सौ साल के स्वर्णिम गाथा में योगी के प्रयास से एक और अध्याय जुड़ा

गीताप्रेस शताब्दी वर्ष समारोह

गिरीश पांडेय
Centenary year celebration of Geetapress Gorakhpur: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि (कर्म करने में ही आपका अधिकार है, उसके फलों में नहीं। इसलिए फल की दृष्टि से कर्म न करें और न ही ऐसा सोचें कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं)। यही दुनिया के महान ग्रंथों में शुमार श्रीमद्भागवत गीता का आधार है। यही योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का कर्म योग है। गोरखपुर का विश्व प्रसिद्ध गीताप्रेस इसका जीवंत स्वरूप है।
 
गीताप्रेस विश्व की उन चुनिंदा संस्थाओं में शुमार होगा जिसकी शताब्दी का आगाज राष्ट्रपति और समापन प्रधानमंत्री से हो यूं तो न्यूनतम मूल्य पर सत्साहित्य के प्रकाशन में गीताप्रेस की वैश्विक पहचान है। पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से इसकी स्वर्णिम गाथा में एक और अध्याय जुड़ जाएगा। यह दुनिया के उन चुनिंदा संस्थानों में शुमार होगा जिसकी शताब्दी का आगाज उस देश के राष्ट्रपति एवं समापन प्रधानमंत्री के द्वारा हुआ हो। किसी प्रधानमंत्री का यहां पहली बार आगमन हो रहा है।
 
मुख्य अतिथि होंगे पीएम मोदी : 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य आतिथ्य में गीताप्रेस के शताब्दी वर्ष का समापन समारोह होने जा रहा है। खास बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी गीता प्रेस आने वाले पहले प्रधानमंत्री होंगे। गीता प्रेस में वह आर्ट पेपर पर मुद्रित श्री शिव महापुराण के विशिष्ट अंक (रंगीन, चित्रमय) का भी विमोचन करेंगे।
 
उल्लेखनीय है कि सौ साल पहले 10 रुपए के किराए वाले एक छोटे से मकान में गीताप्रेस की स्थापना हुई थी। गीताप्रेस से लंबे समय तक जुड़े रहे प्रह्लाद ब्रह्मचारी के अनुसार उस समय किसी खास योजना की रूपरेखा भी नहीं थी। एक छोटी सी ट्रेडिल। थोड़े से टाइप थे। भगवान की कृपा एवं प्रेरणा से कार्य उत्तरोत्तर बढ़ता गया। आज के गीताप्रेस का स्वरूप सबके सामने है। फिलहाल तो गीताप्रेस दो वजहों से चर्चा में है। गांधी शांति पुरस्कार एवं गीताप्रेस शताब्दी साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यहां आगमन को लेकर।
 
गांधी शांति पुरस्कार के बाबत संस्था पहले ही अपना पक्ष यह कहकर कि सम्मान का सम्मान, पर एक करोड़ रुपऐ का पुरस्कार राशि को लेने से पूरी विनम्रता के साथ मना कर चुकी है। जबकि पीएम के आगमन की बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही है। वैसे तो गीताप्रेस में अब तक देश के दो राष्ट्रपति आ चुके हैं। 29 अप्रैल 1955 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र भव्य मुख्य द्वार का उद्घाटन करने आए थे और 4 जून 1922 को शताब्दी वर्ष के शुभारंभ समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद। 
 
बिना किसी चंदे, आर्थिक मदद के लगातार सत्साहित्य का प्रकाशन : मई 1923 में बंगाल सोसायटी पंजीयन अधिनियम के तहत कोलकाता में संस्था का पंजीकरण हुआ था तभी उसके बाइलॉज में यह था कि संस्था के किसी ट्रस्टी का इसमें न कोई निजी लाभ होगा न आर्थिक हित। तबसे संस्था बिना किसी चंदे या आर्थिक मदद के सस्ते सत्साहित्य का लगातार प्रकाशन कर रहा है। 
 
गीताप्रेस के व्यापक सामाजिक सरोकार : गीताप्रेस का सत्साहित्य प्रकाशन के अलावा भी व्यापक सामाजिक सरोकार है। गोरखपुर में ही गीताप्रेस की अपनी गोशाला है। जेल रोड पर गीतावाटिका एक रमणीय जगह है। यहां वर्षों से अखंड पाठ हो रहा है। बगल में ही कल्याण पत्रिका के आदि संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के नाम से कैंसर अस्पताल है।
 
