ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज़ : ऐसे जन्मा मानव...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
हिंदू धर्म अनुसार जीव विकासक्रम उत्पत्ति
डार्विन की एक प्रसिद्ध किताब का नाम है Origin of Species ( प्रजाति की उत्पत्ति)। इस किताब को डार्विन ने अपने थका देने वाले शोध और दुनियाभर के द्वीपों की प्रजातियों का अध्ययन करने के बाद लिखा था। इस किताब का ईसाई धर्म और उससे जुड़ी विचारधारा ने घोर विरोध किया, क्योंकि उनके अनुसार डार्विन का शोध धर्म के खिलाफ था। यह किताब जीव विकास क्रम का धर्म में उल्लेखित सिद्धांत का विरोध करती है। धर्म अनुसार ईश्वर ने मानव को मिट्टी से डायरेक्ट बनाया है। मानव क्रम विकास से नहीं बना।

उत्पत्ति-1
हम विज्ञान के क्रम विकास के सिद्धांत की बात करते हैं। विज्ञान मानता है कि मछली की उत्पत्ति धरती पर जीव विकासक्रम में पहली ऐसी बड़ी घटना थी जिसने जीव विकास के चक्र को और तेज कर दिया। सबसे पहले जलीय जीव ( Aquatic Organism) आए।

समुद्र में जलीय जीव की उत्पत्ति में लाख-करोड़ साल का वक्त लगा, इससे पहले तो समुद्र में भिन्न भिन्न जलीय पेड़-पौधे थे। विज्ञान ने मछलियों की विशेष प्रजातियों को नाम दिया- chordates fish ( अकशेरुकी)। हालांकि मछली की कई प्रजातियां मेरूदंडी थी, लेकिन यह कुछ अलग थीं जिसके कारण कछुओं की उत्पत्ति हुई। हिंदुओं ने इसे मत्स्य काल कहा है जबकि भगवान का मत्स्य अवतार हुआ था।

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उत्पत्ति-2
मछलियों की विशेष प्रजातियों से ही क्रम विकास सिद्धांत के तहत कछुओं की भिन्न-भिन्न प्रजातियां विकसित हुईं। उन्हीं में एक को tetrapodes नाम दिया। यह अपने चार पैरों पर अच्छे से चल सकता था। जल और थल दोनों में ही इसकी गति अच्छी थी। इस तरह के जीवों को उभयचरी ( Amphibian) कहा जाता है। हिंदुओं ने इसे कच्छप काल कहा है जबकि भगवान ने कछुए के रूप में जन्म लिया था।

उत्पत्ति-3
क्रम विकास के तहत फिर स्तनधारी जीवों ( Mammalian) की उत्पत्ति हुई। यह कछु्आ ही था, जो वराह (सूअर) की उत्पत्ति का कारण बना। यह जल से मुक्त पहला स्तनधारी पशु था जिसके कारण धरती से डायनासोर का अंत हुआ। ये सूअर बहुत ही विशालकाय और खूंखार होते थे। हिंदुओं ने इसे वराह काल कहा है ‍जबकि भगवान ने वराह के रूप में अवतार लिया था।

उत्पत्ति-4
वराह ने ही कालक्रम में आधे पशु और आधे मानव का रूप कैसे धरा यह कहानी भी अजीब है। विज्ञान की भाषा में इसे partialy bipedal primates कहा जाता हैं, जो आंशिक रूप से द्विपाद अर्धमानव थे। ये बहुत ही हिंसक थे। हिंदुओं के अनुसार यह हिरण्यकश्यप और भगवान नृसिंह का काल था जबकि विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

उत्पत्ति-5
अर्धमानव ही कालक्रम में बौने मानवों ( hominidae dwarf) के रूप में विकसित हुए। यह बौना मानव शारीरिक रूप से अक्षम लेकिन मानसिक रूप से सक्षम था। यह बंदरों की तरह पेड़ों पर रहता था और बहुत सोच-विचार करता था।

उत्पत्ति-6
इस सोच-विचार करने वाले बौने मानव ने ही खुद को विकसित करते हुए कब आदि मानव का रूप धर लिया यह जानना जरूरी है। विकासक्रम में इस बौने मानव ने खुद को विकसित किया और फिर जन्मा आदि मानव ( homo erectus) । खुद के पैरों पर अच्छे से खड़ा हो सकने वाला मानव जंगल में रहता था और जिसके पास पत्थरों से बने हथियार, फरसा और कुल्हाड़ी होती थी और जिसका चेहरा कुछ कुछ बंदरनुमा होता था और इसने अपने रहने के लिए पेड़ों से झोपड़ी बनाना सीख लिया था। यह भी हिंसक तो था ही लेकिन इसने खुद को सभ्य बनाने के लिए बहुत सी बातें सीखी थीं। हिंदुओं ने इस काल को परशुराम का काल कहा है जबकि विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था। परशुराम के हाथों में विशेष तरह का फरसा होता था।

उत्पत्ति-7
इस आदि मानव के दौर में कुछ इस तरह के मानव जलवायु परिवर्तन और रहन-सहन के कारण अलग तरह से विकसित हुए जिन्हें कहा जाने लगा- homo sapiens अर्थात मानव जाति। यह पूर्णत: विकसित और धनुष-बाण से लैस मानव जाति थी। ये अच्छे से वस्त्र पहनना और राज करना जानते थे। ये अपनी भाषा तथा धर्म का विकास करने लगे थे और सबसे ज्यादा सभ्य समझे जाते थे। हिंदुओं ने इस काल को राम का काल कहा है।

वैज्ञानिकों ने अब तक कुल 87 लाख यूकैरियोटिक प्रजातियों का पता लगाया है। सचमुच यह कितनी समानता है कि पुराणों में 84 लाख प्रजातियों का उल्लेख मिलता है।
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