तलत महमूद ने तपन कुमार नाम से भी कई गीत गाए

Webdunia
शुक्रवार, 8 मई 2020 (14:29 IST)
तलत महमूद के शालीन व्यक्तित्व की एक पंक्ति में परिभाषा करते हुए शिरीष कणेकर ने लिखा है कि यह नेक
इंसान सुगंधित धूप (अगरबत्ती) की तरह बुझ गया। भगवान ने आदमी को दिल दिया और इस दिन को रूलाने-तड़पाने के लिए तलत महमूद नामक मुलायम हथियार को जमीन पर भेज दिया। 
 
दर्द तलत के गीतों की आत्मा है। परम सुख और दिली खुशियों से तलत महमूद का दूर तक रिश्ता नहीं है। अपार दु:ख और व्यथा उनके गीतों का स्थायी भाव है। 'रो-रो बीता जीवन सारा' अथवा 'मितवा नहीं आए' गाने के लिए केवल एक ही आवाज होती है- तलत। 'दो-चार कदम जब मंजिल थी, किस्मत ने ठोकर खाई है' और 'शामे गम की कसम' की आर्त स्वर लहरियां तलत के गले से अपने आप झरने लगती हैं। 
 
कुंदनलाल सहगल की तरह गायक-अभिनेता बनने की चाह तलत को हमेशा रही। शक्ल सूरत भी मालिक ने उन्हें दी। पर सफल अभिनेता वे कभी बन नहीं सके। दिले नादान, वारिस, डाक बाबू, एक गांव की कहानी, सोने की चिड़िया आदि उनकी भूमिकाओं वाली फिल्में बुरी तरह से पिटीं। 
 
शायद वे सफल गायक के साथ-साथ सफल संगीतकार बन सकते थे। किंतु उस रास्ते को उन्होंने पता नहीं क्यों नहीं अपनाया। उनकी कई गजलों की धुनें स्वयं उन्होंने बनाई। तुमने ये क्या सितम किया और गमे आशिकी से कह दो इन लाजवाब धुनों को उन्होंने मिनटों में ही तैयार किया था। 
 
तलत के तमाम गीतों को सुनने के बाद निचोड़ यह होता है कि फूल से भी घायल होने वाला मुलायम और आशिक दिल उनका है। बोलचाल, रहन-सहन और स्वभाव से भी तलत साहब वैसे ही हैं। ताज्जुब तो यह है कि उनके वालिद की आवाज बुलंद थी पर गाने बजाने से उन्हें नफरत थी। इधर तलत की आवाज इतनी मध्यम कि एक ही सोफे पर बैठने के बाद भी आसानी से आप उन्हें सुन नहीं सकते, सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। 
 
कुंदनलाल सहगल बचपन से ही इस गायक के आराध्य थे। उनके घर में तो गाने बजाने पर बंदिश थी पर बुआ के यहां अक्सर महफिलें होती थीं। बुआ के आग्रह से तलत के पिता ने उन्हें लखनऊ के मॉरिस म्युजिक कॉलेज में दाखिला कराया। संगीत विषय लेकर उन्होंने बीए किया। कॉलेज में वे दाग, गालिब, मीर, इकबाल की गजलें गाते थे। 
 
उन्हीं दिनों कलकत्ता में न्यू थिएटर की शोहरत बढ़ रही थी। एचएमवी ग्रामोफोन कंपनी को कुछ नए गायकों की जरूरत थी। जूथिका राय, जगमोहन, हेमंतकुमार ये सभी गायक बंगाली थे और उर्दू गज़लों की अदायगी उनसे ठीक से नहीं हो पाती थी। 
 
एचएमवी को किसी ने तलत के नाम की सिफारिश की। उनकी पहली दो रिकॉर्डें गजलों की नहीं, गीतों की थी- तुम लोक-लाज से हरती थी और सब दिन एक समान नहीं। उन्हीं दिनों तलत की पहचान एक और धुरंधर गायक पंकज मलिक से हुई। 
 
1944 में ‍िशक्षा पूरी कर तलत कलकत्ता आ गए। उनके दोस्त एहसान मेरठी एक दिन उन्हें न्यू थिएटर ले गए जहां सेट पर कुंदलाल सहगल मौजूद थे, तलत के अपने हीरो। ए कातिबे तकदीर मुझे इतना बता दे, क्या मेरी खता है, क्या मैंने किया है, इस गाने की शूटिंग चल रही थी।
 
