बोल बम, खड़ी, झूला या डाक, आखिर कौन सी कांवड़ यात्रा होती है सबसे कठिन?

WD Feature Desk
गुरुवार, 3 जुलाई 2025 (17:57 IST)
types of kanvar yatra: साल 2025 में कांवड़ यात्रा की शुरुआत 11 जुलाई, शुक्रवार से होने जा रही है। इस बार श्रावण माह में कुल चार सोमवार आएंगे, जो शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। परंपरा के अनुसार, कांवड़ यात्रा सावन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर कृष्ण चतुर्दशी, यानी सावन शिवरात्रि तक चलती है। इस बार की यात्रा कुल 13 दिनों तक चलेगी, जिसमें लाखों शिवभक्त गंगा जल लेकर शिवालयों की ओर प्रस्थान करेंगे। यह अवधि शिव उपासना, अनुशासन और श्रद्धा का अद्वितीय संगम मानी जा रही है। 
 
क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा केवल एक ही तरह की नहीं होती? असल में, यह यात्रा कई स्वरूपों में होती है, जैसे बोल बम कांवड़, खड़ी कांवड़, झूला कांवड़ और डाक कांवड़। हर प्रकार की कांवड़ यात्रा की अपनी खास विशेषताएं और कठिनाइयां होती हैं, लेकिन इन सभी में सबसे कठिन कौन सी है? चलिए विस्तार से समझते हैं।
 
बोल बम कांवड़ 
जब हम कांवड़ यात्रा की बात करते हैं तो सबसे पहले "बोल बम" का नाम ही जेहन में आता है। यह यात्रा सबसे ज्यादा देखी जाने वाली और लोकप्रिय है। इसमें श्रद्धालु अपने कंधों पर कांवड़ उठाकर नंगे पैर चलते हैं और यात्रा के दौरान “बोल बम” के जयकारे लगाते रहते हैं। इस यात्रा में थकान लगने पर श्रद्धालु कहीं भी बैठकर आराम कर सकते हैं, लेकिन कांवड़ को ज़मीन पर नहीं रखा जाता। इसके लिए विशेष स्टैंड का उपयोग किया जाता है।
 
यात्रा की दूरी और कठिनाई तो होती है, लेकिन विश्राम की अनुमति इसे सरल बनाती है। यही वजह है कि बोल बम कांवड़ यात्रा में भाग लेने वालों की संख्या सबसे ज्यादा होती है, और यह यात्रा भक्ति के साथ-साथ शारीरिक सहनशक्ति की भी परीक्षा है।
 
खड़ी कांवड़ 
खड़ी कांवड़ का नियम बोल बम कांवड़ से थोड़ा कठिन है। इस यात्रा में कांवड़ को एक स्थान पर स्थिर रखना पूरी तरह वर्जित है। यात्रा के दौरान जब भक्त थक जाते हैं और आराम करना चाहते हैं, तो एक सहयोगी साथी कांवड़ को अपने हाथ में लेता है और हिलता-डुलता रहता है ताकि कांवड़ कभी भी स्थिर न हो। यह नियम इस यात्रा को फिजिकल और मानसिक रूप से ज्यादा चुनौतीपूर्ण बनाता है।
 
हर पल चलते रहना ही इस यात्रा की सबसे बड़ी परीक्षा होती है, और यह नियम ना केवल भक्त के लिए, बल्कि उसके सहयोगी के लिए भी कठिन होता है। अगर आप सेल्फ कंट्रोल और समर्पण की चरम परीक्षा में उतरना चाहते हैं, तो खड़ी कांवड़ एक कठिन लेकिन प्रभावशाली विकल्प है।
 
झूला कांवड़
झूला कांवड़ का नाम उसके विशेष डिजाइन के कारण रखा गया है। यह बांस से बना एक विशेष कांवड़ होता है, जिसके दोनों सिरों पर मटके लटकाए जाते हैं, जिनमें गंगाजल भरा होता है। यात्रा के दौरान भक्त इसे अपने कंधों पर रखकर चलते हैं, लेकिन जब आराम करना होता है तो इसे नीचे जमीन पर रखना सख्त मना होता है। इसके लिए भी विशेष झूला स्टैंड का उपयोग किया जाता है।
 
झूला कांवड़ में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि इसे संतुलित रखना होता है। दोनों मटकों में बराबर वजन होना चाहिए, नहीं तो कांवड़ का संतुलन बिगड़ सकता है और यात्रा मुश्किल हो सकती है। इसके नियम और सावधानी इसे शारीरिक से ज्यादा मानसिक चुनौती बनाते हैं।
 
डाक कांवड़ 
डाक कांवड़ को कांवड़ यात्रा का सबसे कठिन स्वरूप माना जाता है, और इसके पीछे कई ठोस कारण हैं। इस यात्रा में गंगाजल भरने के बाद भक्त एक पल के लिए भी नहीं रुकते। उन्हें 24 घंटे के भीतर शिव मंदिर पहुंचकर जलाभिषेक करना होता है। इस दौरान वे लगातार दौड़ते या तेज़ चलते हैं, विश्राम बिल्कुल नहीं करते।
 
डाक कांवड़ के भक्त विशेष रूप से सफेद वस्त्र पहनते हैं और इन्हें यात्रा के दौरान कोई नहीं रोक सकता। इनकी गति और समर्पण को देखते हुए शिव मंदिरों में इनके लिए अलग से मार्ग बनाए जाते हैं। न रुकने की बाध्यता, रात-दिन लगातार चलना और सीमित समय में यात्रा पूरी करना इसे सबसे ज्यादा कठिन बनाता है। 


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