Valentine day special: इस वेलेंटाइन डे पर इन कविताओं से करे अपने प्रेम की बात

Webdunia
सोमवार, 10 फ़रवरी 2020 (16:24 IST)
प्रेम में अभिव्‍यक्‍ति न हो तो प्रेम अधूरा रह जाता है। अभिव्‍यक्‍ति के लिए कविता चाहिए और कविता के लिए शब्‍द और भाव। इन सब के बगैर प्‍यार पूरा नहीं होता। इस वेलेंटाइन डे हम आपको पढ़वाएंगे कुछ ऐसी ही 10 प्रेम कविताएं जिन्‍हें छू कर आपको होगा प्‍यार का अहसास। अपने साथी से अपनी बात कहने के लिए ये रही आपके लिए खूबसूरत प्रेम कविताएं।
  

(01)
कल जब
निरंतर कोशिशों के बाद,
नहीं कर सकी
मैं तुम्हें प्यार,
तब
गुलमोहर की सिंदूरी छाँव तले
गहराती
श्यामल साँझ के
पन्नों पर
लिखी मैंने
प्रेम-कविता, शब्दों की नाजुक कलियाँ समेट
सजाया उसे
आसमान में उड़ते
हंसों की
श्वेत-पंक्तियों के परों पर,
चाँद ने तिकोनी हँसी से

देर तक निहारा मेरे इस पागलपन को,
नन्हे सितारों ने
अपनी दूधिया रोशनी में
खूब नहलाया मेरी प्रेम कविता को, कभी-कभी लगता है कितने अभागे हो तुम
जो ना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।

फिर लगता है कितने भाग्यशाली हो तुम
कि मेरे साथ तुम्हें समूची साँवल‍ी कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत प्रेम कविता जन्म लेती है सिर्फ तुम्हारे कारण। (स्मृति)

(02)
महक उठी थी मेरी मन बगिया
पांखुरी की तरह मेरे दिल पर
कुछ फिसलता रहा
रेशमी और कोमल
रोम-रोम पर ...
कौन कहता है गुलाब सिर्फ फूल होता है।
प्रेम में आकंठ
हर प्रेमी गुलाब ही तो होता है..।
तुम्हारी तरह ...(स्मृति)

(03)
तमाम उदास और थकी हुई व्यस्त दोपहरियों के बीच भी
अक्सर टंकी रहती है
स्मृतियों की चुनर में
कोई एक दोपहर
झिलमिलाती हुई...
और उसी के बीच
कोई एक चंचल शाम भी मुस्कुराती हुई....
गुलाबी, हल्की नीली या सुनहरी केसरिया
ताजा‍तरीन और सौंधी सी महक वाली
ना जाने कितने रंग बोलते हुए
शब्द गाते हुए,
आंखें भीगा सा मन समझाती हुई
और मन आंखों को सहलाता हुआ...
कोई हाथ बस चेहरे तक आकर रूका हुआ
कोई नजर अनदेखा करते हुए भी देखती हुई...
थरथराते होंठों पर कांपती हुई
कोई एक अधूरी सी कविता
उसी एक दोपहरी के नाम
जो टंकी है स्मृतियों की चुनर पर
बरसों से .. .
और बरस हैं कि
चुनरी से झरते ही नहीं
मोह धागे में बंधे
इन बरसों के लिए भी बहुत कुछ लिखना है...
लेकिन फिर कभी...(स्मृति)

(04)
हां,मैंने भी देखा था
मुझको
उस समय...
तब जब
तुम मिले तो चंद्र-सी चमक
मेरे चेहरे पर निखर आई थी
सूर्य-सा सौभाग्य मेरे माथे पर सज उठा था  
तुम्हारे साथ का जादू ही था कि
आ गया मुझमें धरा-सा धैर्य
और अरमानों को मिल गया वायु-सा वेग
जीवन जल-सा सरल-तरल हो गया.....
झरने-सी कलकल झर-झर
खूब सारी खुशियों का स्वर
सुना था मैंने हर तरफ....
तारों-सी टिमटिम
दमकती मुस्कुराती मेरी चूनरी ने
देखा था मुझको
मुझे ही निहारते हुए...
और मैंने शर्मा कर फैला दिया था उसे
आसमानी असीमता को छूने के लिए
लहराते हुए...
हां,मैंने भी देखा था
मुझको ... तुम जब मिले थे...(स्मृति)

(05)
नहीं जानती क्यों
अचानक सरसराती धूल के साथ
हमारे बीच
भर जाती है आंधियां
और हम शब्दहीन घास से
बस नम खड़े रह जाते हैं
 नहीं जानती क्यों
अचानक बह आता है
हमारे बीच
दुखों का खारा पारदर्शी पानी
और हम अपने अपने संमदर की लहरों से उलझते
पास-पास होकर
भीग नहीं पाते... 
नहीं जानती क्यों
हमारे बीच महकते सुकोमल गुलाबी फूल
अनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
उन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं..
नहीं जानती क्यों....(स्मृति)

