कृषि कानूनों पर झुकी सरकार, अब निर्णायक भूमिका निभाएगा वेस्ट यूपी का जाटलैंड

हिमा अग्रवाल
शुक्रवार, 19 नवंबर 2021 (12:06 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह 9 बजे एक विशेष प्रसारण में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर गुरु पर्व का तोहफा किसानों को दिया है। इन तीनों कृषि कानूनों का पुरजोर विरोध कर रहे थे उनकी मांग थी कि तत्काल प्रभाव से इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए और एमएसपी पर कानून बनाया जाए। इस आंदोलन में अब तक 600 से ज्यादा किसानों की मृत्यु हो चुकी है।

ALSO READ: पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक, जानिए क्या है कृषि कानून वापस लेने के मायने
अहम बात यह है कि किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने हर कोशिश की हर हथकंडा अपनाया लेकिन किसान टस से मस नहीं हुए और शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन जारी रखा। इस बीच कृषि कानूनों का विरोध कर रहे पीलीभीत के किसानों को एक मंत्री पुत्र ने अपनी कार से रौंद दिया।

इसके बाद भी किसानों ने अनुशासित रहकर अपना आंदोलन जारी रखा और बता दिया कि अगर किसान या जनता संगठित हो जाए तो वह किसी भी हठधर्मी शासन को झुका सकती है। अपने फैसले पर अडिग रहने की छवि वाले प्रधानमंत्री को किसानों के समक्ष आखिर क्यों झुकना पड़ा।
 
उत्तर प्रदेश की बड़ी बेल्ट गन्ना और धान किसानों की है, यदि बात करें चुनावी समीकरणों पर तो यहां की वेस्ट यूपी बेल्ट से ही राजनैतिक समीकरण तैयार करते है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का दबदबा है, यहां के बागपत और मुजफ्फरनगर जाटों का गढ़ है। वेस्ट यूपी की 136 सीटों पर जाट किसानों का प्रभाव देखने को मिलता है।
 
प्रधानमंत्री मोदी के तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव का सियासी पारा शिखर पर पहुंच जायेगा। विपक्ष किसानों के कृषि आंदोलन रद्द करने को समर्थन देते हुए जो सियासी रोटी सेंक रहा था, अब तीन कृषि कानून वापसी की घोषणा के बाद धड़ाम से गिर गया है, क्योंकि लगभभ 4 माह बाद यूपी में विधानसभा चुनाव होने है, विपक्ष किसान आंदोलन को कैश करने की कवायद कर रहा था।
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और बागपत जिला जाटों का गढ़ है। बागपत का छपरौली चौधरी चरण सिंह की कर्मस्थली कहा जाता है, चौधरी चरण सिंह के बाद उनकी इस विरासत को उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह ने संभाला। बागपत के किसान कुछ समय राष्ट्रीय लोकदल के सुप्रीमो अजीत सिंह के साथ नजर आयें, लेकिन फिर उनसे नाराज होकर यह कहते हुए साथ छोड़ दिया कि वह कुर्सी पाने के बाद क्षेत्र की तरफ रूख नही करते, बागपत का जो विकास होना चाहिए था वह हो नही पाया है।
 
नाराज किसानों ने बीजेपी का दामन थामते हुए वहां से बीजेपी के सत्यपाल सिंह को जीताकर विधानसभा भेज दिया। चौधरी अजीत सिह के निधन के बाद आरएलडी की कमान उनके बेटे जयंत ने संभाली, किसानों ने जाटों की पगड़ी जयंत.को बांधते हुए उन्हें अपना नेता मान लिया है। राष्ट्रीय लोकदल फिर से जाटों के बीच खोयें आधार को पाने में जुटा हुआ है और आगामी चुनावों में वेस्ट यूपी से जाटों के वोट जीत का समीकरण तैयार करेंगे।
 
