कोविड-19 की टेस्टिंग को लेकर भारत में क्या है स्थिति?

Webdunia
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020 (08:20 IST)
अपर्णा अल्लूरी एवं क्रुतिका पाथीबीबीसी न्यूज़
पिछले दिनों जब भारत की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि कोविड-19 के सभी टेस्ट मुफ़्त किए जाएं तो निजी डायग्नॉस्टिक लैब थायरोकेयर ने इसका टेस्ट शुरू किया। थायरोकेयर के संस्थापक अरोकियास्वामी वेलुमनी ने बताया, "हमें लगा कि आदेश में कहा गया कि अमीर अपने पैसों का भुगतान करेंगे और ग़रीबों के टेस्ट का पैसा सरकार देगी।"

भारत में कोविड-19 टेस्ट की क़ीमत 4,500 रुपये है यानी यह कोई सस्ता टेस्ट नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह स्पष्ट नहीं था कि निजी लैब के मुफ्ट टेस्ट के पैसों का भुगतान किस तरह से होगा। स्थिति स्पष्ट नहीं होने के चलते थायरोकेयर सहित कई निजी लैब ने कोविड-19 का टेस्ट करना रोक दिया।
 
इससे चिंतित केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत ने अपने फ़ैसले पर विचार करने को कहा और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल को जारी अपने नए आदेश में कहा कि निजी लैबों में प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत के अधीन आने वाले 50 करोड़ लोगों के टेस्ट का पैसा सरकार की ओर से दिया जाएगा, बाक़ी लोगों को अपने टेस्ट का भुगतान खुद करना होगा।

लेकिन इससे एक बड़ा सवाल यह उत्पन्न हो रहा है कि अगर कोविड-19 का टेस्ट मुफ़्त नहीं है तो क्या भारत टेस्ट करने की दर बढ़ाने में सक्षम है?
 
महंगा है टेस्ट
भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 17,656 है जबकि अब तक कोरोना से 559 लोगों की मौत हुई है। 1।3 अरब की आबादी वाले देश में आंकड़ा अपेक्षाकृत कम लगता है। कई लोग मानते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में टेस्ट बहुत कम हो रहे हैं। रविवार तक भारत में कुल 3,86,791 लोगों का टेस्ट हो पाया है।

वैसे भारत में कोविड-19 टेस्ट की दर बढ़ाना भी बड़ी चुनौती है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने अब तक एकमात्र भारतीय टेस्ट किट को मंजूरी दी है और दुनिया भर में मांग बढ़ने के चलते इसका आयात करने में भी मुश्किलें हो रही हैं। इसके अलावा टेस्ट करने के लिए प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ़ और उनके लिए प्रोटेक्टिव गियर की कमी है। भारत की बड़ी आबादी को देखते हुए इसके हर कोने तक सभी संसाधनों का पहुंच पाना चुनौतीपूर्ण लग रहा है।

इन्हीं वजहों से कोविड-19 का टेस्ट भारत में महंगा है। हालांकि अभी तक यह सरकारी अस्पताल और लैब में मुफ़्त हो रहा है, कई महीनों तक केवल सरकारी लैबों को ही कोरोना वायरस का टेस्ट करने की इजाज़त थी। लेकिन बाद में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति को देखते हुए कोविड-19 टेस्ट के लिए निजी लैबों को भी मंजूरी मिली।
 
सरकार ने कोविड-19 टेस्ट की क़ीमत 4500 रुपये रखी है। यह रकम तब देनी है जब आपके घर से सैंपल लिया जाएगा और अगर आप अस्पताल में सैंपल देते हैं तो इसकी क़ीमत 3500 रुपये है। इसका फ़ैसला एक्सपर्ट कमेटी की अनुशंसाओं पर किया गया जिस कमेटी में प्राइवेट हेल्थ फर्म्स के प्रमुख भी शामिल थे।
 
हेल्थ सेक्टर पर नजर रखने वाली ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्कक की मालिनी आइसोला को मुताबिक टेस्ट की मनामानी क़ीमत रखी गई है। एक वायरोलॉजिस्ट ने बीबीसी को बताया कि आकलन करने पर इस टेस्ट की क़ीमत 700 रुपये के आसपास बैठ रही है।

