हमारी पसंद-नापसंद और गांधी के सनातन जीवन मूल्य

अनिल त्रिवेदी
शनिवार, 29 जनवरी 2022 (09:02 IST)
सत्य सनातन है, सत्य की महत्ता सब स्वीकारते हैं। हमारे समूचे जीवन के प्रसंगों में आजीवन सत्य को अपनाने की हम सब प्राय: हिम्मत ही नहीं जुटा पाते। ऐसा करते हुए हम झिझकते भी नहीं। असत्य, सत्य का न होना न होकर सत्य को अपनाने की हिम्मत का न होना है। गांधी ने अपने जीवन को 'सत्य के प्रयोग' की संज्ञा दी। हम सत्य की राह को कठिन या 'आम इंसान के बस की बात नहीं' कहकर असत्य को जीवन में जगह देने के आदी होते जाते हैं। सत्य की शपथ लेने के बाद भी हम प्रामाणिकता के साथ सत्य के साथी नहीं बन पाते। यही बात युद्ध और अहिंसा के साथ भी है।

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युद्ध की विभीषिकाओं को जानने-समझने के बाद भी हम अहिंसा की बात तो करते हैं, पर हर समय अपने जीवन में अहिंसा के साथ खड़े नहीं रह पाते। गांधी ने सत्य और अहिंसा को निजी और सार्वजनिक जीवन में बड़ी सादगी, सरलता और सहजता से जीकर सबको बताया कि 'सत्य ही ईश्वर है।' ईश्वर को लेकर मनुष्य मन में कई मत-मतांतरों का जन्म हुआ, पर गांधी की इस सिखावन ने ईश्वर के निराकार स्वरूप को सहज-सरल जीवन में साकार करने का रास्ता खुद चलकर बताया। हर किसी को जो ईश्वर को लेकर आस्तिक-नास्तिक के मत-मतांतर में उलझा रहता है, उसे सत्य के रूप में ईश्वर की सहज समझ सुलभ कराई। जीवन कहने से नहीं, करने से चलता है, यह दर्शन प्रकृति का दर्शन है। गांधी ने कभी किसी से कुछ कहा नहीं, हमेशा करते रहे। गांधी के जीवन में उपदेश, अपशब्द और दुर्भावना के लिए कोई जगह नहीं है।

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प्राकृतिक समझ और क्षमता का जीवनकाल में सतत विकास या विस्तार ही जीवन का सहज-सरल साकार स्वरूप है। विकेंद्रित जीवन स्वावलंबन का मूल आधार है, यह प्रकृति का नियम है। हम सबके जीवन का यह मूल स्वभाव है, फिर भी हम सबके मन में मेरे-तेरे का भाव आ जाता है। प्रकृति मेरे-तेरे से परे है। गांधी ने स्वयं को सबके साथ रखा और भेदभाव या नफरत करने वालों में अपने व्यवहार से सहज-सरल रहने की प्राकृतिक समझ पैदा की। प्रकृति ही जीवन में निर्भयता को जन्म देती है। जरूरत की समझ और लोभ-लालच से परे जीवनक्रम सत्य और अहिंसा का आजीवन साथ निभाने का सनातन उपाय है।

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मानव समाज में मानव जीवन एक निश्चित सांचे में नहीं चलता। फिर भी जीवन के सनातन मूल्य तो जीवन के आधार होते ही हैं। कोई उन्हें माने न माने, पसंद करे न करे, पर सनातन जीवन मूल्य सनातन स्वरूप में रहते ही हैं। गांधी की समूची दुनिया सत्य अहिंसा परस्पर विश्वास और आचरणगत जीवन से ओत-प्रोत है। आज हम सब इतनी विशाल दुनिया में इतने संकुचित और एकाकी जीवन के आदी क्यों होने लगे हैं? छोटी-छोटी समस्याओं से भी हम पार नहीं पाते और लोभ-लालच के मायाजाल में उलझ जाते हैं। तब हमारे मन में सत्य के बजाय असत्य और अहिंसा के बजाय हिंसा की राह ज्यादा निरापद लगती है। मूलत: हम सब सनातन सत्य और अहिंसा को विचार या दर्शन के रूप में पसंद तो करते हैं, परंतु आचरण के रूप में सत्य और अहिंसा के साथ खड़े होने की निरंतरता हमारे मन, वचन और कर्म में नहीं आ पाती। सत्य और अहिंसा दिखावे के दर्शन न होकर जीवन के सनातन दर्शन हैं।