मुजफ्फरनगर की सिसौली गांव किसानों की राजनीति का केंद्र बना हुआ है, यह भारतीय किसान यूनियन की राजधानी भी है। बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने सिसौली से हमेशा किसानों की हित की लड़ाई लड़ी है और बड़े-बड़े आंदोलनों को जन्म देकर सत्ता को हिला दिया। बाबा महेंद्र सिंह के बाद उनकी विरासत को संभालने का जिम्मा उनके बेटों के कंधे पर आ गया।
 
बाबा के बड़े बेटे नरेश टिकैत के सिर जाटों ने पगड़ी बांधकर उन्हें भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष स्वीकार किया, वही नरेश के भाई राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता है। राकेश टिकैत के नेतृत्व में लगभभ एक साल से किसान तीन कृषि कानून वापसी की मांग को लेकर गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए है। आज प्रधानमंत्री के तीनों कृषि कानूनों के वापस लिए जाने की घोषणा के बाद गाजीपुर बार्डर पर सरगर्मी तेज हो गयी है, किसान खुश है और इसे अपनी जीत बता रहें है।
 
यूपी के विधानसभा चुनाव में लगभभ 4 माह का समय रह गया है, ऐसे में कृषि कानून वापसी के चलते राजनीतिक सियासत के समीकरण बदल सकते हैं। किसानों के संदर्भ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 6 मंडल मेरठ, सहारनपुर, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़ और आगरा की बात करें तो यहां के 26 जिलों में जाटों की बाहुल्यता है। 6 मंडल के 26 जिले से जुड़े जाट यहां की राजनीति को निर्णायक प्रभाव डालते है।
 
दिल्ली और हरियाणा से सटे बागपत में छपरौली जहां आरएलडी का पिछले 84 साल से गढ़ बना हुआ है। जिसके कारण बागपत से लेकर आगरा तक जाट यूपी व केंद्र की राजनीति पर सीधा प्रभाव रखता है। जाटों के दिलों पर छाप छोड़ने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण की अंतिम विदाई और अस्थि कलश यात्रा को यहां से निकालकर पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश की है। वहीं छपरौली में 19 सितंबर को राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी अजीत सिंह को श्रृद्धांजलि सभा आयोजित करके जाटों को साधने की कोई कोर कसर आर एल डी ने नही छोड़ी है। 
 
अब देखना होगा की प्रधानमंत्री का तीन कृषि कानून वापसी का पासा जाटलैंड में कितनी सेंधमारी कर पाता है, यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Rajkot Gaming Zone Fire: HC की फटकार के बाद सरकार का एक्शन, राजकोट के कमिश्नर सहित 6 IPS अधिकारियों का ट्रांसफर

क्यों INDIA गठबंधन बैठक में शामिल नहीं होंगी ममता बनर्जी, बताया कारण

Maruti Alto EV सस्ता और धमाकेदार मॉडल होने जा रहा है लॉन्च, जानिए क्या हो सकती है कीमत

Prajwal Revanna : सेक्स स्कैंडल में फंसे प्रज्वल रेवन्ना का पहला बयान, 31 मई को SIT के सामने आऊंगा

चक्रवाती तूफान रेमल का कहर, बंगाल में 15000 घर तबाह, 2 लोगों की मौत

MCD महापौर मामले में AAP ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्रालयों का बंटवारा, हर्ष संघवी को गृह और कनुभाई देसाई को मिला वित्त विभाग, जानिए किसे कौनसा मंत्रालय मिला

भूपेन्द्र पटेल दूसरी बार बने गुजरात के मुख्‍यमंत्री, एक महिला मंत्री ने भी ली शपथ

Gujarat : गांधीनगर में कल भूपेंद्र पटेल का शपथ ग्रहण, PM मोदी भी रहेंगे मौजूद, ये विधायक ले सकते हैं मंत्री पद की शपथ

हिमाचल में प्रतिभा सिंह के 'हाथ' से कैसे फिसल गई CM की कुर्सी?

अगला लेख