Lord Dattatreya Jayanti : भगवान दत्तात्रेय के बारे में 15 रोचक जानकारी

Webdunia
शनिवार, 18 दिसंबर 2021 (05:46 IST)
प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय को गुरु परंपरा का आदि गुरु माना जाता है। इस बार उनकी जयंती 18 दिसंबर 2021 को मनाई जाती है। आओ जानते हैं उनके बारे में 15 रोचक जानकारी।
 
 
1. श्री दत्तात्रेय का जन्म : श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय और शिव के अंश से दुर्वासा ऋषि का जन्म हुआ।
 
2. माता और पिता : ब्रह्मा जी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव की बहन सती अनुसूया इनकी माता थीं। महर्षि अत्रि सतयुग के ब्रह्मा के 10 पुत्रों में से थे तथा उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता-अनुसूया संवाद के समय तक अस्तित्व में था। उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है और ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।
 
 
3. त्रिदेवमयस्वरूप : पुराणों अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। हिन्दू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। इसके कारण यह है कि उनमें तीनों देवों के रूप समाहित है इसीलिए उनके त्रिमुख चित्रित या वर्णित किए जाते हैं। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है। 
 
4. एक गाय चार कुत्ते : चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है।
 
5. आदिगुरु : दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु' और 'श्रीगुरुदेवदत्त' भी कहा जाता हैं। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साथक, योगी और वैज्ञानिक माना माना जाता है। भगवान शंकर के बाद गुरु परंपरा परंपरा में सबसे बड़ा नाम भगवान दत्तात्रेय का आता है।
 
 
6. वैज्ञानिक : हिंदू मान्यताओं अनुसार दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया था और चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी अंवेषण किया था।
7. त्रिवेणी : कहते हैं कि भगवान दत्तात्रेय ने तीन संप्रदाय शैव, वैष्णव और शाक्त के समन्वय का कार्य किया। इन्हें इन तीनों ही संप्रदाय की त्रिवेणी के रूप में माना जाता है। उनके प्रमुख तीन शिष्य थे जो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। तीन संप्रदाय (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में भारतीय राज्य त्रिपुरा में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा दी। यह भी मान्यता है कि इस त्रिवेणी के कारण ही प्रतीकस्वरूप उनके तीन मुख दर्शाएं जाते हैं जबकि उनके तीन मुख नहीं थे। दत्तात्रेय में शैव, वैष्णव और शाक्त ही नहीं बल्कि तंत्र, नाथ, दशनामी और इनसे जुड़े कई संप्रदाय में का समावेश हो जाता है। सभी संप्रदाय में यह विशेषरूप से पूज्जनीय है।
 
 
हिन्दू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
 
8. दत्तात्रेय के शिष्य : मान्यता अनुसार दत्तात्रेय ने परशुराम जी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी। यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तंत्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ।
 
 
9. दत्तात्रेय के 24 गुरु : भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने वन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। दत्तात्रेय जी कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है, इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी।
 
 
10. दत्त पादुका : ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात: काशी में गंगा जी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। देशभर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है।
11. गुरु जाप : 'गुरुचरित्र' का श्रद्धा-भक्ति के साथ पाठ और इसी के साथ दत्त महामंत्र 'श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा' का सामूहिक जप भी किया है। 
 
12. गुरु पाठ : त्रिपुरा रहस्य में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का उपदेश मिलता है। दत्तात्रेय का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर दो ग्रंथ हैं 'अवतार-चरित्र' और 'गुरुचरित्र', जिन्हें वेदतुल्य माना गया है। इसकी रचना किसने की यह हम नहीं जानते। मार्गशीर्ष 7 से मार्गशीर्ष 14, यानी दत्त जयंती तक दत्त भक्तों द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है। इसके कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियां हैं। इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है।
 
 
13. तपोभूमि : श्रीपाद वल्लभ, नृसिंह सरस्वती, स्वामी समर्थ और मणिक प्रभु को दत्तात्रेय का अवतार माना जाता है। दत्त संप्रदाय का प्रभाव खासकर महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में ज्यादा है। सिद्ध श्री क्षेत्र नृसिंहवाडी मंदिर में उक्त राज्य के सभी लोग एकत्रित होकर दत्त जयंती मनाते हैं। इस क्षेत्र को दत्त भगवना की तपोभूमि माना जाता है।
 
14. तीन शक्ति समाहित : दत्तात्रेय में ईश्वर, गुरु और शिव यह तीनों ही रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु' और 'श्रीगुरुदेवदत्त' भी कहा जाता हैं। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद, पुराण और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
 
 
15. माता की परीक्षा : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

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