मालिनी के मुताबिक अगर टेस्ट की क़ीमत निर्धारित करने में अगर प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल किया गया है तो सरकार को इस क़ीमत का ब्रेकडाउन भी बताना चाहिए।

वहीं निजी लैब मालिकों के मुताबिक क़ीमत ज़्यादा नहीं है। कोर डॉयग्नास्टिक्स की संस्थापक और सीईओ जोया बरार कहती हैं, "सप्लाई चेन बंद है, हर कोई एडवांस भुगतान पर काम कर रहा है।"

जोया के मुताबिक एचआईवी और इंफ्लूएंजा में इस्तेमाल होने वाले बेसिक आरटी-पीसीआर टेस्ट किट की क़ीमत 1200 रुपये है। कोविड-19 की टेस्ट के लिए इस किट में एक दूसरा किट भी शामिल किया जाता है जो सैंपल से जेनेटिक कोड डीएनए और आरएनए का पता लगाता है।

जोया ने कहा, "इसकी सप्लाई में कमी है, हमें यह दूसरी किट 1000 रुपये के आस पास बैठती है तब हमें लगता है कि किस्मत अच्छी है।"
 
इसके अलावा मेडिकल स्टॉफ़ के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट (पीपीई), स्टाफ़ का वेतन और लैब चलाने का खर्चा भी निजी लैब मालिकों को उठाना पड़ रहा है।

थायरोकेयर के डॉ. वेलुमनी ने बताया कि वे अपने स्टाफ़ को आम दिनों की तुलना में ज़्यादा वेतन दे रहे हैं क्योंकि उन कर्मचारियों पर परिवार की ओर से संक्रमण की आशंका के चलते काम बंद करने का दबाव है।
मुफ़्त टेस्ट की स्थिति
 
मौजूदा समय में, भारत में डॉक्टरों की सलाह के बाद ही संक्रमण का टेस्ट हो रहा है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में भीड़ और निजी लैबों में टेस्ट की महंगी क़ीमत को देखते हुए आशंका यही है कि कोरोना के लक्षण वाले लोग भी इसका टेस्ट समय से नहीं करा पाएंगे।
 
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने कहा, "अगर आप किसी महामारी पर अंकुश लगाना चाहते हैं तो फिर उसके टेस्ट का पैसा नहीं लेना चाहिए।"
 
कुछ अर्थशास्त्रियों के मुताबिक ग़रीब लोगों के लिए इसकी मुफ़्त व्यवस्था से भी स्थिति में कोई मदद नहीं मिलेगी।
एक अन्य अर्थशास्त्री विवेक देहेजिया ने कहा, "एक बहुत बड़ी आबादी, ग़रीबी रेखा से ठीक ऊपर रहती है।

मिडिल क्लास के कर्मचारियों के लिए भी टेस्ट मुफ़्त नहीं है। ये सब लोग अपने पूरे परिवार के टेस्ट का ख़र्च नहीं उठा सकते।"

लेकिन सबसे अहम बात यह है कि भारत में अब तक कई ऐसे लोग भी संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें कोरोना से पीड़ित होने का कोई लक्षण नहीं दिखा था। ऐसी स्थिति में मास टेस्टिंग के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी सरकार के सामने नहीं है।

विवेक देहेजिया ने कहा, "अगर आप भारत में टेस्ट की दर बढ़ाना चाहते हैं तो ये उम्मीद नहीं करना चाहिए कि हर कोई इसका ख़र्च उठाएगा। ख़ासकर जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं है वह अपना और अपने परिवार के लिए ये ख़र्च नहीं ही उठाएगा।"

सिंगापुर और दक्षिण कोरिया की प्रशंसा इसलिए हो रही है कि इन दोनों देशों ने आक्रामकता के साथ लोगों के टेस्ट किए और इस टेस्ट का ख़र्च वहां की सरकारों ने उठाया है। भारत की तुलना वियतनाम से हो सकती है। वियतनाम में भी संक्रमित लोगों के आइसोलेशन पर ज़ोर दिया जा रहा है लेकिन लोगों के टेस्ट का ख़र्च सरकार ही उठा रही है।

