी 31 खरब 10 अरब 40 करोड़ वर्ष। ब्रह्मा की 100 वर्ष की आयु अथवा ब्रह्मांड की आयु- 31 नील 10 अरब 40 अरब वर्ष (31,10,40,00,00,00,000 वर्ष)

संदर्भ : पुराण और कल्याण का ज्योतिष तत्त्वांक
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