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सोनभद्र के 'शापित सोने' का खूनी रहस्‍य, राजा के दुर्भाग्य और खूबसूरत रानी की हत्‍या की सदियों पुरानी खौफनाक कहानी...

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नवीन रांगियाल

यह दर्दनाक कहानी है सोनभद्र के अनजाने अकूत खजाने की, इंसान के लालच और धन की हवस की। रात के अंधेरे में, जंगली जानवरों का आतंक और जान बचाकर भागने के संघर्ष की यह दास्‍तां कई सदियों बाद आज फिर ताजा हो गई है। जहां की यह दास्‍तान है वहां के लोग अतीत की इस खौफनाक कहानी की आहटभर से आज भी कांप जाते हैं, सहम जाते हैं।

वे याद नहीं करना चाहते थे कि उनके राजा की मौत और रानी की हत्‍या का मंजर उस काली खौफनाक गहरी रात में कैसा होगा। लेकिन यह दुनिया के सबसे चमकदार और ललचाने वाले सोने की कहानी है, जब-जब इस शापित जगह और सोने का जिक्र होता है, राजा और उसकी रानी की मौत की यह वीभत्‍स कहानी हर किसी के जेहन में दौड़ जाती है।

11वीं शताब्‍दी का दौर था। जब सोना-चांदी और अन्‍य गहने ही रियासत और अमीरी के प्रतीक थे। जिसके खजाने में सबसे ज्‍यादा सोना-चांदी वो सबसे ज्‍यादा ताकतवर। जिस स्‍त्री की देह पर सबसे ज्‍यादा सोना वो सबसे सुंदर। जो सबसे ताकतवर है वो लूट लेगा और जो कमजोर है उसे लूूटा जाएगा।

इस शताब्‍दी के प्राचीन नगर सोनभद्र में एक राजा हुआ करते थे। नाम तो उनका राजा बलशाह था, लेकिन अपने दुश्‍मनों के सामने वे एक दम निर्बल और कमजोर थे। उनकी कमजोरी का कारण था उनके पास मौजूद अथाह और अकूत मात्रा में सोना। कहा जाता है कि उनके पास सौ मन यानी करीब 4 हजार किलोग्राम सोना था। इसके चर्चे उस दौर के हर नगर में थे। दूर-दूर तक उनकी इस अकूत संपत्‍ति के बारे में जिज्ञासा थी, और यही संपत्‍ति उनकी मौत की वजह बन गई।

दरअसल, खरवार राजा बलशाह एक आदिवासी राजा था। उसके साम्राज्‍य पर चंदेल वंश के शासकों की नजर पड़ गई। चंदेलों को आदिवासी राजा का यह साम्राज्‍य जरा भी नहीं भाता था। अपने साथ होने वाली अनहोनी से अनजान राजा बल शाह अपनी खूबरसूरत रानी के साथ वक्‍त गुजार रहा था, लेकिन एक रात इस राजा के ऐश ओ आराम के लिए कयामत की रात बनकर आ गई। चंदेल शासकों ने राजा बलशाह के ‘अगोरी किले’ पर धावा बोल दिया।

चारों तरफ से घिरे राजा बलशाह के ज्‍यादातर सैनिक मारे गए। वो नितांत अकेला रह गया। चंदेलों का सामना करना तो दूर वो अपनी संपत्ति बचाने की हालत में भी नहीं था। मरता क्‍या करता, वो कुछ सैनिकों के साथ अपना करीब 4 हजार किलोग्राम सोना लेकर घने जंगल से घिरे पहाड़ों की तरफ भाग निकला।

सोनभद्र से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्‍थित पनारी के जंगलों में राजा बलशाह ने रेणू नदी के आसपास और कुछ पहाड़ों पर अपना सारा सोना जगह-जगह जमीन में गाड़कर छुपा दिया। इस इलाके में जगह-जगह सोना होने की वजह से ही यहां के आदिवासी इस जगह के बारे में कहते हैं- सौ मन सोना, कोना-कोना। अब यह एक कहावत बन चुकी है। इसे अब भी सोन पहाड़ी कहा जाता है।

खैर राजा बलशाह ने अपना सोना बचाने के लिए यह काम किया था, लेकिन उसे अंदाजा भी नहीं था कि एक बेहद खौफनाक किस्‍मत उसका इंतजार कर रही है। किंंवदंति है कि सारा सोना तो उसने जमीन में गाड़ दिया, लेकिन वो जंगली जानवरों के आतंक से नहीं बच सका।

चंदेल शासकों ने उसे जंगल में भी खोज लिया, लेकिन इसके पहले कि वो चंदेल शासकों का शिकार बनता, उस काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों ने उसे इस तरह से चीर दिया कि राजा के निशान भी किसी को हासिल नहीं हुए। जानवरों ने उसके चिथड़े उड़ा दिए। राजा और उसके सोने के नहीं मिलने से बोखलाए चंदेेलों ने राजा बलशाह की रानी जुरही को अपना शिकार बना लिया। शासकों ने रानी को बंधक बना लिया। उसे यहां के खौफनाक जुगैल के जंगलों में ले जाकर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। जुगैल के जंगलों में आज भी रानी जुरही के नाम का 'जुरही देवी मंदिर' मौजूद है।

यहां के रहने वाले गोंड आदिवासियों के मुताबिक राजा बलशाह का युद्ध का कवच और उनकी तलवार जंगल में एक गुफा से मिली थी। बाद में तलवार तो किसी को बेच दी गई, लेकिन अब भी उनका कवच एक खरवार व्यक्ति के घर में मौजूद है। सोनभद्र की पहाड़ियों में मिले सोने के बाद राजा बलशाह और रानी जुरही की मौत की कहानी एक बार फिर से चर्चा में है। लेकिन इस शापित सोने को पिछले सैकड़ों सालों से कोई नहीं खोज पाया है।

उपरोक्‍त लेख स्‍थानीय किंंवदंतियों और जनश्रुतियों पर आधारित है, वेबदुनिया इसमें लिखे किसी भी दावे की पुष्‍टि नहीं करता है। 

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