प्रोफेसर जयति घोष ने कहा, "जब आपको पता होगा कि कौन लोग संक्रमित हैं तभी आप संक्रमण पर अंकुश लगा पाएंगे। इसलिए इसका टेस्ट सबके लिए उपलब्ध होना चाहिए।"

भुगतान कौन करेगा?
बीबीसी ने जिन अर्थशास्त्रियों से बात की है, उन सबने कोविड-19 टेस्ट के भुगतान के लिए कई सुझाव दिए हैं। इसमें कर्मचारियों के नियोक्ता से लेकर बीमा कंपनियों की ओर से ख़र्च उठाने का सुझाव शामिल है, लेकिन हर कोई इस बात पर सहमत दिखा कि सरकार को और ज़्यादा करने की ज़रूरत है।

हालांकि सरकार की ओर देश के एक बड़े तबके के टेस्ट का ख़र्च उठाया जा रहा है लेकिन देहेजिया कहता है कि सरकार को मुफ़्त टेस्ट को बढ़ावा देना चाहिए।

देहेजिया ने कहा, "इंटरनेशनल पब्लिक हेल्थ इमर्जेंसी के वक्त आप प्राइवेट चैरिटी करने वालों पर भरोसा नहीं कर सकते।"

वैसे भारत के हेल्थ सेक्टर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इस क्षेत्र में सरकार बहुत ज्यादा पैसा ख़र्च भी नहीं करती। मोटे तौर पर भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुल जीडीपी का 1।3 प्रतिशत पैसा आवंटित होता है।

यह क्षेत्र काफ़ी हद तक नियम प्रावधनों के अधीन नहीं है। मसलन देश में स्वास्थ्य बीमा करना अनिवार्य नहीं है। जो स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध भी हैं वो आधे अधूरे हैं, इन बीमाओं में अस्पताल में भर्ती होने पर ख़र्च कवर किया जाता है लेकिन जांच और दवाईयों का ख़र्च कवर नहीं होता है।

अब इस प्रक्रिया में निजी अस्पताल भी शामिल हैं तो सरकार के लिए कोविड-19 टेस्ट प्रक्रिया पर नियंत्रण रखना भी मुश्किल होता जाएगा। एक प्रमुख हॉस्पीटल चेन ने अस्पताल में दाख़िले के समय में कोविड-19 टेस्ट की जांच को अनिवार्य कर दिया है। हालांकि यह मौजूदा गाइडलाइंस के उलट है जिसमें केवल लक्षण होने या किसी कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आने पर ही टेस्ट कराने की अनुशंसा की गई है।

वैसे यह सही है कि जब ज़्यादा घरेलू टेस्टिंग किट को मंजूरी मिलेगी और मांग से ज़्यादा आपूर्ति होने लगेगी तो टेस्ट सस्ता होगा। कुछ राज्यों में स्टैंडर्ड सैंपल क्लेक्शन प्वाइंट बनाए जा रहे हैं, यानी मोबाइल सेंटर और कियोस्क का इस्तेमाल हो रहा है ताकि पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट्स (पीपीई) सूट और आने जाने का ख़र्च कम हो।

भारत पूल टेस्टिंग पर भी विचार कर रहा है जिसमें समूह में लोगों के सैंपल लिए जाएंगे और उनका टेस्ट एक बार में किया जाएगा। अगर टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव रही तो पता चल जाएगा कि कोई संक्रमित नहीं है। अगर टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव निकली तो सैंपल में शामिल सभी लोगों का टेस्ट अलग अलग होगा।

डॉ. जोया बरार ने बताया, "यह क़ीमत कम करने का अच्छा तरीका है लेकिन तभी तक जब तक इसे प्रभावी और उचित तरीके से किया जाएगा।" जोया के मुताबिक इससे पहले टेस्ट की क़ीमतों को निर्धारित किया जाना चाहिए। जोया ने कहा, "अगर आप रॉ मैटेरियल्स की क़ीमत निर्धारित कर दें तो उत्पाद की क़ीमत भी निर्धारित हो जाती है।"
 

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