आत्मा का आनंदमय कोश-5

अतिमानव होने की अनुभूति

अनिरुद्ध जोशी
वेद में सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, विध्वंस और आत्मा की गति को पंचकोश के क्रम में समझाया गया है। पंचकोश ये हैं- 1. अन्नमय, 2. प्राणमय, 3. मनोमय, 4. विज्ञानमय और 5. आनंदमय। उक्त पंचकोश को ही पाँच तरह का शरीर भी कहा गया है। वेदों की उक्त धारणा विज्ञान सम्मत है जो यहाँ सरल भाषा में प्रस्तुत है।
 
जब हम हमारे शरीर के बारे में सोचते हैं तो यह पृथवि अर्थात जड़ जगत का हिस्सा है। इस शरीर में प्राणवायु का निवास है। प्राण के अलावा शरीर में पाँचों इंद्रिया हैं जिसके माध्यम से हमें 'मन' और मस्तिष्क के होने का पता चलता हैं। मन के अलावा और भी सूक्ष्म चीज होती है जिसे बुद्धि कहते हैं जो गहराई से सब कुछ समझती और अच्छा-बुरा जानने का प्रयास करती है, इसे ही 'सत्यज्ञानमय' कहा गया है।
 
मानना नहीं, यदि यह जान ही लिया है कि मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं, प्राण नहीं, मन नहीं, विचार नहीं तब ही मोक्ष का द्वार ‍खुलता है। ऐसी आत्मा आनंदमय कोश में स्थिर होकर मुक्त हो जाती है। यहाँ प्रस्तुत है आनंदमय कोश का परिचय।
 
आनंदमय कोश : ईश्वर और जगत के मध्य की कड़ी है आनंदमय कोश। एक तरफ जड़, प्राण, मन, और बुद्धि (विज्ञानमय कोश) है तो दूसरी ओर ईश्वर है और इन दोनों के बीच खड़ा है- आनंदमय कोश में स्थित आत्मा। महर्षि अरविंद के अनुसार इस कोश में स्थित आत्मा अतिमानव कहलाती है। अतिमानव को सुपरमैन भी कह सकते हैं।
 
योगयुक्त समाधि पुरुष को ही हम भगवान कहते हैं। यह भगवान ही अतिमानव है। उसे ही हम ब्रह्मा, विष्णु और शिव कहते हैं। यही अरिहंतों और बुद्ध पुरुषों की अवस्था है। ऐसा अतिमानव ही सृष्टा और दृष्टा दोनों है। इस आनंदमय कोश से ही ब्रह्मांड चलायमान है। अन्य सभी कोश सक्रिय है। मानव और ईश्वर के मध्य खड़ा हैं-  अतिमानव।
 
मनुष्यों में शक्ति है भगवान बनने की। दुर्लभ है वह मनुष्य जो भगवतपद प्राप्त कर लेता हैं। इसे ही विष्णु पद भी कहा गया है। भगवान सर्वशक्तिमान, अंतर्यामी और सबका रक्षक है। उसमें ज्ञाता, ज्ञान, ज्ञेय का कोई अंतर नहीं वह स्वयं के चरम आनंद के सर्वोच्च शिखर पर स्थित होता है। ऐसा ब्रह्म स्वरूप पुरुष जब देह छोड़ देता है तब ब्रह्मलीन होकर पंचकोश से मुक्त हो जाता है। अर्थात वह स्वयं ब्रह्ममय हो जाता है। ऐसे पुरुष का लक्षण है समाधि। समाधि या मोक्ष के भी भेद है।
 
अंतत: जड़ या अन्नरसमय कोश दृष्टिगोचर होता है अर्थात दिखाई देता है। फिर प्राण और मन का हम अनुभव ही कर सकते हैं किंतु जाग्रत मनुष्य को ही विज्ञानमय कोश समझ में आता है। जो विज्ञानमय कोश को समझ लेता है वहीं उसके स्तर को भी समझता है। अभ्यास और जाग्रति द्वारा ही उच्च स्तर में गति होती है। अकर्मण्यता से नीचे के स्तर में चेतना गिरती जाती है। इस प्रकृति में ही उक्त पंचकोशों में आत्मा विचरण करती है किंतु जो आत्मा इन पाँचों कोश से मुक्त हो जाती है ऐसी मुक्तात्मा को ही ब्रह्मलीन कहा जाता है। यही मोक्ष की अवस्था है।
 
इस तरह वेदों में जीवात्मा के पाँच शरीर बताएँ गए है- जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद। इस पाँच शरीर या कोश के अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग नाम है जिसे वेद ब्रह्म कहते हैं उस ईश्वर की अनुभूति सिर्फ वही आत्मा कर सकती है जो आनंदमय शरीर में स्थित है। देवता, दानव, पितर और मानव इस हेतु सक्षम नहीं। उस सच्चिदानंद परब्रह्म परमेश्वर को तो भगवान ही जान सकते हैं। भगवान को ईश्वर स्वरूप माना जाता है ईश्वर नहीं। ईश्वर तो अनंत और व्यापक है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Tula Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: तुला राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

Job and business Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों के लिए करियर और पेशा का वार्षिक राशिफल

मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का महत्व, इस दिन क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए?

क्या आप नहीं कर पाते अपने गुस्से पर काबू, ये रत्न धारण करने से मिलेगा चिंता और तनाव से छुटकारा

Solar eclipse 2025:वर्ष 2025 में कब लगेगा सूर्य ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा और कहां नहीं

सभी देखें

धर्म संसार

Shani Gochar 2025: शनि ग्रह मीन राशि में जाकर करेंगे चांदी का पाया धारण, ये 3 राशियां होंगी मालामाल

Meen Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: मीन राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

Kumbh Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: कुंभ राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

Utpanna ekadashi Katha: उत्पन्ना एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

अगला लेख