कश्मीर वापसी का सपना आंखों में संजोए हुए हैं कश्मीरी पंडित

सुरेश एस डुग्गर
गुरुवार, 24 मार्च 2022 (18:24 IST)
जम्मू। कुछ साल पहले राजकुमार पंडिता (परिवर्तित नाम) का परिवार उधमपुर के एक शरणार्थी शिविर से कश्मीर वापस लौटा था। विस्थापन के 32 सालों में वह रिलीफ कमिश्‍नर के कार्यालय के चक्कर काटते-काटते थक गया था। वह कहता था, मात्र मुट्ठीभर मदद के लिए जितना कष्ट सहन करना पड़ता है उससे अच्छा है वह कश्मीर वापस लौट जाए।

और उसने किया भी वैसा ही। बड़गाम के एक गांव में वह वापस लौट गया। वापसी पर स्वागत भी हुआ। स्वागत करने वाले सरकारी अमले के नहीं थे बल्कि गांववासी ही थे। खुशी के साथ अभी एक पखवाड़ा ही बीता था कि उसके कष्टदायक दिन आरंभ हो गए। उसे ‘कष्ट’ देने वाले कोई और नहीं बल्कि उसी के वे पड़ोसी थे जिनके हवाले वह अपनी जमीन-जायदाद को कर चुका था। असल में इतने सालों से खेतों व उद्यानों की कमाई को खा रहे पड़ोसी अब उन्हें वापस लौटाने को तैयार नहीं थे।

फिर क्या था। राजकुमार पंडिता को वापस सिर पर पांव रखकर जम्मू लौटना पड़ा। उसकी संपत्ति को हड़पने की खातिर पड़ोसियों ने कथित तौर पर ‘आतंकियों की मदद’ भी ले ली थी। राजकुमार पंडिता लगातार पांच दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल पाया था और परिवार के अन्य सदस्य भी दहशत में थे।

कश्मीर वापस लौटने की इच्छा रखने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए यह सबसे अधिक कष्टदायक अनुभव था कि वे उस कश्मीर घाटी में लौटने की आस रखकर आंखों में सपना संजोए हुए हैं जहां अब उनका कोई अपना नहीं है। हालांकि यह बात अलग है कि राज्य सरकार सामूहिक आवास का प्रबंध कर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भिजवाने की तैयारियों में पिछले कई सालों से जुटी है।

और यह भी सच है कि 32 साल पहले अपने घरों का त्याग करने वाले कश्मीरी पंडित समुदाय के लाखों लोगों में से चाहे कुछेक कश्मीर वापस लौटने के इच्छुक नहीं होंगें मगर यह सच्चाई है कि आज भी अधिकतर वापस लौटना चाहते हैं।

इन 32 सालों के निर्वासित जीवन-यापन के बाद आज भी उन्हें अपने वतन की याद तो सता ही रही है साथ भी रोजी-रोटी तथा अपने भविष्य के लिए कश्मीर ही ठोस हल के रूप में दिख रहा है। लेकिन इस सपने के पूरा होने में सबसे बड़ा रोड़ा यही है कि कश्मीर में अब उनका कोई अपना नहीं है।

इतना जरूर है कि इक्का-दुक्का कश्मीरी पंडित परिवारों का कश्मीर वापस लौटना भी जारी है। मगर उनमें से कुछेक कुछ ही दिनों या हफ्तों के बाद वापस इसलिए लौट आए क्योंकि अगर आतंकी उन्हें अपने हमलों का निशाना बनाने से नहीं छोड़ते, वहीं कइयों को अपने ‘लालची’ पड़ोसियों के ‘अत्याचारों’ से तंग आकर भी भागना पड़ा था।

इस पर पुरखू में रहने वाला राजेश कौल कहता था, अगर सुरक्षा के साए में एक ही स्थान पर बंधकर रहना है तो उससे जम्मू बुरा नहीं है जहां कम से कम हम बिना सुरक्षा के कहीं भी कभी भी घूम तो सकते हैं।

माना कि राजकुमार पंडिता का कश्मीर वापसी का अनुभव बुरा रहा हो या फिर राजेश कौल जैसे लोग कश्मीर वापसी से इतराने लगे हों, मगर यह सच्चाई है कि इन अनुभवों के बाद भी कई कश्मीरी पंडित परिवार आज भी कश्मीर वापसी का सपना आंखों में संजोए हुए हैं और वे ऐसे हादसों को नजरअंदाज इसलिए करने के इच्छुक हैं क्योंकि उनकी सोच है कि तिल-तिल मरने से अच्छा है कि अपने वतन वापस लौट जाएं।

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