Dharma Sangrah

पांच प्रमुख योग मुद्रा

अनिरुद्ध जोशी
मुख, नाक, आंख, कान और मस्तिष्क को पूर्णत: स्वस्थ्य तथा ताकतवर बनाने के लिए हठ योग में पांच प्रमुख मुद्राओं का वर्णण मिलता है। सामान्यजनों को निम्नलिखित मुद्राओं का अभ्यास किसी जानकार योग शिक्षक से सीखकरही करना चाहिए। वैसे यह मुद्राएं सिर्फ साधकों के लिए हैं जो कुंडलिनी जागरण कर सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं।
 
 
ये पांच प्रमुख मुद्राएं हैं- 1.खेचरी (मुख के लिए), 2.भूचरी (नाक के लिए), 3.चांचरी (आंख के लिए), 4.अगोचरी (कान के लिए), 5.उन्मनी (मस्तिष्क के लिए)। खेचरी से स्वाद् अमृततुल्य होता है। भूचरी से प्राण-अपान वायु में एकता कायम होती है। चांचरी से आंखों की ज्योति बढ़ती है और ज्योतिदर्शन होते हैं। अगोचरी से आंतरिक नाद का अनुभव होता है और उन्मनी से परमात्मा के साथ ऐक्य बढ़ता है। उक्त सभी से पांचों इंद्रियों पर संयम कायम हो जाता है।
 
 
1.खेचरी- इसके लिए जिभ और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है, अर्थात एक दिन जौ भर काट कर छोड़ दिया जाता है। फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा-सा और काट दिया जाता है। इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त शिराएं अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं। जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास किया जाता है।
 
 
इसका अभ्यास करने से कुछ महिनों में जीभ इतनी लम्बी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ उल्टा करें तो वह श्वास जाने वाले छेदों को भीतर से बन्द कर देती है। इससे समाधि के समय श्वास का आना-जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है।
 
 
2.भूचरी- भूचरी मुद्रा कई प्रकार के शारीरिक मानसिक कलेशों का शमन करती है। कुम्भक के अभ्यास द्वारा अपान वायु उठाकर हृदय स्थान में लाकर प्राण के साथ मिलाने का अभ्यास करने से प्राणजय होता है, चित स्थिर होता है तथा सुषुम्ना मार्ग से प्राण संस्पर्श के ऊपर उठने की संभावना बनती है।
 
 
3.चांचरी- सर्वप्रथम दृष्टि को नाक से चार अंगुल आगे स्थिर करने का अभ्यास करना चाहिए। इसके बाद नासाग्र पर दृष्टि को स्थिर करें, फिर भूमध्य में दृष्टि स्थिर करने का अभ्यास करें। इससे मन एवं प्राण स्थिर होकर ज्योति का दर्शन होता है।
 
 
4.अगोचरी- शरीर के भीतर नाद में सभी इंद्रियों के साथ मन को पूर्णता के साथ ध्यान लगाकर कान से भीतर स्थित नाद को सुनने का अभ्यास करना चाहिए। इससे ज्ञान एवं स्मृति बढ़ती है तथा चित्त एवं इंद्रियां स्थिर होती हैं।
 
 
5.उन्मनी- सहस्त्रार (जो सर की चोटी वाला स्थान है) में पूर्ण एकाग्रता के साथ मन को लगाने का अभ्यास करने से आत्मा परमात्मा की ओर गमन करने लगती है और व्यक्ति ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ने लगता है।
 
 
चेतावनी- यह आलेख सिर्फ जानकारी हेतु है। कोई भी व्यक्ति इसे पढ़कर करने का प्रयास ना करें, क्योंकि यह सिर्फ साधकों के लिए है आम लोगों के लिए नहीं।
 
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

रहस्य से पर्दा उठा, आकाशीय बूगा गोला कुंजी है क्वांटम विज्ञान की

हर्निया सर्जरी का मतलब व्यायाम पर रोक नहीं: डॉ. अचल अग्रवाल

इंगेजमेंट में ब्राइड्स को लहंगे की जगह क्यों पसंद आ रही है ये ड्रेसेस?

Peanuts health benefits: पीनट्स खाने से शरीर को मिलते हैं ये 9 फायदे

मेंटल हेल्थ स्ट्रांग रखने के लिए रोजाना घर में ही करें ये 5 काम

सभी देखें

नवीनतम

संघ द्वारा प्रकृति की पूजा की अपील सर्वथा उचित

Guru Gobind Singh Ji Quotes: गुरु गोविंद सिंह जी के 10 प्रेरक विचार, जो बदल देंगे जिंदगी का नजरिया

Guru Gobind Singh: गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती के बारे में 5 दिलचस्प जानकारी

डिजिटल डिटॉक्स: बच्चों की है परीक्षा, जरूरी है अब वर्चुअल दुनिया से वास्तविक जीवन की ओर

Winter Superfood: सर्दी का सुपरफूड: सरसों का साग और मक्के की रोटी, जानें 7 सेहत के फायदे