Housefull 5 Review: करोड़ों फूंक कर बनाया गया 3 घंटे का मानसिक अत्याचार

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 6 जून 2025 (12:37 IST)
इतनी घटिया कहानी पर साजिद नाडियाडवाला ही करोड़ों रुपये फूंकने की हिम्मत कर सकते थे क्योंकि उन्होंने ही इसे लिखा है। 'हाउसफुल 5' देखकर समझ आता है कि कैसे पैसों के दम पर कोई भी स्क्रिप्ट पर्दे पर आ सकती है। कॉमेडी के नाम पर दर्शकों को मानसिक टॉर्चर परोसा गया है 
 
बॉलीवुड के बड़े नामों को इस कबाड़ स्क्रिप्ट में शामिल करना इस बात का सबूत है कि पैसा सच में सब कुछ करा सकता है। कई चेहरे जो दशकों से दर्शकों की यादों से मिट चुके थे, इस फिल्म में मुफ्त में ही कूद पड़े होंगे, बस इस उम्मीद में कि स्क्रीन पर दिख जाएं।
तरुण मनसुखान ने हाउसफुल 5 को निर्देशित करने की जिम्मेदारी उठाई है। 2008 में उन्होंने ‘दोस्ताना’ बनाई थी जिसे जरूरत से ज्यादा बेहतर ‍फिल्म बताया गया था। इसके 11 साल बाद उन्होंने ड्राइव नामक फिल्म बनाई जिसे थिएटर में करण जौहर जैसे निर्माता भी ‍रिलीज नहीं कर पाए और सीधे ओटीटी पर दिखाना पड़ा। 
 
पता नहीं इतने खराब रिकॉर्ड देखने वाले निर्देशक में साजिद नाडियाडवाला ने क्या देखा जो हाउसफुल 5 की कमान सौंप दी। तरुण ने पता नहीं ‍किस दर्शक वर्ग को ध्यान में रख कर यह फिल्म बनाई है। बच्चा-युवा-वृद्ध किसी के देखने लायक फिल्म नहीं है। न सिंगल स्क्रीन का आम दर्शक न मल्टीप्लेक्स का क्लास दर्शक इस मूवी को पसंद करेगा।
 
एक क्रूज पर अरबपति रंजीत (रंजीत) की मौत होती है और अपनी दौलत का वारिस वह अपने बेटे जॉली को घोषित कर जाता है, जिसे किसी ने देखा नहीं। अमर अकबर एंथनी की तरह तीन वारिस आ जाते हैं। जलभूषण उर्फ जॉली (अभिषेक बच्चन), जलाबुद्दीन उर्फ जॉली (रितेश देशमुख) और जुलियस उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) अपने आपको सही जॉली बताते हैं। रंजीत का भोंदू किस्म का स्टाफ असली जॉली का पता लगाने के बारे में में सोचता ही रहता है और उसके पहले ही एक मर्डर हो जाता है। 
 
हत्यारे का पता लगाने के ‍लिए दो मसखरे पुलिस ऑफिसर भिड़ू (संजय दत्त) और बाबा (जैकी श्रॉफ) आते हैं। तीन जॉली और दर्जन भर किरदारों में से उन्हें कातिल को ढूंढ निकालना है, लेकिन बात जब उनके बूते से बाहर हो जाती है तो दगडू (नाना पाटेकर) की एंट्री होती है। 
 
इस उठा पटक को बहुत ही घटिया तरीके से ‍लिखा और दिखाया गया है। कॉमेडी सीन से पंच और हास्य गायब है। सीन बहुत लंबे, उबाऊ और बचकाने हैं। फिल्म की शुरुआत में तीन जॉली का आना और अपने आपको सही वारिस बताने वाला सीक्वेंस ही इस बात की झलक दे देता है कि आपके पौने तीन घंटे अब पूरी तरह से बरबाद होने वाले हैं। जैकी श्रॉफ और संजय दत्त के दृश्य भी दर्शकों की कड़ी परीक्षा लेते हैं और दर्शकों की इच्छा सिनेमाघर से भाग जाने की होती है। 
 
