टोक्यो ओलंपिक में सिर्फ एक बार ही भारत पाकिस्तान का मुकाबला देखा जा सका। पाकिस्तानी हॉकी टीम क्वालिफाय नहीं कर पायी इस कारण हॉकी में दोनों चिर प्रतिद्वंदी टीम नहीं मिल सकी। वहीं महूर शहजाद भी शुरुआती दौर में पीवी सिंधु के ड्रॉ में नहीं थी। तो कुल मिलाकर सीधी टक्कर तो भारत और पाकिस्तान की इस ओलंपिक में नहीं हुई।
लेकिन अंतिम दिन भाला फेंक प्रतियोगिता में दो एशियाई जैवलिन थ्रोअर फाइनल में थे। नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम अपने अपने ग्रुप टॉप कर फाइनल में पहुंचे थे। फाइनल में भी दोनों का प्रदर्शन शानदार रहा था।
नीरज चोपड़ा के 87.58 मीटर का प्रयास अंत तक सबसे शीर्ष पर रहा लेकिन अरशद नदीम ने भी 4 बार भाला 80 मीटर के पार पहुंचाया। नीरज के हालिया दिए गए बयान में यह साफ झलकता है कि नदीम के प्रदर्शन से खुश थे लेकिन वह उनके साथ पोडियम पर नहीं आ सके इसका उनको मलाल है।
नीरज चोपड़ा ने कहा कि अच्छा होता कि अगर नदीम भी पोडियम पर आ जाते इससे एशिया का ही नाम रौशन होता। दिलचस्प बात यह है कि अरशद पहले क्रिकेट खेलते थे लेकिन नीरज से ही प्रेरणा लेकर जैवलिन थ्रो के खिलाड़ी बने। 2018 एशियन गेम्स के ब्रॉन्ज मैडलिस्ट रहे नदीम ने 85.16 मीटर तक भाला फेंका और टॉप 6 में ऑटोमेटिकली क्वालिफाय किया, वहीं दीपक ने 86 मीटर तक भाला फेंक कर क्वालिफाय किया था। लेकिन फाइनल में दोनों के बीच का फासला बड़ा हो गया। नदीम पांचवे स्थान पर रहे।
यह ओलंपिक में संभवत पहला मौका था जब यूरोपिय देशों के खिलाड़ियों को एशियाई खिलाड़ियों से जैवलिन थ्रो में चुनौती मिल रही थी। 2018 एशियाई खेलों में भले ही नदीम पहले चोपड़ा के साथ पोडियम शेयर कर चुके हों लेकिन ओलंपिक में पोडियम पर वह उनका साथ नहीं दे पाए।
नदीम जैवलिन थ्रो से पहले तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। नीरज चोपड़ा को ही देखकर वह इस खेल की ओर आकर्षित हुए। तेज गेंदबाजों के लिए पाकिस्तान क्रिकेट टीम पहले से ही मशहूर है। शायद क्रिकेट में ज्यादा प्रतियोगिता देख उन्होंने जैवलिन थ्रो में अपना करियर बनाया। (वेबदुनिया डेस्क)