(06)
तेरी तस्वीर को सीने
से लगाए बैठा हूं
 मैं हर एक गम को
सीने में छिपाए बैठा हूं
तेरी यादों को आंखों में
सजाए बैठा हूं
जिंदगी जख्‍म है तेरे बिना
इस सच को सबको सुनाते
बैठा हूं
यह सच है तेरा प्यार
धोखा था मेरे लिए
पर मैं तो धोखे को खुदा
माने बैठा हूं
तू मंदिर है मेरी
तू मस्जिद है मेरी
तू अजान भी है
तू वेदोच्चार भी है
तू ही है जिंदगी का बिस्मिल्लाह
तुझे मर्सिये का
अंतिम कलाम माने बैठा हूं।

(07)
समा गए हैं दिल में,
समावेश कर चुकी हूं।

उन्हीं का साथ देने इस,
जमीं पर मैं रुकी हूं।
वरना चली मैं जाती,
पथ से नहीं डिगी हूं।
अधरों पर अधर रख के,
रसपान जो कराती हूं।
सोते हैं जब-जब साजन,
पंखा खुद डोलाती हूं।
जो जान है हमारी,
उनके रंग में रंगी हूं।

(08)
सर्द है हवाएं, बेदर्द बना मौसम।
तुम्हारी ही चाहतों में।
रातें गुजारते है। 
करवट बदल-बदल के।
सोचते-विचारते है।
तुम्हारी ही चाहतों में।
रातें गुजारते है।
आती है याद जो।
छुप-छुप के बिताए थे।
तुम्हें भी याद होगा जो।
गीत गाए थे।
दर्द अपने दिल का।
लिख कर निकालते है।
तुम्हारी ही चाहतों में।
रातें गुजारते है।

(09)
मुझे हर उस लम्हे से प्यार है,
जो तुमने जिया है।
तुम अभी इस घड़ी, पल जहां हो,
उस वक्त, उस जगह से मुझे प्यार है।
प्यार है मुझे उस रास्ते, गलियारों से,
जहां से तुम गुजरे और निकलोगे,
जब वापस घर आओगे।
प्यार है मुझे उस ठौर से जहां तुम ठहरे,
उतना आसमां मुझे प्यारा है बेहद।
जिसके तले तुम हो अभी,
और वह धरा जहां तुम खड़े।

पर उससे ज्यादा उस नभ से,
जहां तुम नहीं,
क्योंकि वह और मैं दोनों तुम बिन है।
मुझे प्यार है उस उजाले से, जहां तुम,
वह घना अंधेरा भी मेरा, जो तुम्हारा है।
प्यार करती हूं हर उस रस्म से,
जो तुमने निभाई,
और उससे जो कभी निभाओ।
प्यार है मुझे हर उस ख्याल से,
जो अभी तुम्हारे जेहन में है।
और उस भाव से जो दिल में,
उस हर बात पर मेरे दिल में,
जो तुमने सोची पर न की।
पर तुम्हारे हर सपने से इतर,
हकीकत मुझे प्यारी।
हर उस एकांत से मुझे प्यार,
जो तुमने काटा,
उस जलसे से बेहद जहां तुम थे।
लेकिन तुम्हारी खुशी से ज्यादा दुख से,
हासिल से ज्यादा खोने से,
बातों से ज्यादा यादों से,
होने से ज्यादा न होने से,
हां, मुझे प्यार है।
क्योंकि मैं तुमको सिर्फ मुझमें नहीं,
उन सब में पाती हूं जिसमें तुम हो,
मैं हर पल, हर उस जगह होती हूं,
जहां जिसके दरमियान तुम होते हो,
और उन सबसे मुझको बेहद प्यार है।
और उन लम्हों से ज्यादा जो तुमने मुझमें,
और मैंने तुम में बिताया है,
कहीं ज्यादा उनसे जिसने तुम बिन,
मुझे कहीं ज्यादा अपनाया है।

(10)
प्यार, एक शब्द भर होता
तो पोंछ देती उसे
अपने जीवन के कागज से,
प्यार, होता अगर कोई पत्ता
झरा देती उसे
अपने मन की क्यारी से
प्यार, होता जो एक गीत,
भूल चुकी होती मैं उसे
कभी गुनगुनाकर,
मगर, सच तो यह है कि
प्यार तुम हो,
तुम!
और तुम्हें
ना अपने जीवन से पोंछ सकती हूं,
ना झरा सकती हूं
मन की क्यारी से,
ना भूल सकती हूँ
बस एक बार गुनगुनाकर,
क्योंकि ओ मेरे विश्वास,
प्यार मेरे लिए तुम हो साक्षात,
सदा आसपास,(स्मृति)

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