तीनों हीरोइनों को ग्लैमरस दिख कर बेवकूफाना हरकतें करनी थी और ये काम भी उनसे नहीं हुआ। बटुक पटेल, आखरी पास्ता, माया, लूसी, कैप्टन समीर, शिराज, बेदी जैसे किरदार भी फिल्म का भला नहीं कर पाए और किसी को भी ठीक से लिखा नहीं गया है। 
 
कॉमेडी में मर्डर मिस्ट्री का तड़का लगाया गया है, जिससे स्वाद बेस्वाद हो गया है। मर्डर मिस्ट्री को कॉमिक तरीके से सुलझाने की कोशिश की गई है, लेकिन हास्य के बजाय फूहड़ तरीके से इसे सुलझाया गया है। 
 
बतौर स्क्रिप्ट राइटर साजिद एक भी ऐसा सीन नहीं लिख पाए जो मुस्कान ला पाए। कलाकारों की भीड़ इकट्ठा कर पैसा फूंकने को ही उन्होंने फिल्म मान लिया है। फिल्म के सारे कैरेक्टर्स मूखतापूर्ण हरकतें करते रहते हैं और दर्शक बाल नोंचते रहते हैं कि वे कहां आ फंसे। 
 
डायलॉग लिखने का काम फरहाद सामजी ने किया है और द्विअर्थी और घटिया संवाद लिख कर उन्होंने हंसाने की कोशिश की है। भला ‘गालिब के थूके हुए पान’ पर कैसे कोई ठहाका मार सकता है। 
 
कॉमेडी फिल्म बनाना बहुत मुश्किल काम होता है और निर्देशक तरुण मनसुखानी ने बहुत बड़े जूते में पैर डाल दिया और औंधे मुंह गिरे हैं। फिल्म पर उनका कोई नियंत्रण नजर नहीं आता और बिना ड्राइवर के चल रही गाड़ी की तरह फिल्म इधर-उधर होती रहती है। न वे कलाकारों से ठीक से काम ले पाए हैं।
 
अक्षय कुमार हाउसफुल सीरिज की रीढ़ की हड्डी हैं, लेकिन कमजोर लेखन और निर्देशन ने उन्हें यहां कुछ करने का मौका नहीं दिया है। वे असहाय नजर आए। रितेश देशमुख अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन्हें दमदार सीन ही नहीं मिले। अभिषेक बच्चन अपनी एक्टिंग से  बहुत निराश करते हैं। नाना पाटेकर ने क्यों इस रोल के लिए हां की, ये बात वे भी सोच रहे होंगे। 
 
जैकलीन फर्नांडिस, सोनम बाजवा, नरगिस फाखरी, चित्रांगदा सिंह में इस बात की होड़ रही कि सबसे घटिया एक्टिंग कौन करता है। जैकी श्रॉफ लुक और एक्टिंग के मामले में बहुत बुरे रहे। संजय दत्त बेहतर रहे। चंकी पांडे, जॉनी लीवर, फरदीन खान, श्रेयस तलपदे, डियो मोरिया, रंजीत, निकतिन धीर भीड़ का हिस्सा लगे। पिछली हाउसफुल फिल्मों में सपोर्टिंग कास्ट को भी दमदार रोल मिलते थे, लेकिन यहां वे महज शो पीस की तरह दिखाई दिए। 
 
फिल्म के गाने न दृश्य से मेल खाते हैं, न मूड से। ना सुनने लायक हैं, ना देखने लायक। म्यूजिक का हाल ऐसा है जैसे किसी ने जबरदस्ती प्ले-लिस्ट डाल दी हो।
फिल्म को दो एंडिंग्स के साथ रिलीज किया गया है, ताकि दर्शक दो बार टिकट खरीदें। लेकिन एक बार झेलना ही कठिन है, दोबारा कोई क्यों देखेगा?
 
एक तरफ कुछ फिल्ममेकर, राइटर्स, कलाकार कुछ नया, अनोखा, मनोरंजक देने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं तो दूसरी ओर कुछ करोड़ों रुपये फूंक कर सिनेमा के नाम पर कचरा बना रहे हैं। इनसे तो इंस्टाग्राम पर 10 सेकंड की रील बनानेवाले कई गुना टैलेंटेड हैं।
 
अगर आप सोच रहे हैं कि Housefull 5 देखने जाएं या नहीं, जवाब साफ है- ना जाएं, ना सोचें, ना याद रखें।

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