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चक्र क्या है, जानें कैसे बढ़ाएं अपनी एनर्जी?

डॉ. अनिता कपूर
गुरुवार, 12 जून 2025 (12:50 IST)
योग और ध्यान: ग्रहों के अनुसार ध्यान विधियां भी निर्देशित की जाती हैं (जैसे शनि के लिए गहन मौन ध्यान या हनुमान उपासना)। भारतीय ज्ञान परंपरा में अध्यात्म और ज्योतिष एक ही जीवन-दर्शन की दो दिशाएं हैं। ज्योतिष समय और प्रकृति की संरचना को समझाता है, और अध्यात्म उस संरचना से परे जाने का मार्ग दिखाता है। जब दोनों का समन्वय होता है, तो व्यक्ति जीवन में संतुलन, दिशा और अंततः आत्म-ज्ञान प्राप्त कर सकता है।ALSO READ: भारतीय परंपरा में ध्यान के 10 विभिन्न स्वरूपों को जानें
 
भारतीय ज्ञान परंपरा में चक्र (Chakra) और ऊर्जा उपचार (Energy Healing) का गहरा संबंध है। यह परंपरा योग, तंत्र, आयुर्वेद और आध्यात्मिक साधना की एक समृद्ध धारा से जुड़ी हुई है। चक्रों को शरीर के ऊर्जा केंद्र माना जाता है, और ऊर्जा उपचार का उद्देश्य इन चक्रों को संतुलित कर शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य लाना होता है।
 
1. चक्र क्या हैं: 'चक्र' का अर्थ है 'पहिया' या 'घूर्णन'। ये सूक्ष्म शरीर (subtle body) में स्थित ऊर्जा केंद्र हैं, जो प्राण (life force energy) के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। 
 
योग शास्त्रों में मुख्यतः सात चक्रों का उल्लेख है:
 
क्रम चक्र का नाम  स्थान  तत्व  गुण/कार्य
1 मूलाधार: रीढ़ की हड्डी के आधार पर- पृथ्वी: अस्तित्व, सुरक्षा, स्थिरता
2 स्वाधिष्ठान: नाभि के नीचे- जल: रचनात्मकता, यौन ऊर्जा, भावनाएं
3 मणिपूरक: नाभि क्षेत्र- अग्नि: आत्मबल, इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास
4 अनाहत: हृदय क्षेत्र- वायु : प्रेम, करुणा, संतुलन
5 विशुद्ध : गला- आकाश: अभिव्यक्ति, संप्रेषण, सत्य
6 आज्ञा: भौंहों के बीच- मन: अंतर्ज्ञान, विवेक, दृष्टि
7 सहस्रार: सिर के शीर्ष पर- चेतना: ब्रह्मज्ञान, आध्यात्मिकता, एकत्व
 
भारतीय परंपरा में चक्रा एनर्जी हीलिंग के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता है: प्राणायाम: सांस द्वारा प्राण का नियंत्रण। यह चक्रों को शुद्ध करता है और ऊर्जा संतुलन में सहायक है।
 
मंत्र: हर चक्र के लिए विशिष्ट बीज मंत्र होते हैं (जैसे मूलाधार के लिए 'लं', अनाहत के लिए 'यं')। इन्हें जपने से उस चक्र की शक्ति जागृत होती है।
 
ध्यान : विशेष रूप से चक्र ध्यान में साधक एक-एक चक्र पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे ऊर्जा प्रवाह सुधरता है। 
 
योगासन: जैसे ताड़ासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन आदि विशिष्ट चक्रों को सक्रिय करते हैं।
 
रुद्राक्ष: कुछ विशिष्ट रुद्राक्ष माला भी चक्र संतुलन में सहायक मानी जाती हैं।
 
रंग चिकित्सा : हर चक्र का एक विशिष्ट रंग होता है (जैसे मूलाधार = लाल, अनाहत = हरा)। इन रंगों का ध्यान या वस्त्रों के प्रयोग से संतुलन लाया जाता है।
 
ग्रहों के अनुसार रत्न या मंत्र: अध्यात्मिक उपाय ज्योतिषीय विश्लेषण से चुने जाते हैं। 
 
क्रिस्टल हीलिंग (भारतीय संदर्भ में रत्न): जैसे सूर्य के लिए माणिक, चंद्र के लिए मोती, ये भी ऊर्जा को प्रभावित करते हैं। चक्र असंतुलन के संकेत होता है जब कोई चक्र अवरुद्ध या असंतुलित हो जाता है, तो शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक समस्याएं हो सकती हैं।ALSO READ: ज्ञान की ज्योति: भारतीय अध्यात्म और परंपरा का संगम, पढ़ें रोचक जानकारी
 
उदाहरण:
* मूलाधार चक्र असंतुलन- असुरक्षा, डर, जीवन में स्थायित्व की कमी।
 
* मणिपूरक चक्र असंतुलन- आत्मविश्वास की कमी, क्रोध, पाचन समस्या।
 
* अनाहत चक्र असंतुलन- संबंधों में समस्या, प्रेम की कमी, दिल से संबंधित रोग।
 
* भारतीय ज्ञान परंपरा में चक्र और ऊर्जा हीलिंग न केवल आध्यात्मिक विकास का माध्यम हैं, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
 
* चक्रों की साधना से जीवन में संतुलन, स्थायित्व, ऊर्जा और आनंद की अनुभूति होती है।ALSO READ: भारतीय परंपरा में ज्योतिष का स्थान, महत्व, उपयोग और क्या है वेदों से संबंध

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