वसंत पंचमी : विद्यारंभ संस्कार क्या है? कब किया जाता है, क्यों है महत्व, जानिए खास बातें

प्रियंका अथर्व मिश्र
*विद्यारंभ संस्कार जन्म के पांचवे वर्ष उत्तरायण में किया जाता है।
 
*विद्यारंभ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हस्त, अश्विनी, पुष्य और अभिजीत, पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, रेवती, चित्रा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र को विद्यारंभ संस्कार के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है।
 
*ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि चन्द्र व तारा दोष होने पर विद्यारंभ नहीं करना चाहिए। तारा और चन्द्र दोष से मुक्त होने पर ही इस संस्कार की शुरूआत करनी चाहिए। 
 
*इस संस्कार के लिए वसंत पंचमी,सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को बहुत ही शुभ माना जाता है। माता पिता अपनी संतान का विद्यारंभ इन वारों में से किसी वार को कर सकते हैं।
 
*विद्यारंभ संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय वृष, मिथुन, सप्तम में हों एवं दशम भाव में शुभ ग्रह हों व अष्टम भाव खाली हों तो यह उत्तम होता है.
 
* इस संस्कार के लिए ज्योतिषशास्त्र कहता है कि द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, दशमी, एकादशी, द्वादशी तिथि अनुकूल होती है। आप इनमें से किसी भी तिथि को यह संस्कार कर सकते हैं।
 
*विद्यारंभ संस्कार में सबसे पहले गणेश जी, गुरु, देवी सरस्वती और पारिवारिक इष्ट की पूजा की जाती है।
 
*गुरु पूरब की ओर और शिष्य पश्चिम की ओर मुख करके बैठते हैं।

* गणेश पूजन की क्रिया विधि:
 
बालक/बालिका के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली देकर मंत्र के साथ गणपति जी के चित्र के सामने अर्पित कराएँ।
 
* गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम। आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। गणपतये नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
 
* सरस्वती पूजन की क्रिया विधि:
 
* बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली आदि देकर मंत्र बोलकर माँ सरस्वती के चित्र के आगे पूजा भाव से समर्पित कराएँ। 
 
*पावका न: सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसु:।
सरस्वत्यै नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
 
*संस्कार के अंत में गुरु को वस्त्र, मिठाई एवं दक्षिणा दी जाती है और गुरु बालक को आशीर्वाद देते हैं।
 
* सामग्री:
माध्यमों की पवित्रता गणेश और सरस्वती पूजन के उपरान्त शिक्षा के उपकरणों- दवात, कलम और पट्टी का पूजन किया जाता है। शिक्षा प्राप्ति के लिए यह तीनों ही प्रधान उपकरण हैं। इन्हें वेदमंत्रों से अभिमंत्रित किया जाता है, ताकि उनका प्रारम्भिक प्रभाव कल्याणकारी हो सके। विद्या प्राप्ति में सहायता मिल सके। 
 
*शिक्षा की तीन अधिष्ठात्री देवियाँ-उपासना विज्ञान की मान्यताओं के आधार पर कलम की अधिष्ठात्री देवी धृति, दवात की अधिष्ठात्री देवी पुष्टि और पट्टी की अधिष्ठात्री देवी तुष्टि मानी गई है। षोडश मातृकाओं में धृति, पुष्टि तथा तुष्टि तीन देवियाँ उन तीन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो विद्या प्राप्ति के लिए आधारभूत हैं।
 
* लेखनी पूजन:
विद्यारंभ करते हुए पहले कलम हाथ में लेनी पड़ती है। कलम की देवी धृति का भाव है अभिरुचि। पूजन सामग्री बालक के हाथ में दी जाए। पूजा की चौकी पर स्थापित कलम पर उसे मंत्र के साथ श्रद्धापूर्वक चढ़ाया जाए।
 
* पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दु: अन्तमर्हिमानमानञ्जधीर:।
एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम्, अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ता स्वाहा। 
 
* दवात पूजन:
कलम का उपयोग दवात के द्वारा होता है। स्याही या खड़िया के सहारे ही कलम कुछ लिख पाती है। इसलिए कलम के बाद दवात के पूजन का नम्बर आता है। दवात की अधिष्ठात्री देवी पुष्टि हैं। पुष्टि का भाव है-एकाग्रता। एकाग्रता से अध्ययन की प्रक्रिया गतिशील-अग्रगामिनी होती है। दवात के कंठ में कलावा बाँधा जाता है व रोली, धूप, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन किया जाता है। यह दवात की अधिष्ठात्री देवी पुष्टि का अभिवन्दन है। पूजा वेदी पर स्थापित दवात पर बालक के हाथ से मन्त्रोच्चार के साथ पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए। 
 
* देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीवर्योधसं, पतिमिन्द्रमवद्धर्यन्।
जगत्या छन्दसेन्द्रिय शूषमिन्द्रे, वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
 
*पट्टी पूजन:
 
उपकरणों में तीसरा पूजन पट्टी का है। इनकी अधिष्ठात्री तुष्टि है। तुष्टि का भाव है-श्रमशीलता।
बालक द्वारा मंत्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री अर्पित  कराई जाए। 
 
*सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पतनी सुकृतं बिभर्ति।
अपारसेन वरुणो न साम्नेन्द्र, श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥
*गुरु पूजन:
शिक्षा प्राप्ति के लिए अध्यापक के सान्निध्य में जाना पड़ता है। इस प्रक्रिया में परस्पर श्रद्धा-सद्भावना का होना आवश्यक है। माता-पिता की तरह गुरु का भी स्थान है। माता को ब्रह्मा, पिता को विष्णु और गुरु को महेश कहा गया है। वह तीनों ही देवताओं की तरह श्रद्धा, सम्मान के पात्र हैं। अतएव विद्यारम्भ संस्कार में गुरु पूजन को एक अंग माना गया है। कलम, दवात, पट्टी का पूजन करने के उपरान्त शिक्षा आरम्भ करने वाले गुरु को पुष्प, माला, कलावा, तिलक, आरती, फल आदि की अंजलि अर्पित करते हुए पूजन कर नमस्कार करना चहिए। मंत्र के साथ बालक द्वारा गुरु के अभाव में उनके प्रतीक का पूजन कराया जाए। गुरु तत्व की कृपा बालक पर बनी रहे।
 
*बृहस्पते अति यदयोर्ऽ, अहार्द्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु,
यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिबृर्हस्पतये त्वा॥
श्री गुरवे नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
 
*अक्षर लेखन एवं पूजन:
 
इसके पश्चात् पट्टी पर बालक के हाथ से  भूभुर्व: स्व: शब्द लिखाया जाए। परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ नाम है, भू: भुव: स्व: के यों अनेक प्रयोजनों के लिए अनेक अर्थ हैं, पर विद्यारम्भ संस्कार में उनके गुण बोधक अर्थ ही व्याख्या योग्य हैं. यही पंचाक्षरी प्रशिक्षण शिक्षा के उद्देश्य का सार है।
 
*अक्षर लेखन करा लेने के बाद उन पर अक्षत, पुष्प छुड़वावें।
 
*नम: शम्भवाय च मयोभवाय च, नम: शंकराय च मयस्कराय च, नम: शिवाय च शिवतराय च।
 
*इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मंत्र की आहुति तक का क्रम चले। बालक को भी उसमें सम्मिलित रखें।
 
*विशेष आहुति:
हवन सामग्री में कुछ मिष्टान्न मिलाकर पाँच आहुतियाँ निम्न मंत्र से कराएँ।
 
सरस्वती मनसा पेशलं, वसु नासत्याभ्यां वयति दशर्तं वपु:।
रसं परिस्रुता न रोहितं, नग्नहुधीर्रस्तसरं न वेम स्वाहा। इदं सरस्वत्यै इदं न मम।
 
विशेष आहुति के बाद यज्ञ के शेष कर्म पूरे करके आशीर्वचन, विसर्जन एवं जयघोष के बाद प्रसाद वितरण करके समापन किया जाए।
 
माता का स्नेह जिस प्रकार पुत्र के लिए आजीवन आवश्यक है, उसी प्रकार विद्या का, सरस्वती का अनुग्रह भी मनुष्य पर आजीवन रहना चाहिए।
संकलित

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Oldest religion in the world: दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौनसा है?

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Mahabharat : महाभारत में जिन योद्धाओं ने नहीं लड़ा था कुरुक्षेत्र का युद्ध, वे अब लड़ेंगे चौथा महायुद्ध

Daan punya: यदि आप भी इस तरह से दान करते हैं तो कंगाल हो जाएंगे

Lakshmi prapti ke upay: माता लक्ष्मी को करना है प्रसन्न तो घर को इस तरह सजाकर रखें

19 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Vaishakha Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा के दिन करें ये 5 अचूक उपाय, धन की होगी वर्षा

Shani sade sati: कब और किस समय शुरू होगी इन 3 राशियों पर शनि की साढ़े साती?

Lakshmi prapti ke upay: माता लक्ष्मी को करना है प्रसन्न तो घर को इस तरह सजाकर रखें

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

अगला लेख