ऐसी सोच से सावधान रहना लड़कियों! अनिरुद्धाचार्य की बेपर्दा नीयत, बदजुबानी ने उघाड़ दिए कितने काले मकसद

गरिमा मुद्‍गल
शुक्रवार, 25 जुलाई 2025 (16:47 IST)
aniruddhacharya controversial statement on woman: आधुनिक भारत में जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण और समानता की बातें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे बयान सामने आते हैं जो समाज की दकियानूसी सोच को बेपर्दा कर देते हैं। हाल ही में, कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के एक प्रवचन ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता पर एक तीखी बहस छेड़ दी है। उनके बयान, जिसमें उन्होंने 14 साल की लड़की के विवाह और 25 साल की आत्मनिर्भर महिला के संबंधों पर टिप्पणी की, ने कई गहरे सच उजागर किए हैं और सोचने पर मजबूर किया है कि क्या हम वाकई एक प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ रहे हैं।

अनिरुद्धाचार्य की बदजुबानी के असली मायने 
अनिरुद्धाचार्य ने अपने प्रवचन में कहा था, "जब लड़की 14 साल की होगी, आपके घर दुल्हन बनकर आ जाएगी। उस समय वह बच्ची होगी, उस समय वह अपने ससुराल को परिवार मान लेगी। लेकिन अब जब 25 साल की लड़कियां घर आती हैं, तो पहले ही कहीं न कहीं मुंह मार चुकी होती हैं।" यह बयान सीधे तौर पर महिलाओं के स्वावलंबन और उनके जीवन के चुनाव पर एक हमला है। यह बयान न केवल बाल विवाह जैसी अवैध प्रथा को बढ़ावा देता प्रतीत होता है, बल्कि वयस्क महिलाओं के चरित्र पर भी सवाल उठाता है।

समझिए ‘कहीं मुंह नहीं मारेगी' का असली मतलब
अनिरुद्धाचार्य के बयान में 'कहीं मुंह नहीं मारेगी' वाक्यांश का उपयोग विशेष रूप से आपत्तिजनक और विचारोत्तेजक है। यह सिर्फ शाब्दिक अर्थ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके गहरे और चिंताजनक निहितार्थ हैं:
भारत में लड़कियों के लिए विवाह की कानूनी उम्र 18 साल है। 14 साल की उम्र में विवाह करना बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत एक गंभीर अपराध है। भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता, गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें महिलाओं के अधिकार भी शामिल हैं। किसी भी महिला के चरित्र पर उसकी उम्र या व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर टिप्पणी करना असंवैधानिक और अनैतिक है।

अनिरुद्धाचार्य का यह बयान एक सड़ी हुई सोच का प्रतिबिंब है जो महिलाओं को नियंत्रित करने और उन्हें उनकी स्वतंत्रता से वंचित करने की कोशिश करती है। यह हमें याद दिलाता है कि शिक्षा और जागरूकता के बावजूद, समाज के कुछ हिस्सों में अभी भी पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी विचार गहरे बैठे हुए हैं।

एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज वही है जहां हर महिला को अपनी शर्तों पर जीवन जीने, शिक्षित होने, आत्मनिर्भर बनने और अपने फैसलों के लिए स्वतंत्र होने का अधिकार हो। प्यार करना या रिश्ते बनाना व्यक्तिगत पसंद का मामला है, और किसी की उम्र या सामाजिक स्थिति के आधार पर उसके चरित्र पर टिप्पणी करना अनुचित है।
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