मध्यांतर में तलत की मुलाकात सहगल से हुई। इसी साल कमलदास गुप्ता के निर्देशन में उन्होंने 'तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी' गाया। वे कहते भी थे कि कमल ने मेरी जिंदगी बनाई। यह गीत तलत की जिंदगी में मील का पत्थर साबित हुआ। तपन कुमार नाम से तलत ने सौ-डेढ़ सौ बंगाली गीत भी गाए और वे भी बेहद सफाई से। 
 
1949 में न्यू थिएटर बंद हो गया। सहगल, पृथ्‍वीराज, हीरालाल आदि कलाकारों की तरह तलत भी कलकत्ता छोड़ कर मुंबई आ गए और संगीतकार अनिल विश्वास ‍से मिले। तब तक तलत की ख्याति बंबई पहुंच चुकी थी। अनिल विश्वास ने आरजू फिल्म का गीत 'ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई न हो' उनसे गवाया। इसके बाद विनोद, गुलाम हैदर और फिर नौशाद ने भी तलत की आवाज का उपयोग किया। 
 
तलत बंबई में ठीक-ठाक जमने लगे थे कि इरादतन अफवाह फैला दी गई कि गाते समय तलत नर्वस हो जाते हैं। तलत का कहना था कि उनकी आवाज में एक तरह की 'लरजीश'  है जो उनकी अपनी विशेषता है। पर उसे 'नर्वसनेस' कहा गया। 
 
उनके व्यवसाय पर उस अफवाह का विपरीत परिणाम हुआ। उनके अनुबंध रद्द कर दिए गए। वे घबरा उठे थे। एक दिन आराम फिल्म में अनिल विश्वास के लिए कारदार स्टूडियो में तलत की रिकॉर्डिंग थी। गाते हुए लरजिश नहीं आए यह सावधानी रखकर वे गा रहे थे। दो-तीन बार रिहर्सल हुई। पर अनिल दा संतुष्ट नहीं हुए। 
आखिरकार तलत से उन्होंने तलाश किया- क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है? बेहतर है आज रिकॉर्डिंग ही नहीं करें। तलत ने अनिल विश्वास से अनुरोध किया कि रिकॉर्डिंग रद्द नहीं करें और बताएं कि मुझसे क्या गलती हो रही है। अनिल दा ने पूछा तलत आज तुम्हारी आवाज की वह परिचित कम्पन (लरजिश) कहां गायब हो गई है?
 
लोग कहते हैं कि वह मेरे नर्वसनेस का परिणाम है। भले आदमी वही तो तुम्हारे गले की खासियत है और मुझे वही लरजीश चाहिए। यह सुनकर तलत का आत्मविश्वास लौट आया था। आरजू की सफलता के बाद तलत के पार्श्वगायन की धूम मच गई। 
 
आराम, बाबूल, कामिनी, तराना, दो राहा, शबिस्तान, परछाई, पगले, दाग, कमल के फूल, राखी, रागरंगा, अदा, वफा, बेवफा, भाई-बहन, हमारी शान, संगदिल, अंबर, कवि, दायरा आदि फिल्मों में तलत का पार्श्वगायन था। इन्हीं दिनों तलत ने गैर फिल्मी गीत भी खूब गाए। पार्श्वगायन में जब उनका नाम चल निकला तभी अभिनेता बनने के उन्होंने असफल प्रयोग किए। 
 
तलत और मुकेश के करियर में गजब का साम्य है। दोनों ही एक ही वर्ष पैदा हुए थे। दोनों की पहली रिकॉर्ड एक ही वर्ष बनी। फिल्मों में पहला गीत दोनों ने अनिल विश्वास के निर्देशन में ही गाया। दोनों ही दर्दभरे गीत गाने में विशेषज्ञ और तलत की तरह मुकेश ने भी फिल्मों में अभिनय करने का असफल प्रयोग किया था। अनिल विश्वास के बाद तलत की आवाज की प्रतिभा का उपयोग मदन मोहऩ, एसडी बर्मन, सी रामचंद्र और शंकर-जयकिशन ने खूब किया। 
- सुरेश गावड़े 
(पुस्तक सरगम का सफर से साभार) 

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