संकष्टी चतुर्थी की पूजा कैसे करें, जानिए सरल विधि, मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

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आज भाद्रपद मास की संकष्टी गणेश चतुर्थी है। चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी ही हैं। मान्यतानुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रतधारी श्री गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को जल अर्पित करके उनका दर्शन करते हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही गणेश चतुर्थी व्रत को पूर्ण माना जाता है।


आज संकष्टी चतुर्थी के साथ कजरी तीज और बहुला चौथ पर्व भी मनाया जा रहा है। भगवान श्री गणेश का पूजन दिन के समय करने का विधान है, इसलिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज ही रखा जाएगा। यह तिथि बुधवार को होने के कारण श्री गणेश का पूजन अधिक फलदायी हो गया है क्योंकि बुधवार का दिन श्री गणेश को समर्पित है तथा आज गणेश पूजन करके बुध ग्रह को मजबूत किया जा सकता है।
 
संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं और जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है। इसके बाद व्रतधारी पारण करके व्रत को पूर्ण करते है। इस दिन किए गए व्रत-उपवास और पूजा-पाठ से यश, वैभव, सुख-समृद्धि, धन, कीर्ति, ज्ञान और बुद्धि में अतुलनीय वृद्धि होती है। श्रीगणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं...।  जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि...
 
इस दिन क्या करें, पढ़ें विधि- 
 
श्री गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
 
इसके बाद घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा को गंगा जल और शहद से स्वच्छ करें।
 
सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, प्रसाद आदि चीजें एकत्रित करें।
 
धूप-दीप जलाएं। 
 
'ॐ गं गणपते नमः मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। मंत्र जाप 108 बार करें।
 
गणेश जी के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार, पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है।
 
 
गणपति की स्‍थापना के बाद इस तरह पूजन करें- 
 
- सबसे पहले घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्‍प लें।
 
- फिर गणेश जी का ध्‍यान करने के बाद उनका आह्वन करें।
 
- इसके बाद गणेश को स्‍नान कराएं। सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्‍नान कराएं।
 
- गणेश के मंत्र व चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करें।

 
- अब गणेश जी को वस्‍त्र चढ़ाएं। अगर वस्‍त्र नहीं हैं तो आप उन्‍हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।
 
- इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें।
 
- अब बप्‍पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं।
 
- अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें। हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्‍तेमाल करें।
 
- अब नैवेद्य चढ़ाएं। नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल हैं।

 
- इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें।
 
- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की शुभ चतुर्थी की कथा करें।
 
- अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें। गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है।
 
- इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्‍पांजलि अर्पित करें।
 
- अब गणपति की परिक्रमा करें। ध्‍यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है।
 
- इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें।

 
- पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।
 
पूजा के बाद घर के आसपास जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें। गाय को रोटी या हरी घास दें। किसी गौशाला में धन का दान भी कर सकते हैं।
 
रात को चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोलना चाहिए। 
 
भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य, समृद्धि और संतान सुख मिलता है। शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की एक बार और पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का फिर से पाठ करें। अब व्रत का पारण करें।

 
संकष्टी चतुर्थी के मुहूर्त 
 
संकष्टी चतुर्थी व्रत 25 अगस्त, बुधवार को। चतुर्थी तिथि का आरंभ शाम 4.18 मिनट से शुरू होगी तथा अगले दिन यानी गुरुवार, 26 अगस्त को शाम 5.13 मिनट पर चतुर्थी समाप्त होगी। अत: संकष्टी चतुर्थी व्रत पर श्री गणेश का पूजन विशेष आज ही किया जाएगा। आज चंद्रोदय रात्रि 8.47 पर होगा और चंद्रमा के अस्त का समय 26 अगस्त को प्रात: 08.24 मिनट पर है।

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