श्राद्ध पर्व विशेष : कब और कैसे करें पितृ श्राद्ध, जानिए...

Webdunia
- पं. उमेश दीक्षित


 
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा अजर-अमर रहती है। वह अपने कार्यों के भोग भोगने के लिए नाना प्रकार की योनियों में विचरण करती है। शास्त्रों में मृत्योपरांत मनुष्य की अवस्था भेद से उसके कल्याण के लिए समय-समय पर किए जाने वाले कृत्यों का निरूपण हुआ है।
 
सामान्यत: जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का फल नर्क होता है। नर्क में जीवात्मा को बहुत यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। पुण्यात्मा मनुष्य योनि तथा देवयोनि को प्राप्त करती है।

इन योनियों के बीच एक योनि और होती है वह है प्रेत योनि। वायु रूप में यह जीवात्मा मनुष्य का मन:शरीर है, जो अपने मोह या द्वेष के कारण इस पृथ्‍वी पर रहता है। पितृ योनि प्रेत योनि से ऊपर है तथा पितृलोक में रहती है।
 
भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों तक का समय सोलह श्राद्ध या श्राद्ध पक्ष कहलाता है। शास्त्रों में देवकार्यों से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश दिया गया है। श्राद्ध से केवल पितृ ही तृप्त नहीं होते अपितु समस्त देवों से लेकर वनस्पतियां तक तृप्त होती हैं।
 
श्राद्ध करने वाले का सांसारिक जीवन सुखमय बनता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध न करने से पितृ क्षुधा से त्रस्त होकर अपने सगे-संबंधियों को कष्ट और शाप देते हैं। अपने कर्मों के अनुसार जीव अलग-अलग योनियों में भोग भोगते हैं, जहां मंत्रों द्वारा संकल्पित हव्य-कव्य को पितर प्राप्त कर लेते हैं। 

श्राद्ध की साधारणत: दो प्रक्रियाएं हैं-

एक पिंडदान और दूसरी ब्राह्मण भोजन। ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य को तथा पितर कव्य को खाते हैं। पितर स्मरण मात्र से ही श्राद्ध प्रदेश में आते हैं तथा भोजनादि प्राप्त कर तृप्त होते हैं।

एकाधिक पुत्र हों और वे अलग-अलग रहते हो तो उन सभी को श्राद्ध करना चाहिए। ब्राह्मण भोजन के साथ पंचबलि कर्म भी होता है, जिसका विशेष महत्व है।

क्या है पंचबलि... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

क्या है पंचबलि


 
शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं, जिसका श्राद्ध में विशेष महत्व है।


​1.  गौ बलि
2.  श्वान बलि
3.  काक बलि
4.  देवादि बलि
5.  पिपीलिका बलि

यहां बल‍ि से तात्पर्य किसी पशु या पक्षी की हत्या से नहीं है, बल्कि श्राद्ध के दिन जो भोजन बनाया जाता है। उसमें से इनको भी खिलाना चाहिए। इसे ही बलि कहा जाता है।

 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

परीक्षा में सफलता के लिए स्टडी का चयन करते समय इन टिप्स का रखें ध्यान

Shani Gochar 2025: शनि ग्रह मीन राशि में जाकर करेंगे चांदी का पाया धारण, ये 3 राशियां होंगी मालामाल

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

सभी देखें

धर्म संसार

29 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

29 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

वृश्चिक राशि में बुध ने चली वक्री चाल, 2 राशियों की जिंदगी में होगा कमाल

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा

उदयपुर सिटी पैलेस में जिस धूणी-दर्शन को लेकर मेवाड़ राजपरिवार के बीच विवाद हुआ, जानिए उसका इतिहास क्या है

अगला लेख