खुद में अद्भुत है गीताप्रेस का मुख्य द्वार : गीताप्रेस का मुख्य द्वार खुद में अद्भुत है। इसकी संरचना में भारतीय संस्कृति, धर्म एवं कला की गरिमा के हर पक्ष को शामिल करने का प्रयास किया गया है। इसके निर्माण में देश की गौरवमयी प्राचीन कला और विख्यात प्राचीन मंदिरों से प्रेरणा ली गई है। सभी की स्थापत्य शैलियों का आंशिक रूप से दिग्दर्शन करने का प्रयास किया गया है।
 
नयनाभिराम है गीताप्रेस का लीलाचित्र मंदिर : गीताप्रेस का लीलाचित्र मंदिर अद्भुत और नयनाभिराम है। इस मंदिर में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं से संबंधित स्मरणीय 600 से अधिक चित्र हैं। इसके अलावा समय-समय पर गीताप्रेस से प्रकाशित श्रेष्ठ धार्मिक चित्रकारों द्वारा बनाए हुए अनेक हस्तनिर्मित मौलिक चित्रों का संग्रह भी है। दीवार पर सम्पूर्ण  संगमरमर के पत्थरों पर समग्र श्रीमद्भगवद्गीता और संत-भक्तों के सैकड़ों दोहे तथा वाणियां खुदी हुई हैं। यहां प्रतिवर्ष गीता जयंती के शुभ अवसर पर वृहद प्रदर्शनी का आयोजन होता है। इसमें गीता की विभिन्न भाषाओं की प्रतियों तथा भव्य झांकियों का प्रदर्शन होता है। समय-समय पर प्रवचन एवं अन्य धार्मिक कार्यक्रमों भी होते रहते हैं।
 
ऋषिकेश, चूरू व कोलकाता में भी संस्था के प्रकल्प : गीताप्रेस के प्रकल्प ऋषिकेश, चूरू और कोलकाता में भी हैं। देवभूमि ऋषिकेश में पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगाजी के पवित्र तट पर स्वर्गाश्रम के निकट सत्संग, भजन, गंगा स्नानादि के लिए गीता भवन है। वैशाख से अषाढ़ यहां सत्संग का आयोजन होता है। वहां लगभग 10000 कमरे हैं। अतिथियों को ये निःशुल्क दिए जाते हैं। शुद्ध खाद्य सामग्री, भोजन, मिष्ठान, आयुर्वेदिक औषधियां आदि भी न्यूनतम दाम में उपलब्ध कराई जाती हैं।
 
इसी तरह राजस्थान के चूरू में स्थित ऋषि ब्रह्मचार्यम आश्रम में प्राचीन पद्धति के अनुसार ब्रह्मचारियों के निवास, भोजन, शिक्षा आदि की न्यूनतम मासिक राशि में व्यवस्था है।
 
कोलकाता स्थित संस्था के प्रधान कार्यालय गोविंद भवन में एक विशाल सभागार एवं कक्ष है। वहां नित्य गीतापाठ एवं संत-महात्माओं के प्रवचन होते हैं। साथ ही समय-समय पर विविध धार्मिक समारोह भी आयोजित किए जाते हैं। खासकर गीता जयंती समारोह विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। वहां की परम सेवा समिति मरणासन्न व्यक्तियों को श्रीभगवन्नाम संकीर्तन एवं गीता-पाठ सुनाने तथा तुलसी, गंगाजल सेवन की व्यवस्था करती है। शुद्ध आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण एवं रोगियों में निःशुल्क देने की भी व्यवस्था है। गीता-रामायण परीक्षा समिति, गीता-रामायण प्रचार संघ, साधक संघ, नाम जप जैसे अन्य प्रकल्प भी हैं।
 
हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका : हिंदी को देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाने में गीताप्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। न जाने कितने लोगों ने हिंदी बालपोथी से ही ककहरा सीखा होगा। यहां से प्रकाशित सत्साहित्य खासकर, कल्याण को पढ़ने एवं समझने के लिए, अहिंदी भाषी क्षेत्र के लाखों लोगों हिंदी सीखी।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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