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अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधीजी की शहादत पर कहा था आने वाली नस्लें बड़ी मुश्किल से ही भरोसा कर पाएंगी कि हमारी इस धरती पर एक मनुष्य ऐसा भी पैदा हुआ था। गांधी हाड़-मांस के इंसान में सनातन दर्शन के साकार स्वरूप का प्रकटीकरण थे। जिससे हमें यह समझ सरलता से मिली कि सत्य और अहिंसा दिखावे के दर्शन न होकर समूची मानवता के लिए आचरण का सनातन प्रवाह हैं। आज हम में से कई यह मानने की तत्परता नहीं दिखा पाते कि सहज, सरल और आसान जीवन अनंत भौतिकता या विलासिता में नहीं, वरन सादगी और सरलतापूर्वक जीवन के निरंतर आचरण में है।



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सत्य और अहिंसा के मूल्यों को प्रामाणिकतापूर्वक मानवों द्वारा हर स्थिति में मानकर हम सब हिल-मिलकर अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में एकसाथ अपने-अपने तरीके से इन मूल्यों को साकार कर सकते हैं। गांधी ने 'मेरे सपनों के भारत' की कल्पना में एक ऐसे भारत की कल्पना की जिसमें कोई बीमार न हो और न हीं कहीं कोई विवाद हो। पर आज के भारत में बीमारी और विवादों का कोई अंत ही नहीं है। हम सब मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाने में तेजी से जुटे हैं, जो मनुष्यों से ज्यादा मशीनों में विश्वास करने लगी है। मशीनों से बनी सभ्यता का संकट यह होता है कि मशीन तो गतिशील होती है, पर मनुष्य की गतिविधियों में ठहराव आने लगता है। गांधी की समूची समझ मनुष्य की सतत सक्रियता को लेकर है। मानवीय मूल्यों और ऊर्जा पर आधारित मानव समाज जीवन जीने का सनातन क्रम है, जो मनुष्य को सतत सक्रिय रहते हुए जीने की सतत प्रेरणादायक ऊर्जा निरंतर प्रदान करता है।

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आज का मनुष्य मन और तन की ऊर्जा के बजाय धन और यंत्र के तंत्र में उलझता जा रहा है। इस उलझन से निपटने का रास्ता भी हम सबके पास सनातन समय से है, पर फिर भी हम सब जीवन की ऊर्जा और गतिशीलता को नकारकर मनुष्य की संभावना को ही नहीं देख पा रहे हैं। गांधीजी का समूचा जीवन, मनुष्य जीवन की एक ऐसी सरल-सहज राह है, जो किसी भी मनुष्य को उसमें छिपी अनंत संभावना और ऊर्जा से भरपूर राह पर चलते रहने का निरंतर हौसला देती हैं।

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गांधी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि कोई भी व्यक्ति अपनी चेतना को किसी भी स्तर तक अपनी सहजता को खोए बगैर ले जाने हेतु सक्षम हो सकता है। खुद पर विश्वास और सब लोगों से समभाव ही वह सनातन उपाय है, जो हर मनुष्य को अपने जीवन के रूप में उपलब्ध है। एक निहत्था मनुष्य अपने जीवन में आए जटिल सवालों या चुनौतियों से सरलतापूर्वक निपट सका और सत्य और अहिंसा को लेकर एक ऐसी राह हम सबको बता गया, जो हम सबके लिए हिल-मिलकर जीवन जीने का सहज सरल मार्ग हैं। यही महात्मा गांधी के जीवन का संदेश है।
 
आज के हमारे जीवन में भी वही चेतना और ऊर्जा भी वही है, जो गांधी के जीवन और काल में थी। पर गांधी ने जीवन के सनातन सत्य को अपने काल की चुनौती में खोजा। हम सब जीवन के सनातन सत्य को जानते तो हैं, पर मानने में आनाकानी करते हैं। यही गांधी और हमारे में अंतर है। गांधी ने सनातन सत्य को मन, वचन और आचरण में स्वीकार कर लिया। हम सत्य की, अहिंसा की बात को उपदेशों, प्रवचनों और विचार में मानते-बोलते और जानते-समझते तो हैं, पर मानने की दिशा में सतत बढ़ते रहने की संभावना को ही पहचान नहीं पा रहे हैं।
 
अपने आपको न जानना और न मानना आज का एक ऐसा सवाल है, जो हमारे काल की चुनौती को जानकर भी न मानने की मानसिकता को अंतहीन विस्तार दे रहा है। हमारे सवाल हमें ही हिल-मिल हल करने होंगे, यही सनातन सत्य है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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